दैवज्ञ स्वरूप-मीमांसा और महिमा

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  • ज्योतिष विज्ञान
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  • 31 October 2024
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mystic power डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)-   शान्तो विनीत: शुद्धात्मा देवब्राह्मणपूजक:। विमुखः परनिन्दासु वेदपाठी जितेन्द्रिय:॥ देवताराधनासक्तः स्वरशास्त्रविशारद: | सिद्धान्तसंहितावेत्ता जातके च कृतश्रम:॥ प्रश्नज्ञ: शकुनज्ञश्च प्रशस्तो गणकः: स्मृतः। प्रमाणं बचन॑ तस्य भवत्येव न संशय:॥ ज्योतिष के ज्ञाता कों चाहिये कि वह शान्त स्वभाववाला, विनयसे सम्पन्न, पवित्र अन्तःकरणवाला, देवताओं तथा ब्राह्मणों में श्रद्धा रखनेवाला, परनिन्‍दा से विमुख रहने वाला, वेद का पारायण करनेवाला तथ जितेन्द्रिय हो। वह देवताओं की आराधना में परायण् रहने वाला और सूर्य तथा चन्द्रस्वर का ज्ञान कराने वाले स्वरोदयशास्त्रका पारगामी विद्वान्‌ हो। वह ज्योतिषशास्त्र के सिद्धान्त (गणित) एवं संहितास्कन्ध का ज्ञाता हो तथा उसने जातकशास्त्र (फलितज्योतिष)-में पर्याप्त श्रम किया हो। प्रश्नविद्या की जानकारी रखनेवाला और शकुनशास्त्र में प्रवीण--इस प्रकारका व्यक्ति श्रेष्ठ गणक (ज्योतिषी) कहा गया है। उसका कहा हुआ वचन प्रामाणिक होता है, इसमें कोई संशय नहीं। [ अत्रि ] ग्रन्थतश्चार्थतश्चैव कृत्स्त॑ जानाति यो द्विज:। अग्रभुक्‌ स भवेच्छाद्धे पूजित: पंक्तिपावन:॥ नासांवत्सरिके देशे वस्तव्यं भूतिमिच्छता। चक्षुर्भूतो हि यत्रैष पापं तत्र न विद्यते॥ मुहूर्त. तिथिनक्षत्रमृतवश्चायने.._ तथा। सर्वाण्येबाकुलानि स्युर्न स्थात्सांवत्सरो यदि॥ कृत्स्नाड्रोपाड्कुशलं होरागणितनैष्ठिकम्‌। यो न पूजयते राजा स नाशमुपगच्छति॥ अप्रदीपा यथा रात्रिरनादित्य॑ यथा नभः। तथासांवत्सरो राजा भ्रमत्यन्ध इवाध्वनि॥ तस्माद्राज्ञाभिगन्तव्यो विद्वान्‌ सांवत्सरो5ग्रणी:। जय॑ यश: श्रियं भोगान्‌ श्रेयश्च समभीप्सता॥   जो द्विज इस ज्योतिषशास्त्र को ग्रन्थके अनुसार अथवा अर्थके अनुरूप भलीभाँति जान लेता है, वह श्राद्ध में प्रथम  भोजन करने योग्य, पंक्तिपावन तथा सर्वत्र पूज्य हो जाता है। कल्याण कामी व्यक्ति को ऐसे देश में निवास नहीं करना चाहिये, जहाँ ज्योतिर्विद्‌ न रहता हो; क्योंकि सब बातों का नेत्ररूप दैवज्ञ जहाँ रहता है, वहाँ पाप नहीं रहता। यदि ग्रह-नक्षत्रोंकी गणना 'करनेवाला ज्योतिर्विद्‌ न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतुएँ तथा अयन-ये सभी व्याकुल हो जायँ। सम्पूर्ण अंगों तथा उपांगों सहित वेदशास्त्र में कुशल एवं होराशास्त्र तथा गणितशास्त्र में परिनिष्ठित दैवज्ञ की जो राजा सेवा-पूजा नहीं करता, वह विनाश को प्राप्त होता है। जिस प्रकार दीपक (प्रकाश)-से विहीन रात्रि तथा सूर्यसे रहित आकाश होता है, वैसी ही स्थिति दैवज्ञके बिना राजा की होती है, वह (मार्ग का ज्ञान करानेवाले ज्योतिषीके अभाव में) अन्धे की भाँति मार्ग में इधर-उधर भटकता रहता है। अत: विजय, यश, लक्ष्मी,उत्तम भोग तथा कल्याणकी अभिलाषा रखनेवाले'राजाको विद्वान्‌ तथा श्रेष्ठ ज्योतिर्विदके समीपमें जानाचाहिये अर्थात्‌ उसके परामर्शके अनुसार ही कार्य करना चाहिये। [ बृहत्संहिता अ० २]   'गणितं जातकं शाखां यो वेत्ति द्विजपुड्व:। त्रिस्कन्धज्ञो विनिर्दिष्ट: संहितापारगशच सः॥ जो द्विजश्रेष्ठ गणितस्कन्‍्ध तथा जातकशास्त्रको सम्यक्‌ रूपसे जानता है और संहितास्कन्धका पारगामी विद्वान्‌ है, वह त्रिस्कन्धज्ञ कहा गया है। [गर्ग] 'गणितेषु प्रवीणो यः शब्दशास्त्रे कृतश्रमः। न्यायविद्‌ बुद्धिमान्‌ देशदिक्कालज्ञो जितेच्धिय:॥ ऊहापोहपदु्होरास्कन्धश्रवणसम्मतः । मैत्रेय सत्यतां याति तस्य वाक्य न संशय:॥ महर्षि पराशर कहते हैं- हे मैत्रेय  जो गणित में प्रवीण हो, व्याकरणशास्त्र में जिसने खूब श्रम किया हो, न्यायशास्त्र का जाननेवाला हो, बुद्धिमान्‌ हो, देश-दिक्‌ तथा काल का ज्ञान रखने वाला हो, तर्क-वितर्क करने में अत्यन्त पटु हो और होराशास्त्र (फलित ज्योतिष)-के श्रवण में जिसकी विशेष अभिरुचि हो, उसका कहा हुआ सब सत्य होता है, इसमें कोई संशय नहीं है। [ बृहत्पाराशरहोराशास्त्र ]   त्रिस्कन्धज्ञों दर्शनीयः श्रौतस्मार्तक्रियापर:। निर्दाम्भिक: सत्यवादी दैवज्ो दैववित्स्थिर:॥ * दैवज्ञ सिद्धान्त, संहिता तथा होरा--तीनों स्कन्धों को जानने वाला, दर्शन करने योग्य, श्रुति-स्मृति विहित कर्म करने वाला, पाखण्डरहित, सत्यवादी, दैव को जानने वाला तथा स्थिर मतिवाला होता है। [ नारदसंहिता १। ९१६]   स्तु सम्यक्‌ विजानाति होरागणितसंहिता:। अभ्यर्च्य: स नरेन्द्रेण स्वीकर्तव्यों जयैधिणा॥ विजय की अभिलाषा रखने वाले राजा को होराशास्त्र, गणितविद्या तथा संहिताशास्त्र (तीनों स्कन्धों)-को जो                          भलीभाँति जानता है, ऐसे दैवज्का आदर-मान करना चाहिये और उसे अंगीकार करना चाहिये। [बृहत्संहिता २२१]



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