पश्चिम दिशा में पैर करके क्यों सोना चाहिए?

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  • आयुष
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  • 31 October 2024
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 डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)-     Mystic Power- शांत निद्रा कैसे लें, इस विषय पर किया गया आध्यात्मिक शोध-पश्चिम दिशा में पैर करके सोने के प्रभाव   जिन साधकों की प्रगत छठवीं इंद्रिय या सूक्ष्म इन्द्रिय  है उन्होंने निद्रा की विविध अवस्थाओं पर शोध किया । उन्होंने ढूंढा कि पश्चिम दिशा में पैर करके सोने के क्या प्रभाव होते हैं और सोने के लिए कौन सी दिशा सबसे योग्य है । पश्चिम दिशा में पैर करके सोने के प्रभाव और सोने के लिए सबसे उचित दिशा  है । पश्चिम दिशा में पैर करके सोने के आध्यात्मिक प्रभाव    ईश्वर की क्रिया तरंगों से लाभ-ईश्वर की क्रिया तरंगें पूर्व-पश्चिम दिशा में रहती हैं । इन दो दिशाओं के मध्य इसकी गतिविधि रहती है । पश्चिम दिशा में पैर करने से हमें इन क्रिया तरंगों से अधिक लाभ मिलता है । यह हमें कार्य करने के लिए बल प्रदान करती है । देह की पंचप्राण शक्ति का कार्यन्वित होना-क्रिया तरंगों का देह में संचार होने से, नाभी के स्तर पर स्थित पंचप्राण सक्रिय हो जाते हैं । यह पंचप्राण उपप्राण के माध्यम से सूक्ष्म वायु उत्सिजर्त करते हैं । इससे हमारे प्राण देह और पंच प्राणमय कोष की शुद्धि होती है । यह व्यक्ति को बल और स्फूर्ति प्रदान करती है ।   सात्विक तरंगों से लाभ-सूर्योदय के समय पूर्व दिशा से सात्विक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । जब हम अपने पैर पश्चिम दिशा में करके सोते हैं तब हमारा सिर पूर्व दिशा की तरफ होता है फलस्वरूप यह सात्विक तरंगें वातावरण से ब्रह्मरंध्र (७वां कुंडलिनी चक्रखोलती है) के द्वारा हमारे देह में सहजता से प्रवेश करती हैं । यह कुंडलिनी के सातवें चक्र सहस्रार चक्र को खोलती है । सात्विक तरंगें ग्रहण करने से हम भी सात्विक बन जाते हैं और हमारे दिन का आरंभ अधिक सात्विकता से होता है । अपने दिन का आरंभ सात्विकता से करने के लिए हमें अपने पैर पश्चिम दिशा में ही करके सोना चाहिए ।   देह चक्र का दक्षिणा वर्त घूमना (घडी की सुई की दिशा में घूमना)   ईश्वर की क्रिया तरंगें एवं सात्विक तरंगों के अतिरिक्त, इष्ट सप्ततरंगें भी पूर्व दिशा से आती हैं । जब हम अपना सिर पूर्व दिशा में करके सोते हैं, तब हम सप्ततरंगों से अधिकतम लाभ उठाते हैं । उसके प्रभाव से हमारा देह चक्र सही दिशा में दक्षिणावर्त घूमने लगता है । परिणामस्वरूप, हमारी सभी शारीरिक क्रियाएं सकारात्मक रूप से होती हैं ।    निद्रा से संबंधित रज तमके कणों का घट जाना   जब हम अपने पैर पश्चिम में और सिर पूर्व में करके सोते हैं, तब कुंडलिनी के सात चक्रों द्वारा १० प्रतिशत अधिक सप्ततरंगें ग्रहण की जाती हैं । जब सप्ततरंगों से प्रभावित होकर चक्र दक्षिणावर्त दिशा में घूमने लगते हैं तब व्यक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर उसका लाभ होता है । तथा निद्रा अवस्था में देह में उत्पन्न सूक्ष्म मूल रज तम कणों से व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं होता और वह शांति से सोता है ।   सारांश   हम ऊपर दिए विवरण से जान सकते हैं कि शांत निद्रा लेने की दृष्टि से पूर्व-पश्चिम दिशा, अर्थात पश्चिम दिशा में पैर करके सोना सबसे उत्तम है ।  



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