डॉ. इंदुनाथ शर्मा - ज्योतिषाचार्य
Mystic Power- प्रायः समस्त भारतीय विज्ञान का लक्ष्य एकमात्र अपनी आत्मा का विकास कर उसे परमात्मा में मिली देना या ततुल्य बना लेना है। दर्शन या विज्ञान सभी का ध्येय विश्व के गूढ़ तत्त्वों के रहस्य को स्पष्ट करना है। ज्योतिष भी विज्ञान होने के कारण इस अखिल ब्रह्माण्ड के रहस्य को व्यक्त करने का प्रयत्न करता है ।
आत्मा के स्वरूप का स्पष्टीकरण करना योग या दर्शन का विषय है; लेकिन ज्योतिषशास्त्र में भी इस विषय पर यथाप्रसन्न विचार किया गया है। भारत की प्रमुख विशेषता आत्मा की श्रेष्ठता है । इस प्रिय वस्तु की प्राप्ति के लिए सभी दार्शनिक या वैज्ञानिक अपने अनुभवों की थैली बिना खोले नहीं रह सकते । फलतः दर्शन के समान ज्योतिष ने भी आत्मा के श्रवण, मनन और निदिध्यासन पर गणित के प्रतीकों द्वारा जोर दिया है। यों तो स्पष्ट रूप से ज्योतिष शास्त्र में आत्म- साक्षात्कार के उक्त साधनों सा कथन नहीं मिलेगा, लेकिन प्रतीकों से उक्त विषय सहज ही हृदय गम्य किये जा सकते हैं । प्रायः देखा भी जा सकता है कि उत्कृष्ट आत्मज्ञानी ज्योतिष रहस्य का वेत्ता अवश्य होता है । प्राचीन या अर्वाचीन युग में दर्शन शास्त्र से अपरिचित व्यक्ति ज्योतिर्विद होने का भी अधिकारी नहीं माना गया।
ज्योतिषशास्त्रका अन्य नाम ज्योतिःशास्त्र भी आता है, जिसका अर्थ प्रकाश देने वाला या प्रकाश के सम्बन्ध में बतलानेवाला शास्त्र होता है, अर्थात् जिस शास्त्र से संसार का धर्म, जीवन-मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दुःख के सम्बन्ध में पूर्ण प्रकाश मिले वह ज्योतिषशास्त्र है । छान्दोग्य उपनिषद् में ब्रह्म का वर्णन करते हुए बताया है — "मनुष्य का वर्तमान जीवन उनके पूर्व संकल्पों और कामनाओं का परिणाम है तथा इस जीवन में बढ़ जैसा संकल्प करता है, वैसा ही यहाँ से जाने पर बन जाता है । अतएव पूर्ण प्राणमय, मनोमय, प्रकाशरूप एवं समस्त कल्पनाओं और विषयों के अधिष्ठानभूत ब्रह्म का ध्यान करना चाहिए।" ( छा० उ० ३.१४ ) इससे स्पष्ट है कि ज्योतिष के तत्त्वों के आधार पर वर्तमान जीवन का निर्माण प्रकाशरूप ज्योतिःस्वरूप बढ़ा का सान्निध्य प्राप्त किया जा सकता है ।
यहाँ स्मरण रखने की बात यह है कि मानव जीवन नियमित सरल रेखा की गति से नहीं चलता, बल्कि इस पर विश्वजनीन कार्यकलापों के घात-प्रतिघात लगा करते हैं। सरल रेखा की गति से गमन करने पर जीवन की विशेषता भी चली जायगी; क्योंकि जब तक जगत् के व्यापारों का प्रवाद जीवनरेखा को धक्का देकर आगे नहीं बढ़ाता अथवा पीछे लोटकर उसका दास नहीं करता तबतक कीवन की दृढ़ता प्रकट नहीं हो सकती। निष्कर्ष यह है कि सुख और दुःख के भाव ही मानव को गतिशील बनाते हैं, इन भावों की उत्पत्ति बाह्य और आन्तरिक जगत् की संवेद- छाओं से होती है । अतएव मानव जीवन अनेक समस्याओं का सन्दोह और उन्नति- अवनति, आरमविकास और इस के विभिन्न रहस्यों का पिटारा है। पोतपत्र आत्मिक, अनामिक भावों और रहस्यों को व्यक्त करने के साथ-साथ उपर्युक्त सदोद और पिटारे का प्रत्यक्षीकरण कर देता है। भारतीय योतिष का रहस्य इसी कारण अतिगूद हो गया है।जीवन के सभी विषयों का इस शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय बनना ही इस बात का साक्षी है कि यद जीवन का विश्लेषण करने वाला शास्त्र है ।
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