मधु के गुण-दोष और प्रभाव

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  • आयुष
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  • 31 October 2024
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डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक) 

हमारे प्राचीन ऋषियों के मत से मधु मीठा, स्वादिष्ट, शीतल, रूखा, स्वर को शुद्ध करने वाला, ग्राही, नेत्ररोग हितकारी, नस-नाड़ियों को शुद्ध करने वाला, सूक्षम, वर्णशोधक, कान्तिवर्धक, मेधा बुद्धि को बढ़ाने वाला, रुचिकारक, आनन्दक, कसैला, वातकारक, कुष्ट, बवासीर, खांसी, रुधिरविकार, चर्म रोग, कफ, प्रमेह, कृमि, मद, ग्लानि, तृषा, वमन, अतिसार, दाह, क्षतक्षय, हिचकी, त्रिदोष, अफारा, वायु विकार और कब्ज का नाश करने वाला है । 

सब प्रकार के मधु व्रण, जख्मों को भरने वाले और टूटी हड्डियों को जोड़ने वाले होते हैं । इसका अधिक सेवन कामोद्दीपक भी है । चरक शास्त्र के अनुसार – मधु भारी, शीतल, कफनाशक, छेदक, रूक्ष, मीठा और कसैला होता है । 

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हारीत के मतानुसार – मधु शीतल, कसैला, मधुर, हल्का, अग्निदीपक, शरीर को शुद्ध करनेवाला, ग्राही, नेत्रों का हितकारी, अग्निदीपक, व्रणशोधक, नाड़ी को शुद्ध करने वाला, घाव को भरने वाला, हृदय को हितकारी, बलकारक, त्रिदोषनाशक, पौष्टिक तथा खांसी, क्षय, मूर्च्छा, हिचकी, भ्रम, शोष, पीनस, प्रमेह, श्वास, अतिसार, रक्तातिसार, रक्तपित्त, तृषा, मोह, हृदयरोग, नेत्ररोग, संग्रहणी और विषविकार में लाभदायक होता है । 

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भिन्न-भिन्न प्रकार के मधु– यह विशेष ध्यान में रखने की बात है कि मधु के गुण देश और काल के भेद से पृथक्-पृथक् होते हैं । शहद एक स्वतन्त्र व एक ही समान गुण वाली वस्तु नहीं है । भिन्न-भिन्न काल में और भिन्न-भिन्न देशों में विभिन्न प्रकार के फूलों से मधुमक्खियां इसको ग्रहण करती हैं । इसलिए देश, काल और वस्तु के अनुसार इसके गुणों में भिन्नता होना निश्चय से स्वाभाविक ही है । इसलिए मधु को ग्रहण करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । 

देश के अनुसार तो उत्तम मधु हिमालय प्रदेश का होता है जहां सहस्रों प्रकार के पुष्पों वाले वृक्ष अपने सौरभ से वायुमंडल को व्याप्‍त किए होते हैं । तेज गर्मी के कारण भी वहां उष्णता का अनुभव नहीं होता, वहां का मधु शुद्ध, गाढ़ा, स्वादिष्ट, शीतल, विषरहित और निर्दोष होता है । विन्ध्याचल प्रदेश का मधु हिमालय की अपेक्षा कुछ कम गुण वाला होता है क्योंकि वहां का जलवायु विशेष रूप से गर्म होता है । मारवाड़ आदि मरुभूमि वाले प्रदेशों का मधु जहां फूलों के वृक्ष कम होते हैं, और भी कम गुणवत्ता वाला होता है । काल के अनुसार तो शीतकाल का संग्रह किया हुआ मधु सर्वोत्तम होता है क्योंकि इन दिनों सब वनस्पतियां पककर रसपूर्ण हो जाती हैं । इन निर्दोष और पुष्ट वनस्पतियों द्वारा रसों का संग्रह करके मधुमक्खियां मधु का निर्माण करती हैं । ग्रीष्म और वर्षाकाल का संग्रह किया मधु उत्तम नहीं होता । इसके अतिरिक्त जिन जंगलों में जिन जाति के वृक्षों की बहुलता होती है उस मधु में भी उन्हीं वृक्षों के गुण पाये जाते हैं । संकुचित धर्म वाले वृक्षों से जो मधु मिलेगा वह कब्ज करेगा । इसी प्रकार विरेचक गुण वाले वृक्षों से संग्रह किया मधु विरेचक गुण वाला होगा । 

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नीम मधु – नीम के फूलों से एकत्र किया हुआ मधु शीतल, रक्तशोधक, अर्शनाशक और कुछ कटु स्वादवाला होगा । 

पद्म मधु – कमल के फूलों से मधुमक्खियों द्वारा प्राप्‍त किया हुआ शहद नेत्र रोगों और हृदय रोगों के लिए प्रभु का आशीर्वाद ही समझिये । जिन तालाबों और झीलों में कमल के फूल बहुत अधिक होते हैं, मधुमक्खियां उन्हीं कमल के पौधों पर अपने छत्ते बना लेती हैं और उन्हीं फूलों से अपने छत्ते में मधु इकट्ठा करती रहती हैं । यह मधु पद्म मधु के नाम से संसार में प्रसिद्ध है । काश्मीर की डल झील में बड़े परिणाम से कमल की खेती होती है । यह शहद काश्मीर में ही पैदा होता है । गुलाब मधु – पुष्कर (अजमेर) आदि क्षेत्रों में जहां गुलाब के बाग बहुत बड़ी संख्या में हैं, वहां पर मधुमक्खियों के लगे छत्तों से गुलाब मधु प्राप्‍त हो सकता है । यह भी आंखों के लिए अमृततुल्य होता है । इसका सेवन कब्ज को भी दूर करता है ।



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