वेद में श्रीराम की पुरी अयोध्या कैसी है?

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )- Mystic Power- श्रीराम की पुरी अयोध्या कैसी है ? वेद वचन है... " अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्ययः कोश: स्वर्गे ज्योतिषावृतः ॥" (अथर्ववेद १० । २।३१) देवनाम् पूर अयोध्या = देवताओं का वास स्थान अयोध्या है। अयोध्या में दिव्य/ सुन्दर भाव विचार होते हैं। शान्तचित्तता अयोध्या है। शान्त चित्त होने पर दैवी विचार उठते हैं, आसुर विचार शान्त हो जाते हैं। अष्टचक्रा नवद्वारा = यह मानव देह आठ चक्रों एवं नवद्वारों वाला है। रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य एवं प्राण- ये आठ चक्र (गतिदायक तत्व) क्रमशः महतर है। कान के दो छिद्र, आँख के दो छिद्र, नाक के दो छिद्र, एक मुख द्वार, एक उपस्थ द्वार तथा एक गुदाद्वार-ये नवद्वार हैं। तस्याम् हिरण्यः कोशः= उस अयोध्यापुरी में आकर्षकएक कोश (हृदय) है यह कोरा ही श्रीराम तत्व है, क्षेत्रज्ञ है। स्वर्ग: ज्योतिषा आवृतः = यह कोश स्वर्ग (परमपद) है, प्रकाश से ढका हुआ- ज्ञानमय / आनन्दमय है। यह देह इतना महत्पूर्ण है। इस देह में जब अमावस्या होती है, तो श्रीराम अरण्यवास के लिये चले जाते हैं। यहाँ जब दीप जलता है, प्रकाश होता है, तम मिटता है, तो वे अरण्यवास त्याग कर लौट आते हैं। श्रीराम का आगमन= ज्ञान का प्राकट्य ।श्रीराम गमन= ज्ञान का तिरोभाव। इस सत्य को जो जानता है, वह रामायणी है। उसे मेरा प्रणाम । अयोध्या का अन्य नाम अवध है। अवधपुरी में राम जन्म लेते हैं। अवध= वध (मृत्यु) का अभाव । जहां अवध है, वहाँ राम तत्व है। जहाँ श्रीराम हैं, वह स्थान/काय अवध है। गोस्वामी जी कहते हैं... "अवध वहाँ जह राम निवासू । तहँइँ दिवस जहँ भानु प्रकासू ॥" (अयोध्याकाण्ड रा. च. मा.) जैसे जहां सूर्य का प्रकाश है, वहाँ दिन है। ठीक ऐसे ही जहाँ श्रीराम का निवास है, वह स्थान अवध / अयोध्या है। अवध = अयुद्ध / अहिंसा। जहां अवध है, वहां अणिमादिक आठ सिद्धियों सहित सम्पूर्ण सुख सम्पति रहती है। जिसपुरी के राजा लक्ष्मीपति विष्णु श्रीराम हो, उसका वर्णन कैसे किया जाय ? यह कथन है... "रमानाथ जहँ राजा, सोपुर बरनि कि जाइ। अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सबछाइ ।" (उत्तरकाण्ड रा. च. मा.) योगी का चित अवध है। योगी के चित्त में श्रीराम सदा विराजते हैं। तस्मै योगिने नमः । अयोध्या का दूसरा नाम कोशल है ।कु + शो +ड = कुश। कु = पाप। श = विनाशक । शो हिंसायाम् श्यति।कुश+लच्= कुशल→कोशल ।जहाँ कुशल (अपाप, पवित्रता, शुभ) है, वह स्थान कोशल है। कुश एक दर्भ (मास) है। इसकी उत्पत्ति अमृत से हुई है। इसमें अमृत रहता है। इसके स्पर्श से जल अमृत हो जाता है। कुशोदक का इसीलिये महत्व है। कुशासन (दर्भशय्या) सुमाा है। कोशल = मंगलमय स्थान। शुभ पवित्र निष्पाप अन्तःकरण दो कोशलपुर है। यहाँ श्रीराम जन्म लेते हैं। इसके अशुभ दूषित होनेपर इसे त्याग देते हैं। जिसकी बुद्धि कोशलपुर बन चुकी है, उसे श्रीराम अत्यंत प्रिय हैं। श्रीराममय बुद्धि का नाम कौशल्या है। "कोशलपुर वासी नर, नारि वृद्ध अरु बाल। प्रानहु ते प्रिय लागत, सब कहुँ राम कृपाल ॥" ( बालकाण्ड, रा. च. मान.) बाल वृद्ध नर नारी जितने भी हैं, यदि उनका अन्तकरण कोशलपुर बन चुका है तो उन्हें श्रीराम प्रिय लगेंगे ही। जहाँ नित्य नया मंगल हो तथा सब लोग प्रसन्न हों, वही कोशलपुरी है। अथवा, कोशलपुरी में आनन्द एवं शुभ का राज्य होता है। कहते हैं... 'नित हरक्षित मंगल कोसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी ।।" (उत्तरकाण्ड, रा. च. मान,) अन्तःकरण के चार अंग हैं-मन बुद्धि चित्त अहंकार ये चारों अलग-अलग होकर भी एक हैं। श्रीराम के रहने के चार स्थान हैं- अयोध्या अरण्य अवध कोशल ये चारों अलग-२ होकर एक है। मन बुद्धि चित्त एवं अहंकार में श्रीराम तत्व के विराजने से ये अयोध्या, अरण्य, अवध एवं कोशलपुर हो जाते हैं। अयोध्या में जन्मे राम को मेरा नमस्कार दण्डक अरण्य मे विचरे राम को मेरा नमस्कार अवध में आये राम को मेरा नमस्कार कोशलपुर में सिंहासनारूढ राम को मेरा शत नमस्कार मन बुद्धि चित्त एवं अहंकार के चतुम्करण मेंएक ही सा रमने वाला राम चतुर्मुख है, चतुर्बाहु है, चतुरंग है, चतुरस है, चतुर्मूर्ति है, चतुर्व्यूह है चर्दिक है है है चतुमाद है, राज्य है । रामाय नमः । प्रकाश/दीपक ज्योति = श्री ।अमावस्या की काली रात= राम ।इस सघन अंधियारी रात में जब दीपक जलता है तो यह राम रूप रात्रि श्रीराम हो जाती है। नीलाभ आकाश= राम। आकाश के प्रकाशमान पिण्ड नक्षत्र ग्रहादि = श्री ।चमचमाते तारामण्डल से युक्त तमोमयी रात साक्षात् श्रीराम की प्रतिमा है। इसे देखकर किसका अन्तःकरण नहीं खिलता ? प्रकृति पुरुष के इस युगल रूप को मेरा प्रणाम।  



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