हनुमान-दर्शन ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’

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  • 31 October 2024
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शशांक शेखर शुल्ब- हनुमानजी की प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी हैं। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की हैअन्य लोगों ने भी हनुमान जी की स्तुतियाँ स्रोतों आदि की रचनाएं लिपिबद्ध कीं। प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। कहा जाता है कि श्री हनुमान वडवानल स्रोत के जाप से तुरंत दर्शन देते हैं बजरंग बली। विभीषण ने की थी हनुमानजी की प्रथम स्तुति विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक स्तोत्र की रचना की है। इसे ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’ कहते हैं। अगली स्लाइड्स में हम इस वडवानल स्तोत्र के अतिरिक्त आनन्द रामायण की द्वादस नामावली स्तोत्र, धन वर्षा कराने वाली हनुमान स्तुति, आदि के साथ साथ हनुमानजी के प्रमुख दिवसों मंगलवार, शनिवार या हनुमान जयंती को किये जाने वाले कुछ विशेष कार्यों की जानकारी भी दी है। इसके साथ ही अभी तक किन किन महापुरुषों को श्री हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिए हैं, इसका भी जिक्र किया है। इनके जप या पाठ क्यों व कैसे करें? इस स्रोत के जप से लाभ यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है। हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र को नियमित रूप से पाठ करने से सभी समस्याओ का हल निश्चित मिलता है। यदि आप किसी भी रोग से परेशान हो, किसी तरह का भय, या बुरी चीजों से मुक्त होना चाहते हो तो ४१ दिनों तक श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करने से लाभ प्राप्त होता हैं। स्तोत्र विधि, विनियोग, ध्यान मंगलवार या शनिवार के दिन सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये। ध्यान- “मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।” श्री वडवानल स्तोत्र ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच- मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा। श्री वडवानल स्तोत्र ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा। ।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।। कथा-प्रसंग जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर ‘राम’ नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने का अनुरोध किया था, जिसे प्रभु राम ने स्वीकार कर लिया था। हनुमान जी को प्रसन्न करने, उनके साक्षात दर्शन कैसे करें..? सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक प्रत्येक मंगलवार या शनिवार को ये उपाय कर सकते हैं, उनकी कृपा बरसेगी ही। ~ हनुमानजी की पूजा-अर्चना और उनका ध्यान करने से मंगल दोष का प्रभाव दूर होता है। सुबह स्नान करने के पश्चात बड़ के पेड़ को प्रणाम करके एक पत्ता तोड़ें उसे साफ-स्वच्छ जल में गंगा जल मिलाकर अच्छे से धो लें। शुद्ध लाल कपड़े से पोंछ कर कुछ समय के लिए हनुमान जी के स्वरूप के समक्ष रखें। फिर पेड़ की डंडी अथवा तीली की सहायता से केसर को स्याही के रूप में लेते हुए ‘श्रीराम’ लिखें। हनुमान मंदिर जाएं। पान और लाल फूल चढ़ाएं। लाल वस्त्र पहनें या लाल कपड़ा साथ रखें। लाल फूल चढायें। घर से निकलने से पहले शहद का सेवन करें। इस दिन कांटा, छुरी, कैंची, नेल कटर आदि धारदार वस्तुएं कभी भी ना खरीदें। गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाएं। जपें– ‘ॐ क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:’ ‘ॐ श्री हनुमंते नमः’ ‘ॐ रामदूताय नम:’ आनन्दरामायण में बताई गई ‘हनुमानजी की द्वादस नामावली स्तुति’ ” हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:। रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:।। उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।। एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:। स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।। तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत्। राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।। ” -कहा जाता है कि आनन्द रामायण की हनुमान स्तुति में वर्णितहनुमान जी के बारह नाम लेने से हर तरह के दुख दूर हो जाते हैं। ~ हर नाम को जपने से लाभ होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। ~ बजरंगबली के इन बारह नामों का पाठ करने से शनि की साढ़ेसाती और ढय्या से भी मुक्ति मिल जाती है।



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