मंत्र-सिद्धि हेतु पुरश्चरणकाल में नियमों का पालन

img25
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक)-शक्ति उपासक के ब्यवहार, आचरण, अनुशासन तथा नित्यप्रति के कर्तव्यों के लिए शास्त्र द्वारा विशेष रूप से विधि-निषेधों का प्राविधान किया गया है जिनका दीक्षा के उपरान्त शक्तिसाधक को मन, वचन तथा कर्म से सदैव तथा सर्वत्र अनुपालन करना आवश्यक होता है। पुरश्चरणकाल में इननियमों का अनुपालन किए बिना कोटि मंत्र-जप एवं समस्त प्रयासों के बावजूद भी मंत्र सिद्धि हो पाना असम्भव है। साधक को जिन निर्देशों का पालन करना होता है उनमें से प्रमुख है:- (1) साधक को यह विश्वास रखना चाहिए कि जो मंत्र है वही देवता है तथा जो देवता है वही गुरू है। इनमें से किसी का भी पूजन-अर्चन करने का फल भी समान ही है। ”यथादेवस्तथा मंत्रो-यथामंत्र तथा गुरू देव मंत्र, गुरूणांच-पूजाया सदृंश फलम्” https://mysticpower.in/ved-me-tantra/ कुलार्णव तंत्र (2) अपने गुरू में भगवान शिव की भावना करनी चाहिए न कि सामान्य मनुष्यकी क्योंकि जो साधक अपने गुरू को सामान्य मनुष्य समझता है उसे न सिद्धि, नज्ञान और न मोक्ष ही प्राप्त होता है :- ”मोक्षो न जायते देवि-मानुषे गुरू भावनात् गुरूरेक: शिव: प्रोक्त:-सोहं देवि न संशय:।।” (3) जप, ध्यान तथा उपासना हेतु साधक को सदैव अपनी भावना को भ्रम रहित,संशय रहित, शुद्ध, सात्विक तथा श्रद्धायुक्त रखना चाहिए क्योंकि शुद्ध भावना हीसिद्धि प्रदाता होती है :- ”भावेन लभते सर्वं-भावेन देव दर्शनम् भावेन …….तस्मात् भावावलम्बनम्।।” https://mysticpower.in/taarak-mantra-ram-ke-bare-me-anubhutijanya-vichar/ रूद्रयामल तंत्र– (4) साधक को जप करते समय गुरू से प्राप्त मंत्र तथा उसकी अधिष्ठात्रीमहाशक्ति कुण्डलिनी का सुषुम्ना विवर में प्रकाश रूप में ध्यान करना चाहिए तथाउनको मूलाधार से सहस्रार चक्र तक ऊपर-नीचे ले जाने का अभ्यास करनाचाहिए। मंत्र के प्रत्येक वर्ण का ध्यान तथा उसके अर्थ का भी चिन्तन करते हुएजप करना चाहिए। (5) साधक को दास बनकर नहीं वरन् अपने को शिव का अंश समझकर (शिव केसाथ एकता) मॉं की उपासना करनी चाहिए। (6) किसी भी प्रकार के भ्रम-संशय से मुक्त रहने के लिए अपने गुरूक्रम-उपासनाक्रम से सम्बन्धित शास्त्रों (ग्रन्थों) के अतिरिक्त किसी अन्य उपासना-ग्रन्थों का अध्ययन नहीं करना चाहिए परन्तु अन्य उपासना ग्रन्थों तथा विधियों कीनिन्दा भी नहीं करनी चाहिए। (7) किसी अदीक्षित व्यक्ति को अपनी उपासना, जप, पूजा तथा ध्यान के सम्बन्धमें कुछ नहीं बताना चाहिए। पुरश्चरण काल में विशेष अनुभव, चमत्कार अथवास्वप्न होने पर अपने गुरूदेव को अवश्य बताना चाहिए। (8) अपनी साधना के परिणाम की आशा त्यागकर पूर्ण समर्पण तथा दृढ़ भावनाके साथ गुरू द्वारा उपदिष्ट क्रम से साधना में तत्पर रहना चाहिए। (9) पुरश्चरण की अवधि में खान-पान (भोजन) का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कहा जाता है ‘जैसा अन्न-वैसा मन’ अर्थात् भोजन जिस प्रकार का होगा उसी प्रकार के विचार मन में उत्पन्न होंगे तथा साधक की तपस्या को तदनुसार प्रभावित करेंगे। शास्त्रों में बताया गया है कि साधक को अपनी पाचन क्षमता, शारीरिक एवं मानसिक अवस्था के अनुसार ही अनुकूल भोजन का चयन करना चाहिए। जिस साधक को जो गुरू-क्रम प्राप्त हुआ हो उसी अनुसार भोजन का निर्णय किया जा सकता है। यह भी विशेष ध्यान रखना होता है कि जो भी खाद्य पदार्थ खाये जावें वे सब अपने द्वारा अर्जित धन से खरीदे जायें। किसी व्यक्ति द्वारा दान दिए गए अन्नादि को कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस विषय पर शास्त्र का बचन है कि – ”जिह्वा दग्धा परान्नेन-हस्तौ दग्धो परिग्रह मनो दग्धो परस्त्रीभि: कथं सिद्धि वरानने।” (हे पार्वती! जिस साधक की जीभ पराया अन्न खाकर जल गई हो, जिसका हाथ पराया अन्न ग्रहण करके जल गया हो, जिसका मन परस्त्री-भोग की कामना से जल गया हो उसकी मंत्र सिद्धि कैसे हो सकती है।) (10) पुरश्चरण काल में दीर्घकाल तक जप में बैठने के लिए उपयुक्त आसन कीभी आवश्यकता होती है। आसन का चुनाव भी अपने इष्ट मंत्र तथा अधिष्ठात्री देवीकी साधना के अनुरूप किया जाता है। वीर साधना (श्मशान साधना) हेतु उपयुक्तआसन केवल गुरूमुख से जाने जा सकते हैं। घर में प्रयुक्त होने वाले आसनों मेंरक्तकम्बल, कुशासन, मृगचर्म, व्याघ्र-चर्म पर बैठकर साधना करने का उल्लेखशास्त्रों में मिलता है। साधक को पद्मासन तथा सिद्धासन में बैठकर जप काअभ्यास करना चाहिए। पुरश्चरणकाल में अस्वस्थता की अवस्था में पैर फैलाकरतथा लेटकर भी जप किया जा सकता है। शास्त्रों का उद्घोष है कि आसन तथाप्राणायाम भी मुख्य साधना में गौण हो जाते हैं क्योंकि अन्तर्जागृति की अवस्था हीसर्वश्रेष्ट है- ”असिका बन्धनं नास्ति-नासिका बन्धनं नहिं न पद्मासन गतो योगी-न नासाग्र निरीक्षणम्।।” मंत्र-जप हेतु उपयुक्त स्थान इस विषय पर ‘दीक्षा रहस्य’ नामक अध्याय के अन्तर्गत ‘दीक्षा हेतु उपयुक्त स्थान’ शीर्षक में कुछ लिखा गया है क्योंकि जिन पवित्र स्थानों पर दीक्षा प्राप्त करने से शीघ्र साधना सफल होती है उन्हीं स्थानों पर जप करना भी शुभप्रद माना गया है। ”पुण्य क्षेत्रं नदी तीरं-गुहा पर्वत मस्तकम् तीर्थ प्रदेशा सिन्धूनां-संगम: पावनं बनम्” (पुण्य क्षेत्रों, नदियों के किनारे, पर्वतों की चोटियों, समुद्रों के संगम स्थल, गंगा-सागर संगम, घने जंगल, उद्यान, देवस्थान, समुद्रतट, विल्व वृक्ष, पीपलवृक्ष, बटवृक्ष, तथा धात्रीवृक्ष के नीचे तथा गोशाला में पुरश्चरण करना चाहिए। इन दिव्य स्थानों पर जप करने का फल इस प्रकार बताया गया है – ”गृहे जप समं प्रोक्त:-गोष्ठे शतगुणासु स:।” जबकि अन्य ग्रन्थों में लिखा गया है – ”गृहे शतगुंण विन्ध्याद्-गोष्ठे लक्षगुंण भवेत् कोटि देवालये पुण्यं-अनन्तं शिव सन्निधौ।” (अर्थात् अपने घर में जप करने से अधिक फल गोशाला में, गोशाला से अधिक फल एकान्त उद्यान में, एकान्त उद्यान से अधिक पर्वत शिखर पर, पर्वत शिखर से अधिक पुण्यक्षेत्र में, पुण्यक्षेत्र से अधिक फल देवालय में, तथा शिव सान्निध्य में जप का अनन्त फल मिलता है।) सिद्ध पीठों में पुरश्चरण  तंत्र-शास्त्रों में उन सभी सिद्ध तथा महासिद्ध पीठों का विवरण दिया गया है जहॉं पुरश्चरण करने से शीघ्र मंत्र-जागृत हो जाता है। चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिग तथा 51-शक्तिपीठों के अतिरिक्त भी भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को जिन सिद्धपीठों का परिचय दिया गया था उनमें से प्रमुख हैं :- 1-”मायावती, मधुपुरी-काशी गोरक्षकारिणी 2-मणिपुरं हृषीकेशं-प्रयागंच तपोवनम् 3-बदरी च महापीठं-उडि्डपानं महेश्वरि 4-कामरूपं महापीठं-सर्वकाम फलप्रदम्।” अर्थात् मायावती, हरिद्वार, काशी, गोरखपुरी, हिगुलादेवी, ज्वालामुखी, रामगिरी पर्वत, त्र्यम्बकेश्वर, पशुपतिनाथ, अयोध्या, कुरूक्षेत्र, मणिपुर, रिषीकेष, प्रयाग, तपोवन, बद्रीनाथ, अम्बाजी, गंगासागर, उडि्डयानपीठ, जगन्नाथपुरी, महिष्मतीपुरी, वाराही क्षेत्र, गोवर्धन पर्वत, विन्ध्यवासिनी, क्षीरग्राम तथा वैद्यनाथधाम। इन सभी सिद्धपीठों में से आसाम का कामरूप कामाक्षादेवी धाम महासिद्ध पीठ है जहॉं पुरश्चरण करने से अतिशीघ्र मंत्र-सिद्धि मिलती है। धरती पर ऐसी महासिद्ध पीठ अन्यत्र नहीं है।



Related Posts

img
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 08 July 2025
बीजमन्त्र-विज्ञान

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment