अलख निरञ्जन

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 14 February 2025
  • |
  • 3 Comments

अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)-
 

१. लक्ष = देखना, १०० हजार। लक्ष दर्शनाङ्कनयोः (पाणिनीय धातु पाठ, १०/५), आलोचने (१०/१६४)-

१. देखना, २. चिह्न करना, संकेत लगाना, ३. तारतम्य देखना, विवेचन, निरूपण करना। अपने आकार का १०० हजार भाग ही बिना साधन आंख से देख सकते हैं, अतः लक्ष = १०० हजार।
२. अञ्जन-देखने का साधन है-अञ्जन। तन्त्र में एक सिद्धि है अञ्जन-इसे आंख में लगाने से दूर की या अदृश्य चीजें दीखती हैं।


अञ्जन के कई रूप हैं-

१. ब्याप्ति (आकाश में स्थिति), २. आवरण (सीमाबद्ध पिण्ड), ३. परिवश से भिन्न रूप रंग, ४. गति (रूप या स्थान परिवर्तन), ५. प्रकाश।
 

(१) व्यक्त करने के अर्थ में-पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते (ऋक्, १/९२/१, साम, २/११०५, निरुक्त, १२/७)
 

(२) चलता हुआ, प्रकाशित करता हुआ, या व्याप्त करता हुआ-
स इमा विश्वा भुवनानि अञ्जत्। (अथर्व, १९/५३/२)
 

यह काल सूक्त में है। काल का आभास परिवर्तन से होता है। परिवर्तन क्या है-किसी स्थान पर एक वस्तु थी, वह अन्य स्थान पर चली गयी-यह गति या क्रिया है। एक वस्तु जिस रूप में थी, वह अन्य रूप में दीखती है।
कई वस्तुओं का संग्रह एक स्थिति में था, अन्य स्थिति में दीखता है। इनको परिणाम, पृथक् भाव या व्यवस्था क्रम कहा है-
परिणामः पृथग्भावो व्यवस्था क्रमतः सदा। भूतैष्यद्वर्त्तमानात्मा कालरूपो विभाव्यते॥
(सांख्य कारिका, मृगेन्द्रवृत्ति दीपिका, १०/१४) 
 

(३) उबटन लगाना, रंग करना-यदाञ्जनाभ्यञ्जनमाहरन्ति (अथर्व, ९/६/११)


(४) तेज, प्रकट होना-पथो देवत्राञ्जसेव यानान् (ऋक्, १०/७३/७)


(५) प्रकाश, व्यक्त-काणस्य स्वस्मिन्नञ्जसि (ऋक्, १/१३२/२)


(६) गति, परिवर्तन-अञ्जसा शासता रजः (ऋक्, १/१३९/४)


(७) व्यक्त रूप-वक्षः सुरुक्मा रभासासो अञ्जयः (ऋक्, १/१६६/१०)
श्रिये मर्यासो अञ्जीरकृण्वत (ऋक्, १०/७७/२)


३. निरञ्जन तत्त्व-जो किसी प्रकार के अञ्जन से नहीं दीखे या अनुभव किया जा सके वह निरञ्जन तत्त्व है। यह अति सूक्ष्म, अव्यक्त  होने के कारण अलख (अदृश्य) भी है। 
मनुष्य से आरम्भ कर छोटे विश्व क्रमशः १-१ लाख भाग छोटे हैं-


वालाग्र शत साहस्रं तस्य भागस्य भागिनः। तस्य भागस्य भागार्धं तत्क्षये तु निरञ्जनम् ॥ (ध्यानविन्दु उपनिषद् , ४)
मनुष्य आकार का १ लाख भाग कलिल (Cell) है, जो स्वयं में एक विश्व है-जीव विज्ञान के लिए।
वालाग्रमात्रं हृदयस्य मध्ये विश्वं देवं जातरूपं वरेण्यं (अथर्वशिर उपनिषद्, ५)
अनाद्यनन्तं कलिलस्य मध्ये विश्वस्य स्रष्टारमनेकरूपम् । 
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्व पाशैः ॥ (श्वेताश्वतर उपनिषद्, ५/१३)


