देवता के चित्र पर त्राटक

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  • तंत्र शास्त्र
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  • 31 October 2024
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योगी आनन्द जी Mystic Power-जो अभ्यासी भक्ति मार्ग वाले साधक हैं, अगर वो चाहें तो अपने इष्ट अथवा अपने मनपसन्द देवता पर त्राटक का अभ्यास कर सकते हैं। ऐसे अभ्यासियों को चार्ट पर बिन्दु बनाकर अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं है। अगर शुरुआत में चार्ट पर बिन्दु बनाकर अभ्यास करें, तब सरलता सी रहती है। सफेद रंग के चार्ट के मध्य में नीले रंग का त्राटक एक बिन्दु होता है। चार्ट पूर्ण रूप से स्वच्छ रहता है तथा अन्य किसी प्रकार की डिजाइन नहीं होती है। त्राटक करते समय मस्तिष्क पर अन्य किसी प्रकार के दृश्य या रंग का प्रभाव नहीं पड़ता है। जब आप किसी देवता के चित्र पर अभ्यास करेंगे, तब उस देवता के चित्र पर स्थित विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रभाव पड़ता है। शुरुआत में थोड़ा अजीब सा लगता है, फिर आदत सी पड़ जाती है। बहुत से अभ्यासी अपने इष्ट के चित्र पर त्राटक का अभ्यास करते हैं, उन्हें ऐसा करना अच्छा भी लगता है। मगर कुछ अभ्यासी अपने ईष्ट के चित्र पर अभ्यास करना असहज महसूस करते हैं। अगर में अपनी बात कहूँ, तो मैंने अपने इष्ट के चित्र पर त्राटक का काफी अभ्यास किया है। मैं विन्दु पर भी अभ्यास किया करता था, हमारे लिए दोनों पर अभ्यास करना आवश्यक था। मगर मैंने देखा है कि कुछ अभ्यासियों को शिकायत रहती है- मुझे देवता के चित्र पर देवता का पूरा चेहरा दिखाई देता है, उस चेहरे पर विभिन्न रंग विद्यमान रहते हैं तथा कुछ अन्य डिजाइन भी बना होता है, इससे मन चंचल सा रहता है, इसे एकाग्र करने में चंचलता सी महसूस होती है। जो अभ्यासी देवता के चित्र पर त्राटक का अभ्यास करना चाहते हैं, ऐसे साधक अभ्यास अवश्य करें। अपने मन पसन्द देवता का फोटो, जिस मुद्रा बाला पसन्द हो, उसे बाजार से खरीद लें और उस फोटो को त्राटक करने के स्थान पर दीवार पर टेप से चिपका लें। चिपकाने का तरीका चार्ट के समान होना चाहिए, चाहें तो फोटो को फ्रेम करा सकते हैं। फोटो पर देवता के मस्तक पर भृकुटि के मध्य क्षेत्र पर एक छोटा सा बिन्दु बना लें, फिर उसी बिन्दु पर त्राटक का अभ्यास करें, अभ्यास वैसे ही करना चाहिए, जैसा बिन्दु त्राटक पर लिखा हुआ है। अगर अभ्यासी चाहें तो इष्ट के फोटो पर बिन्दु का निशान न लगाएं, ऐसी ही अवस्था में भृकुटि पर ही त्राटक का अभ्यास करें। जब आँखों में जलन के कारण आँखें बन्द करनी पड़े, तब आँखें बन्द कर लें। कुछ समय तक आँखें बन्द रखें, खोलने का प्रयास न करें। फिर मुलायम कपड़े से जो आपने पहले ही तह लगाकार मोटा कर लिया था, उसे हाथ में लेकर आँखों के आंसू धीरे-धीरे पोछे। उस समय आँखों में जलन हो रही होती है, जलन को होने दें, हाथों की उंगलियों से आँखों पर किसी प्रकार दबाव न दें और न ही आँखों में खुजली करें। ऐसी अवस्था में साधक को थोड़ी बेचैनी या परेशानी अवश्य होती है। इस परेशानी को अभ्यासी को सहन करना चाहिए। जब अभ्यासी आँखें बन्द किये बैठा हो, उस समय उसे फोटो के देवता का चित्र देखने का प्रयास करें, शुरुआत में बन्द आँखों में चित्र नहीं बनेगा, कुछ दिनों तक इसी प्रकार का अभ्यास करने पर देवता का चित्र बनने लगेगा। आँखों की जलन शान्त होने पर फिर त्राटक का अभ्यास करना शुरु कर देना चाहिए। जो साधक योग का अभ्यास (धारणा, ध्यान आदि) कर रहे हैं, उन्हें अपने इष्ट के स्वरूप का काल्पनिक चित्र आज्ञाचक्र (भृकुटि पर) पर बनाना होता है तथा मन को भी केन्द्रित करना पड़ता है। इस प्रकार के त्राटक के अभ्यास से साधक का मन ध्यान करते समय भृकुटि पर केन्द्रित होने लगता है। इससे ध्यान का अभ्यास करने में सफलता रहती है तथा अभ्यास में सफलता भी मिलती है। देवता के फोटो पर तब तक अभ्यास करते रहना चाहिए, जब तक उसे नीले रंग की किरणें आँखों के द्वारा निकलती हुई न दिखाई देने लगें, तथा नीले रंग के प्रकाश से फोटो का वह भाग थोड़ा सा त्राटक ढक न जाये, जहाँ पर (जिस स्थान पर) बाटक का अभ्यास कर रहा हो। जब त्राटक का अभ्यास फोटो पर एक घण्टे का हो जाये, तब उसे छोड़कर आगे का अभ्यास करना शुरु कर देना चाहिए।



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