भगवान् श्रीराम की बारह कलाएं
श्रृंगिऋषि कृष्णदत्त जी-
Mystic Power- मानव के द्वारा दो पक्ष होते हैं। एक दक्षिणायन है दूसरा उत्तरायण है। जिसको हम कृष्ण और शुक्ल पक्ष कहते हैं।
शुक्ल कहते हैं बुद्धिमान को, शुक्ल कहते हैं विवेक को, शुक्ल कहते हैं शोडश कलाओं के जानने को।
षोडश कलाएं क्या हैं मानव के शरीर में?
पांच प्राण हैं, पांच उपप्राण हैं पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं और मनतत्व है। यह षोडश कलाएं कहलाती हैं। जब तक इनका यथार्थ ज्ञान नहीं हो जाता तब तक वह मानव षोडश कलाओं को नहीं जानता। मुझे वह काल स्मरण आता रहता है।
भगवान राम बारह कलाओं के अवतार कलाए जाते थे। वे बारह कला क्या थीं? उदीची, दक्षिणादिग्, प्राचीदिग्, प्रतीचीदिग ध्रुवा, ऊर्ध्वा मानो ये छह दिशाएं होती हैं इन दिशाओं में क्या-क्या ज्ञान का भण्डार है, ये क्या-क्या कार्य करती हैं, ये छह कला कहलाती हैं, और समुद्र, पृथ्वी, द्यु अन्तरिक्ष चार कला ये कहलाती हैं, जिन कलाओं को जानकर मानव विचित्र बनता है।
चार कलाओं का वर्णन और आता है। चार कला कौनसी हैं? स्वसचतम्, वृतम्, मध्यानम्, प्रतिभा। इनको कहते हैं। मन कला, चक्षु कला, श्रोत कला और त्वचा कला।
मेरे पुत्रो! वाणी कला। ये सर्वत्र कला कहलाती हैं। पांच कला ये होती हैं। एक मन तत्त्व कला है। पांच ज्ञानेन्द्रियां कला हैं औश्र एक मन कला हैं। इनको जो अच्छी प्रकार जानता है वह षोडश कलाओं वाला है और जो इनमें से चार को नहीं जानता वह बारह कलाओं का है। कला किसे कहते हैं? कला कहते हैं उसके सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान हो और विवेक हो। विवेक की दृष्टि से उसे पान करने वाला। वह बारह कलाओं वाला, षोडश कलाओं वाला चन्द्रमा कहलाता है।
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