पुनः इसका १ लाख भाग जीव है जो वालाग्र का १०,००० भाग है, तथा किसी कल्प (अणु मिलन से निर्माण) में नष्ट नहीं होता। रसायन विज्ञान में परमाणु का आकार और गुण यही कहा है।


वालाग्र शत भागस्य शतधा कल्पितस्य च ॥ 
भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते ॥ (श्वेताश्वतर उपनिषद्, ५/९)


परमाणु का १ लाख भाग कुण्डलिनी का केन्द्रीय भाग है-
षट्चक्र निरूपण, ७-एतस्या मध्यदेशे विलसति परमाऽपूर्वा निर्वाण शक्तिः कोट्यादित्य प्रकाशां त्रिभुवन-जननी कोटिभागैकरूपा । केशाग्रातिगुह्या निरवधि विलसत .. ।९। अत्रास्ते शिशु-सूर्यकला चन्द्रस्य षोडशी शुद्धा नीरज सूक्ष्म-तन्तु शतधा भागैक रूपा परा ।७।
इससे छोटे ४ स्तर हैं, जिनकी माप परिभाषित नहीं है, या हमारे सूक्ष्मतम मापदण्डों से छोटे है। सबसे छोटे ऋषि (रस्सी, String) से आरम्भ कर ये स्तर हैं-१. पितर (अगले स्तर का निर्माता या निर्माण अवस्था, Quark ?), २. देव-दानव (२ प्रकार के प्राण, जिस प्राण से निर्माण सम्भव है, वह देव है, निष्क्रिय प्राण असुर है। ३. सूक्ष्म गतिशील कण (जगत्) ३ प्रकार के-चर (Lepton), स्थाणु (Baryon), अनुपूर्व = आगे पीछे जोड़ने वाले (Meson)।
ऋषिभ्यः पितरो जाताः पितॄभ्यो देव दानवाः। देवेभ्यश्च जगत्सर्वं चरं स्थाण्वनुपूर्वशः॥ (मनु स्मृति, ३/२०१)
मनुष्य से आरम्भ कर छोटे विश्वों का क्रम हुआ-(१) मनुष्य = १.३५ मीटर, (२) कलिल = मीटर का १० घात ५ भाग, (३) जीव या अणु-मीटर का १० घात १० भाग (Angstrom unit), (४) कुण्डलिनी-मीटर का १० घात १५ भाग (atom nucleus), (५) जगत् कण- मीटर का १० घात २० भाग, (६) देव-दानव- मीटर का १० घात २५ भाग, (७) पितर- मीटर का १० घात ३० भाग। (८) ऋषि - १.३५ मीटर का १० घात ३५ भाग।  
आधुनिक क्वाण्टम मेकानिक्स में सबसे छोटी दूरी यही कही गयी है-प्लाङ्क दूरी (Planck length)। इस दूरी को प्रकाश जितने समय में पार करता है, वह सबसे छोटा काल मान है- सेकण्ड का १० घात ४३ भाग।
भागवत पुराण में भी कहा है कि अतिसूक्ष्म या अति विशाल देश-काल का अनुभव सम्भव नहीं है। परमाणु को प्रकाश जितने समय में पार करता है, वह काल का परमाणु है।
कैवल्यं परममहान् विशेषो निरन्तरः॥२॥
एवं कालोऽप्यनुमितः सौक्ष्म्ये स्थौल्ये च सत्तम॥ संस्थानभुक्ता भगवानव्यक्तो व्यक्तभुग्विभुः॥३॥
स कालः परमाणुर्वै यो भुङ्क्ते परमाणुताम्॥४॥ (भागवत पुराण, ३/११)
 



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

3 Comments

abc
Yash vardhan 22 March 2025

Very interesting information Radhe Radhe

Reply
abc
Yash vardhan 22 March 2025

Very interesting information Radhe Radhe

Reply
abc
Sanyam 16 February 2025

ज्ञानवर्धक जानकारी । धन्यवाद

Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment