विज्ञापनों में सनातनद्रोह

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी विद्यावाचस्पति- mystic power - वर्तमान में सर्वत्र भारतीय संस्कृति के विरुद्ध दुष्प्रचार चल रहा है। परन्तु जब से सामाजिक प्रचार तन्त्रों, प्रकाशित सामग्री के द्वारा विश्व की एक मात्र सनातन—मानवीय—आर्य—वैदिक—संस्कृति के विरुद्ध कुछ भी अनर्गल (गलत—सलत) छापने अथवा लिखने पर तत्काल ही प्रतिक्रिया होती है। इसलिये अब विश्व की एक मात्र मानवीय संस्कृति के विरुद्ध छद्म प्रचार का प्रयोग किया जा रहा है। https://pixincreativemedia.com/ विभिन्न चैनलों पर चलने वाले धारावाहिकों में पारिवारिक तन्त्र को विकृत करने के लिये जो कार्य चल रहा है उसके प्रति जाग्रति आई है, यद्यपि वह जाग्रति ऊँठ के मुख में जीरा कीे भाँति नहीं के समान है पर यह कहा जा सकता है कि मानवीय संस्कृति के अनुगामी सनातनी में कुछ प्रतिरोध उस दिशा में दिखाई देने लगा है। https://mycloudparticles.com/ इस प्रकार का एक सनातन द्रोह हमें व्यापारीतन्त्र (बाजारवाद) के पक्ष में विज्ञापनों के माध्यम से दिखाई देने लगा है। वर्तमान में जो भी विज्ञापन आते हैं वे सर्वथा भारतीय परम्पराओं का मखौल उड़ाते हुये दिखाई देते हैं। उनमें समानता हो अथवा नहीं हो जिस उत्पाद (प्रोडक्ट) का विज्ञापन है उससे मेल खाए या नहीं खाए पर उसमें भारतीय परम्परा अथवा संस्कृति का कोई न कोई आयाम (पहलू) ऐसे परोसा जायेगा कि मानो वह बहुत ही बुरा हो। वर्तमान में एक विज्ञापन मुख साफ करने के लिये दिया जाता है। उसमें कहते हैं कि साबुन से नहीं हमारे उत्पाद से मुँह धोइये तो उसमें यह बताया जाता है कि मुँहासे तेल के कारण होते हैं तथा भारतीय व्यंजन साम्भर वढ़ा को सूक्ष्मदर्शी यन्त्र पर रखकर उसे जाँचने का उपक्रम (तरीका) दिखाया जाता है। यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या साम्भर वढ़ा इतना तैलीय है कि उसके खाने से मुँहासे हो जायेंगे। पर उद्देश्य तो एक ही है कि आप अपने परम्परागत व्यंजन (कूजिन) छोड़े तथा उनके अण्डे, माँस, आदि का प्रयोग करें। वस्तुत: चर्म रोग विशेष कर किशोरावस्था में अधित अण्डों का प्रयोग करने से ही मुँहासे होते हैं। यही नहीं पिज्जा, बर्गर, सारे चाइनी व्यंजन जिनमें भयंकर विष (जहर) अजीनो मोटो होता है अथवा वह चीज वाला पिज्जा जिसको खाते हुये बताते हैं तो वह लिसलिसा सा फैलता है ऐसा प्रतीत होता है कि किसी बीड़ी पियकड़ पचास वर्षीय अधेड़ के खाँसी से निकला हुआ कोई मल हो विज्ञापना देखने से ही उल्टी हो जाय मैं तो वह विज्ञापन आते ही दृष्टि हटा लेता हूँ। अत: ऐसे किसी व्यंजन का प​रीक्षण नहीं बताया अपितु भारतीय व्यंजन का परीक्षण बताया है। ऐसे विज्ञापनों के द्वारा भारतीय व्यंजनों का आखेट (शिकार) किया जा रहा है उन्हें एक तरफ करने का कुत्सित प्रयास है। आप अपने घरों में अपने परम्परागत तथा आपकी यहाँ की जलवायु के अनुरूप जो भेाजन है उसका त्याग करके मैदे, माँस, अण्डे से बने हुये शरीर के लिये हानिकारक कुछ भी खा लें। दूसरे एक विज्ञापन में काकरोच मारने वाले में दिखाया जाता है कि एक मर्दाना पोशाक की बहू अपनी सास से परेशान है तथा सास को भारतीय परिधान धारण करवाया गया है। यहाँ आपके मन—मस्तिष्क में यह कचरा भरा जा रहा है कि भारतीय परिधान वाली सास अपनी बहू की शत्रु होती है। ऐसे ही अन्यान्य कई विज्ञापन है जिनमें मीठे के नाम पर आप अपनी मिठाइयाँ छोड़ कर चाकलेट खाएँ। यह सभी आपको दिग्भ्रमित करने के लिये हैं। विशेष कर आप अपनी संस्कृति से परम्परा से, धर्म से, अपनी प्रकृति के अनुसार शरीर के लिये लाभकारी भोजन से, पारिवारिक सुरक्षा से दूर हों। खाना बनाने वाले सभी चैनलों कार्यक्रमों में लहसुन, प्याज, अण्डा, आदि का प्रयोग ऐसे दिखाया जाता है मानों कि कोइ भी भारतीय भोजन वैष्णव परम्परा से अर्थात् बिना ,लहसुन, प्याज, गाजर, मसूर की दाल, मशरूम आदि के बनते ही नहीं हों। यह भी आपकी रसोइ को विकृत (खराब) करने के उद्देश्य से ही परोसा जा रहा है। आप जाग्रत होईये आप देखेंग कि प्रत्येक विज्ञापन भारतीय परम्परा के विपरीत है। उसमें भारतीय माताओं बहनों को इस प्रकार दिखाया जा रहा है मानों वे नित्य केवल कलह ही करती हैं। उनमें मातृशक्ति का अपमान भी दिखाया जाता है। आप देखें तथा उसका विरोध करें।  



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment