शैवपीठ देवता की पूजा
डॉ. मदन मोहन पाठक (धर्मज्ञ)
Mystic Power- शैवपीठ देवता की पूजा पीठन्यास के मन्त्रों के आधार पर की जाती है, जो अनुष्ठानप्रकाशः’ के अनुसार इस प्रकार हैं-
ॐ मंडूकाय नमः। ॐ कालाग्निरुद्राय नमः। ॐ कूर्माय नमः।
ॐ आधारशक्तये नमः। ॐ अनन्ताय नमः। ॐ धरायै नमः ।
ॐ सुधासिंधवे नमः। ॐ श्वेतद्वीपाय नमः। ॐ सुराङ्घ्रिपाय नमः।
ॐ मणिहर्त्याय नमः। ॐ हेमपीठाय नमः। ॐ धर्माय नमः ।
ॐ ज्ञानाय नमः। ॐ वैराग्याय नमः । ॐ ऐश्वर्याय नमः।
ॐ अधर्माय नमः । ॐ अज्ञानाय नमः। ॐ अवैराग्याय नमः।
ॐ अनैश्वर्याय नमः। ॐ अनन्ताय नमः । ॐ तत्त्वपद्माय नमः।
ॐ आनन्दमयकन्दाय नमः । ॐ संविन्नालाय नमः । ॐ विकारमयकेसरेभ्यो नमः ।
ॐ प्रकृत्यात्मकपत्रेभ्यो नमः । ॐ पंचाशद्वर्णकर्णिकायै नमः । ॐ सूर्यमण्डलाय नमः।
ॐ इन्दुमण्डलाय नमः। ॐ पावकमण्डलाय नमः। ॐ सत्त्वाय नमः ।
ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। ॐ आत्मने नमः ।
ॐ अन्तरात्मने नमः । ॐ परमात्मने नमः । ॐ ज्ञानात्मने नमः।
ॐ मायातत्त्वाय नमः । ॐ कलातत्त्वाय नमः । ॐ विद्यातत्त्वाय नमः । तथा ॐ परतत्त्वाय नमः । (अनुष्ठानप्रकाशः पृ. 67-68)
शैवपीठ शक्ति की पूजा
अनुष्ठानप्रकाशः के अनुसार शैवपीठशक्ति की पूर्वादिक्रम से पूजा निम्न मन्त्रों को बोलते हुए करें-
ॐ वामायै नमः। ॐ ज्येष्ठायै नमः। ॐ रौद्रयै नमः । ॐ काल्यै नमः। ॐ
कलविकरिण्यै नमः। ॐ बलविकरिण्यै नमः । ॐ बलप्रमथिन्यै नमः। ॐ सर्वभूतदमन्यै नमः। तथा मध्य में मनोन्मन्यै नमः बोलें। (अनुष्ठानप्रकाशः पृ. 126) 20-इसके बाद मन्त्र-पाठपूर्वक आसन प्रदान कर मूल मन्त्र से मन्त्र के देवता की मूर्ति की कल्पना करें अथवा सोने की मूर्ति स्थापित करें।
तदनन्तर ध्यान तथा आवाहन आदि षोडश उपचारों से मूर्ति की पूजा करके पुष्पांजलि टेकर शास्त्रीय ढंग से आवरणपूजा करें। आवरणपूजा के बाद जप्यमन्त्र की भी पूजा करें।
इसके पश्चात् उपयुक्त संस्कारित जप-माला को शुद्ध जल से मूलमन्त्र द्वारा प्रोक्षणकर ‘ॐ मां’ माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि । चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव।।’ मन्त्र से प्रार्थना कर ‘हीं सिद्ध्यै नमः’ मन्त्र से उसकी गन्ध, पुष्पादि पंचोपचार से पूजा कर ‘गं अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे। जपकाले तु सततं ? प्रसीद मम सिद्धये।’ इस प्रकार प्रार्थना कर माला को दाहिने हाथ में लेकर वस्त्र से ढक लें अथवा गोमुखी के अन्दर रख लें।
तदनन्तर जप से पहले देवी का ध्यान कर अपने मन्त्र का अभीष्ट संख्या में शास्त्रोक्त तरीके से अथवा गुरु के उपदेशानुसार जप करें।
जप के अन्त में माला को मस्तक से लगा कर (स्पर्श कराकर) नमस्कार करते हुए इस प्रकार प्रार्थना करें। ‘ॐ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा भव। शिवं कुरुष्व में भद्रे यशो वीर्यं च सर्वदा।’ (आचारेन्दुः पृ. 134)
उपर्युक्त प्रार्थना कर ‘हीं सिद्ध्यै नमः’ मन्त्र को पढ़ते हुए माला को सिर से लगा कर पवित्र एवं गुप्त स्थान पर रख दें।
अन्त में पुनः आचमन करके ऋषि आदि की मानसपूजा करके जप के फल को शास्त्रोक्त तरीके से देवता के दाहिने हाथ तथा देवी के बाँये हाथ में निवेदन करें। और जप की समाप्ति पर शास्त्रीय तरीके से जप की संख्या का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मणभोजन करायें।
उपर्युक्त विस्तृत एवं चरणबद्ध तरीके से जप करना अगर संभव नहीं है तो व्यक्ति को जप की संक्षिप्त विधि को अपनानी चाहिये। अर्थात् ऊपर के जितने अंग हैं उनमें से जितना अंग संभव हो सके उसे अवश्य करना चाहिये। परन्तु मन्त्र के ऋषि, छंद, देवता का विनियोग पूर्वक उल्लेख तथा तदनुसार अंगन्यास एवं षडंगन्यास को अवश्य ही करना चाहिये।
(उपर्युक्त लेख अनुष्ठानप्रकाशः तथा आचारेन्दुः आदि ग्रन्थों पर आधारित है।)
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