श्री गंगा जी के विविध स्वरूप

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 21 May 2025
  • |
  • 0 Comments

मकरवाहिनी श्रीगंगा

सितमकरनिषण्णां शुभवर्णा त्रिनेत्रां, करधृतकलशोडात्सोत्पलामत्यभीष्टाम्

विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडां, कलितसितदु‌कूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥

श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्रवर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश तथा दो हाथों में सुन्दर कमल धारण किये हुए, भक्तों के लिये परम इष्टः ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चन्द्र जटित मुकुट वाली तथा सुन्दर श्वेत वस्त्रोंसे  विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता है।

देवनदी श्रीगंगा

ब्रह्माण्डे खण्डयन्ती हरशिरसि जटावल्लिमुल्लासयन्त्रो स्वर्लोकादापतन्ती कनकगिरिगुहागण्डशैलात्तखलन्ती।

क्षोणीपृष्ठे लुठन्ती दुरितचयचमूर्निर्भरं भर्त्सयन्ती पाथोधिं पूरयन्ती सुरनगरसरित्पावनी नः पुनातु ॥

ब्रह्माण्ड का भेदन कर निकलने वाली, महादेव जी की जटा-लता को उल्लसित करने वाली, स्वर्गलोक से गिरने वाली, सुमेरु की गुफा और पर्वतमाला से अवतरित होने वाली, पृथ्वी पर विहार करने वाली, पाप समूह की सेना को कड़ी फटकार देने वाली, समुद्र को भरने वाली तथा देवपुरी की पवित्र नदी गंगा हमें पवित्र करे।

गंगाष्टक

चतुर्भुजा देवी गंगा

चतुर्भुजां त्रिनेत्रां च सर्वावयवभूषिताम्। रत्नकुम्भां सिताम्भोजां बरदामभयप्रदाम् ॥ 

श्वेतवस्त्रपरीधानां मुक्तामणिविभूषिताम्। सदा ध्यायेत् सुरूपां तां चन्द्रायुतसमप्रभाम् ॥

श्रीगंगाजी की चार भुजाएँ हैं। उनके तीन नेत्र हैं। उनके सम्पूर्ण अंग सुन्दर हैं तथा आभूषणों से सुशोभित हो रहे हैं। वे एक हाथ में [जलपूरित] रत्नघट, दूसरे हाथ में श्वेतपद्म, तीसरे हाथ में बरद मुद्रा एवं चौथे में अभय मुद्रा धारण किये हैं। वे उज्वल वस्त्र धारण करती हैं और मणि तथा मोतियों से सुशोभित हैं। उनमें हजारों चन्द्रमाओं की ज्योति छिटक रही है। [भक्तको] सदा उनके इस प्रकार के सुन्दर रूप का ध्यान करना चाहिये।

 [ भविष्यपुराण]

धर्मद्रवरूपा भगवती गंगा

साक्षाद्धर्मद्रवीर्घ मुररिपुचरणाम्भोजपीवृषसारं, दुःखस्याब्धेस्तरित्रं सुरदनुजनुतं स्वर्गसोपानमार्गम्। 

सर्वांहोहारि वारि प्रवरगुणगणं भासि या संवहन्ती, तस्यै भागीरधि श्रीमति मुदितमना देवि कुर्वे नमस्ते ॥

श्रीमती भागीरथी देवी! जो जलरूप में परिणत साक्षात् धर्म की राशि है, भगवान् विष्णु के चरणारविन्दों से प्रकट हुई सुधाका सार है, दुःखरूपी समुद्र से पार होने के लिये जहाज है तथा स्वर्गलोक में जाने के लिये सीढ़ी है, जिसे देवता और दानव भी प्रणाम करते हैं, जो समस्त पापों का संहार करने वाला, उत्तम गुणसमूह से युक्त और शोभा सम्पन्न है, ऐसे जल को आप धारण करती हैं। मैं प्रसन्नचित्त होकर आपको नमस्कार करता हूँ।

 [ संकलित] 

भगवती भागीरथी उत्फुल्लामलपुण्डरीकरुचिरा कृष्णेशविव्यात्मिका, कुम्भेष्टाभयतोयजानि दद्धती श्वेताम्बरालङ्कृता। 

हृष्टास्या शशिशेखराखिलनदीशोणादिभिः सेविताध्येया पापविनाशिनी मकरगा भागीरथी साधकैः ॥ 

जिनकी देहकान्ति खिले हुए स्वच्छ कमल के समान मनोहारिणी है, जो ब्रह्म-विष्णु-रुद्रस्वरूपिणो हैं, जिन्होंने दाहिने भुजयुगल में वर मुद्रा तथा कमल और वाम भुजयुगल में सुधाकलश तथा अभय मुद्रा को धारण किया है, जो श्वेत वस्त्रों से  अलंकृत हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभायमान है तथा समस्त नदियाँ और शोण आदि महानद जिनकी सेवा कर रहे हैं, ऐसी प्रसन्न मुखवाली तथा मकर पर आरूढ़, पापविनाशिनी भगवती भागीरथी का साधकों को ध्यान करना चाहिये।

[ मन्त्रमहोदधि ]

आचार्य भारती जी 



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment