भैरवागम

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  • तंत्र शास्त्र
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  • 31 October 2024
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डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध सम्पादक )- Mystic Power-श्रीकंठी संहिता में 64 भैरवागमों का निर्देश मिलता है। ये सब आगम अद्धैत सिद्धांत के प्रतिपादक हैं। इनके नाम इस प्रकार है:

  1. भैरवाष्टक (स्वच्छंद भैरव, चंड भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, असितांग भैरव, महोछ्वास भैरव, कपालीश भैरव, रुरु भैरव)।2. यामलाष्टक (इसमें आठ यामलों का नाम है यथा - ब्रह्म यामल, विष्णु यामल, स्वच्छंद यामल, रुरु यामल, अथर्वन् यामल, रुद्र यामल और वेताल यामल। अष्टम यामल अज्ञात है)। 3. मत्ताष्टक (रक्त, लंपट, लक्ष्मी, चालिका, पिंगला, उत्फुल्लक, बिंबाद्यमत, ये सात मत हैं। अष्टम का पता नहीं)। 4. मंगलाष्टक (इसमें आठ मंगल नामक ग्रंथ निविष्ट हैं, यथ-पीचु भैरवी, तंत्र भैरवी, ब्राह्मी कला, विजया, चंद्रा, मंगला तथा सर्वमंगला) 5. शक्राष्टक (इसमें मंत्रचक्र, वर्णचक्र, शक्ति चक्र, कलाचक्र, बिंदुचक्र, नादचक्र, गुह्मचक्र और पूर्णचक्र ये आठ चक्र हैं।) 6. बहुरूपाष्टक (इसमें भी आठ ग्रंथ हैं: अंधक, रुरुभेद, अज, वर्णभेद, यम, विडंग, मातृरोदन, जालिम) 7. वाणीशष्टक (भैरवी, चित्रिका, हिंसा, कदंबिका, ह्रल्लेखा, चंद्रलेखा, विद्युल्लेखा, विद्वत्मत ये आठ हैं) 8. शिखाष्टक (भैरवी शिखा; विनाशिखा, विनामनि, संमोह, डामर, आथवक, कबंध, शिरच्छेद) 802 ई0 में चार तंत्रग्रंथ भारत से कंबोज गए थे। उनमें विनाशिखा, शिरच्छेद और संमोह ये तीन ग्रथ पूर्वेक्त सूची में विद्यमान हैं। विनाशिखा शुद्ध नयग्रंथ है। डॉ॰ प्रबोधचंद्र बागची ने विनाशिक के नाम से इसे निर्दिष्ट किया है। यह विनाशिखा का ही अपभ्रंश प्रतीत होता है। चतुर्थ पुस्तक का नाम न्यायोत्तर है। (द्रष्टव्य: स्टडीज इन तंत्राज खंड, 1, पृ0 2, प्रबोधचंद्र बागची)। डॉ॰ बागची समझते हैं कि नेपाल में'नि:ष्वास तत्व-संहिता' की जो हस्तलिखित पुस्तक है और जिसका विवरण नेपाल दरबार कैटलाग के प्रथम खंड में पृ0 137 में दिया गया है वह अष्टादश रुद्रागम के अंतर्गत नि:श्वास तंत्र का ही नामांतर है। इसके चार भाग या सूत्र है। सब मिलाकर नयोत्तर तंत्र नाम से ये जाने जाते हैं।



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