काश्मीर शैव दर्शन में दीक्षा

img25
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

(डॉ० बलजिन्नाथ पण्डित)-   मानव जीवन का प्रयोजन Mystic Power-मानव जीवन का लक्ष्य भोग है या मोक्ष, इस विषय मे काश्मीर शैव दर्शन की दृष्टि में ये दोनों ही प्रयोजन मानव जीवन के लक्ष्य माने गये है । तदनुसार जब तक मानव के अन्तस्तल में भोग की वासना उभरती ही रहे, तब तक उसकी मोक्षसाधना सफल नहीं हो पाती । इसी विचार से कश्मीर के शेव साधक और शेव गुरु प्रायः सभी गृहस्थी सभी गृहस्थी हुआ करते थे शास्त्रीय परम्परा और लोकाचार इन दोनों के अनुसार चलते हुए न्यायोचित विषय-भोग का आस्वाद लेते हुए साथ-साथ तान्त्रिक मोक्षसाधना का भी अभ्यास किया करते थे । उसके अभ्यास के फलस्वरूप ज्यो ही उन्हें आत्म- आनन्द का आस्वाद आने लगता था, त्यो ही उनकी दृष्टि में उस आनन्द के चमत्कार के सामने समस्त विषय-भोगो का स्वाद फीका पड़ जाता था। वैसा होते रहने पर उनके हृदय में विषय-भोगो के प्रति स्वतः सिद्ध स्वाभाविक विरक्ति हो जाती थी । उस स्वाभाविक विरक्ति को आचार्य अभिनवगुप्त ने अनादर विरक्ति कहा है? । इसी दृष्टि को लेकर के तन्त्रशास्त्र के अनेको ऋषियो ने भोग और मोक्ष दोनों को ही तन्त्रशास्त्र का फल और जीवन का प्रयोजन बताया और इन दोनो के ही उपायो का उपदेश किया । प्रत्यभिज्ञा दर्शन   भारत के कई एक दर्शन यह सिखाते है कि मोक्ष-प्राप्ति उसी साधक को होती है, जो कटिबद्ध होकर उसके लिये विशेष पत्न करता रहे। परन्तु काश्मीर शैव दर्शन के अनुसार मोक्ष प्राप्ति की चाबी मूलतः मानव के हाथ में न होकर परमेश्वर के हो हाथ में रहती इस दर्शन के आचार्यों ने शिव के अनुग्रह शक्तिपात को ही मोक्षप्राप्ति का मूल कारण ठहराया है । विवेक, वैराग्य, मुमुक्षा, शम, दम, तितिक्षा, सन्तोष, भक्ति इत्यादि जितने भी मोक्ष-प्राप्ति के साधन माने गये है, उनकी वांछनीयता शैव दर्शन में मानी तो गई है, परन्तु इन सभी साधनो का मूलभूत और आधारभूत कारण शिव के अनुग्रह शक्तिपात को ही ठहराया गया है । तदनुसार जिस किसी व्यक्ति पर शिव का अनुग्रह शक्तिपात हो चुका हो, उसी के हृदय में शिव की भक्ति का उदय होता हे और उसी मे विवेक, वैराग्य, मुमुक्षा आदि भाव भी उभर आते है । फिर एक और बात यह भी हे कि सामर्थ्यशाली शिवगुरु जिस पर चाहे उस पर अनुग्रह करते हुए उसे अपने योग बल से और मन्त्र-बल से मुक्ति के मार्ग पर प्रवृत्त कर सकता है ।   इस दृष्टिभेद का कारण यह है कि भारत के अनेक दर्शन- शास्त्रो ने बन्धन का कारण अनादि अविद्या को, अर्थात् अनादि अज्ञान को माना है । अत उसे नष्ट करने के लिये मोक्ष के साधनों का उपदेश करते हुए यही शिक्षा दी गई है कि मोक्ष के अनुकूल साधनों के अभ्यास के प्रति प्राणी को स्वय यत्न करना चाहिये ।काश्मीर शैव दर्शन ने तान्त्रिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए उस यत्न को ठुकरा तो नहीं दिया है, परन्तु साथ ही यह बात स्पष्ट कह दी है कि उस यत्न मे भी उसी की प्रवृत्ति हो सकती है, जिस पर शिव का या शिवतुल्य योगी का अनुग्रह शक्तिपात हो चुका हो फिर इस शास्त्र में दीक्षा के कई एक ऐसे प्रकार भी बताये गये है, जिनके द्वारा आपाततः मोक्ष का अनधिकारी प्रतीत होने वाला भोगी व्यक्ति भी गुरु के अनुग्रह से मोक्ष का अधिकारी बन जाता है । जैसा कि ऊपर बताया गया है, इस शास्त्र के अनुसार शिवभक्ति का भी उदय उसी व्यक्ति के हृदय में हो पाता है, जिस पर शिव का अनुग्रह हो चुका हो ।



Related Posts

img
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 08 July 2025
बीजमन्त्र-विज्ञान

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment