विशिष्टानंद ‘कौलाचारी’-
Mystic Power - तंत्र में माता दुर्गा का महत्व सर्वाधिक माना जाता है कुछ लोग इन्हें साक्षात भगवती का रूप समझते हैं यही कारण है कि आर्यवर्त में इनके भक्तों की संख्या सबसे ज्यादा है इनकी साधना पूजा प्रात काल से प्रारंभ करनी चाहिए किसी भी मास के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ करके दशमी तिथि तक साधना संपन्न कर लेनी चाहिए वैसे इनकी पूजा प्रारंभ करने के लिए कोई भी शुभ तिथि उचित है।
कैसी करनी चाहिए इनकी साधना यहां पर हम संक्षिप्त में कुछ वर्णन करते हैं आग्नेय कोण में वेदी बनाकर उत्तर की ओर मुख करके या पूर्व की ओर मुख करके आसन लगाएं विधिवत कलश की स्थापना करें इसके लिए गेहूं और धान आदि शुभ अंक के आसन पर शुद्ध जल से भरकर कलश रखे कलश में आम्रपाली ऐसे डालें की डंठल जल में रहे इस कर्ज पर दीपक प्रज्वलित करके रखें फिर अग्नि सुलगाय इस समस्त क्रिया के मध्य में मंत्र जाप करते रहे।
तत्पश्चात आसन पर बैठकर त्राटक में दुर्गा के देदीप्यमान प्रतिमा का ध्यान लगाकर स्थापित करें और मंत्र पढ़े हुए अग्नि में हवि देवें प्रतिदिन दस माला मंत्र जाप होना चाहिए इस मध्यम ध्यान में दुर्गा की प्रतिमा निरंतर बनी रहनी चाहिए यह जाप दस दिन तक प्रतिदिन करें करना चाहिए।
भगवती की साधना में अक्सर दुर्गा पाठ भी किया जाता है किंतु इस पाठ को करने से कोई लाभ तब ही मिलता है जब इसके मर्म को समझें इसमें कथा है उसके दार्शनिक अर्थ को समझकर ही पाठ करना चाहिए दार्शनिक अर्थ समझ को समझने के लिए पूर्व उस कथा को पढ़े और स्वमं चिंतन करके समझे कि उसमें इस जगत के किस सत्य को बताया गया है ।
वास्तव में भगवती की साधना करने से साधक में शिवतत्त्व के गुण प्रकट होते हैं यह शिव अंश से उत्पन्न हुई है परंतु प्रकृति ने इनकी सत्ता है स्वमंवशिव तत्व को भी यहां इनके ही नियम में बंधकर रहना पड़ता है इनकी माया प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त है इनकी साधना के बिना परम सत्य का प्रत्यक्षीकरण भी नहीं होता है।
इनकी कृपा से ही सर्व सिद्धि प्राप्त होती है सारी विद्या इनकी ही अनुगामिनी या अंश रूप है सीधे-सीधे धार्मिक शब्दों में यह शिव की उमा है वैज्ञानिक शब्दों में यह ब्रह्मांडीय शक्ति हैं ब्रह्मांड के सभी तत्व इनके नियम से विचरण करते हैं इनके इस आसन में हैं भौतिक विज्ञानी इन्हीं के नियमों की खोज कर के आविष्कार करते हैं कोई ने प्रकृति कहता है तो कोई महाशक्ति तो कोई शक्तिबीजा और शक्तिस्वरूपा आदि नामों से भी इनको जाना जाता है यह ऋषियों की महामाया है मर्गमरीचिका है इसे महामायाविनी भी कहते हैं कुछ संत महाठगनी भी कहते हैं। तत्वज्ञानी को छोड़कर सभी साधक वैज्ञानिक कलाकार आदि नीचे किसी न किसी रूप की साधना करते हैं सूर्य चंद्र ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड के अणु अणु में उनकी ही सत्ता है अग्नि प्रकाश विद्युत ज्ञान विवेक चेतना संवेदना सभी इनसे ही तेजो में जहां कोई भी गुण है कोई नियम है वहीं इनकी उपस्थिति है।
इनकी साधना मी लाल वस्त्र लाला सिंदूर रक्तचंदन रक्त या पीत पुष्प धूप दीप एवं तिल भी जो चावल दूब दही दूब आदि के नैवेध पीतल या तांबे का कलश आम के पल्लव हवन की पवित्र लकड़ी आदि अग्नि साधना की समस्त सामग्रियां एवं भूमि आदि बंधित करने की विधि अपनाई जाती हैं।
इनकी साधना से ओज तेज पराक्रम बल वीर्य स्वास्थ्य मनोवांछित फल सिद्धि दृढ़ता आत्मबल मिलता है मंत्र में विधि का वर्णन या इसलिए नहीं किया गया कि भले ही सोशल मीडिया पर हजारों साधक है यह संसार में सभी साधना करने जाते हैं परंतु साधना केवल ऐश्वर्य के लिए ही करना चाहते हैं।
साधना निष्काम भाव और निस्वार्थ भाव से की जाती है तभी को कुछ प्राप्त होता है कामना भेद से की गई भक्ति में कोई भी सफलता नहीं आजकल तो ईश्वर को रिझाने के अनेक प्रयास किए जाते हैं जैसे मेरे घर में धन आ जाए मैं एक सौ एक का प्रसाद चढ़ा लूंगा अगर मेरी बेटी की शादी हो जाए तो पांचसौ एक का प्रसाद चढ़ा लूंगा अगर मेरे बेटे की नौकरी लग जाए तो एक हजार का प्रसाद चढ़ा लूंगा यह भी नहीं समझते यह लोग किए सारा ब्रह्मांड उस ईश्वर का है और जो भी हम प्रकृति से प्राप्त करते हैं वह सब ईश्वर का है
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