अंत्येष्टि कर्म के स्वरूप पर एक विहंगम दृष्टि

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक) वैदिक व्यवस्था के अनुसार मनुष्य देह त्याग के पश्चात जीव तीन मार्ग से आगे की यात्रा करता है जिसमें प्रथम उत्तरायण मार्ग, दूसरा दक्षिणायन मार्ग एवं तीसरा मार्ग अधोगति । 

इन तीन मार्गों में से प्रथम दो मार्गों की यात्रा के लिए जीव अपने मनुष्य जीवन काल में ही वैदिक कर्मो के अनुष्ठान के परिणाम स्वरूप शरीर निर्माण कर लेता है परन्तु जो कोई मनुष्य किसी त्रुटि की वजह से मरणोपरान्त यात्रा के लिए शरीर न निर्माण कर सका हो उसके लिए पुत्र द्वारा समस्त प्रेत कर्मों को करने का विधान है ताकि वह जीव भी सुगमता पूर्वक यम मार्ग की यात्रा कर सके। 

इन तीनो मार्गों का वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद,  छान्दोग्योपनिषद, गरुण पुराण, पारस्कर गृह्यसूत्र तथा  भागवत के सप्तम स्कन्ध में है । मृतक के लिए पुत्र या संस्कार कर्ता द्वारा किया जाने वाला सम्पूर्ण कर्म  = ५० पिण्ड दान मलिन षोडशी + मध्यम षोडशी + महैकोदिष्ट + उत्तम षोडशी + सपिण्डीकरण १६    +   १६  +   १ + १६  + १   =५० पिण्ड #मलिनषोडशी + #मध्यमषोडशी + #उत्तमषोडशी = प्रेतत्व की निवृति #महैकोदिष्ट = शव की विशुद्धि हेतु #सपिण्डिकरण  = 

पितृ पंक्ति या समानता  की प्राप्ति हेतु आद्यं शवविशुद्ध्यर्थं कृत्वान्यच्च त्रिषोडशम्। 

पितृपंक्तिविशुद्ध्यर्थं शतार्द्धेन तु योजयेत् ॥ 

शतार्द्धेन विहीनो यो मिलितः पतिभाङ्न हि। 

चत्वारिंशत् तथैवाष्टश्राद्धं प्रेतत्वनाशनम् ॥ 

सकृदूनशतार्द्धेन सम्भवेत् पतिसन्निधः। 

मेलनीयः शतार्द्धेन सन्धिः श्राद्धेन तत्त्वतः ॥ —गरुड़ पुराण प्रेत कल्प ३५/३८ -४०



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