श्री विशिष्ठानंद 'कौलाचारी'
Mystic Power- मूलाधार में भैरवी चक्र की साधना वैदिक मार्ग के द्वारा सर्वाधिक विवादित साधना रही है उन्होंने इसमें दुराचरण के भाव को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया है परंतु यह सत्य नहीं है यह दुराचरण तब होता है जब इसमें काम भाव को तुष्ट करने का उद्देश्य होता है । इसमें स्त्री पुरुष की भावनाएं परमात्म भाव से युक्त होती हैं ठीक यही स्थिति यही भाव की है परंतु इसमें अंतर यह है कि इसमें रखती कि संभोग किरदार नहीं होगी यद्यपि कुछ लोगों ने इसमें संभोग का विस्तृत विवरण किया है।
तंत्र विद्या निभाओ की पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है आचरण के कर्म पर नहीं आचरण पवित्र हो और मानसिक भाव कुल्षित तो यह पवित्रता पाखंड ही है ऐसे में कोई सिद्धि नहीं मिल सकती है मूलाधार का शिवलिंग सबसे महत्वपूर्ण है यह सबसे शक्तिशाली भी है क्योंकि यह ऋण बिंदु पर स्थित है इसकी सिद्धि का एक पवित्र और सरल उपाय ध्यान योग द्वारा इसके बिंदुओं को जागृत करना है।
मूलाधार मे काली जी का वास होता है काली जी का रूप को डाकिनी भी कहते हैं डाकिनी का अर्थ है एक ऐसी शक्ति जो डाक ले जाए डाक ले जाने का अर्थ है चेतना का किसी भाव की आंधी में पढ़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है।
डाकिनी नाम की देवी की साधना अघोर पंथ तांत्रिकों की प्रसिद्ध साधना है इसके सबल होने से संपूर्ण मूलाधार सफल होता है डाकिनी की साधना से संबंधित प्राचीन तंत्र ग्रंथों में तामसी व सात्विक विधियों का वर्णन है यह अति तामसी देवी है हमारे अंदर कुंठा क्रोध अतिशय हिंसात्मक भाव आदि की उत्पत्ति इन की शक्ति से अर्थात रंगों से होती है ।
यद्यपि डाकिनी को काली जी का ही एक रूप माना जाता है परंतु यह काली जी से भी उग्र हो सकती है इस शक्ति की साधना सोच समझकर दृढ होकर करनी चाहिए इसके प्रकट होने पर इसकी शक्ति को सहन करना साधारण साधक के वश का रोग नहीं होता है मूलाधार की सभी शक्तियां उग्र और तामसिक है यद्यपि सब पर डाकिनी का प्रभुत्व उसी प्रकार काबिज है जिस प्रकार काली जी की शक्तियों का प्रभाव संपूर्ण शरीर को प्रभावित करने करके वश में करने में सक्षम है।
डाकिनी की सात्विक साधना मे कामकाकिणी की साधना की विधि अपनाएं परंतु तामसी विधि से डाकिनी साधना श्मशान में करने का विधान है यहां श्मशान शब्द का निहितार्थ समझना चाहिए यहां श्मशान शब्द का अर्थ है जहां जीवन की हलचल अर्थात वैचारिक हलचल ना हो नग्न साधना का अर्थ है कि आप सभी भौतिक आवरणों का वहाँ त्याग कर दें यह दोनों नहीं है तो शमशान में जाकर भी डाकिनी सिद्ध नहीं होगी यदि प्रकट हो गई तो आप भयानक खतरे में होंगे।
भूत प्रेत पिशाच आदि शक्तियां क्रोध एवं क्षुब्धता हिंसात्मक भाव उत्तेजना की चरम सीमा और वह इस देवी के अंतर्गत रहते हैं इसके प्रकटीकरण से पूर्व इन सब का उत्पात साधक को परेशान करता है इसलिए इसकी सिद्धि करने जाएं तो पूरी दृढ़ता से होनी चाहिए दुर्बल ह्रदय को डाकिनी की साधना नहीं करनी चाहिए।
कुछ लोग यह सोचेंगे कि ऐसी भयानक शक्ति का आह्वान करके इसकी सिद्धि हम क्यों करें यह इसलिए की जाती है कि एक तकनीकी सिद्धि से मूलाधार की सभी शक्तियों की सिद्धि अत्यंत सरल हो जाती है यह कहा जाए तो सभी स्वयं सिद्ध हो जाते हैं यह गलत ना होगा और जिसने मूलाधार की सभी शक्तियों को सिद्ध कर लिया है उसके लिए सभी चक्रों की सिद्धि अत्यंत सरल हो जाती है।
डाकिनी की साधना काली रात अर्थात कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्य तक अर्धरात्रि में की जाती है नदी का किनारा या सुनसान श्मशान में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके की जाती है इसका स्वरूप काली जी के रूद्र रूप के समान होता है चार भुजा में एक कटा हुआ सिर दूसरे में रक्त रंजित तलवार तीसरे में त्रिशूल चौथे में रख से बड़ी खोपड़ी होती है जिससे वे रक्तपान करती रहती हैं इस देवी का रंग बिल्कुल काला होता है पैरों में महावर और तलवों में भी महावर होती है इससे यह लाल होते हैं हथेलिया भी महावर से लाल होती हैं यह क्रिया प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक चलती है
इसकी साधना के समय समस्त भौतिक इच्छाओं एवं उपलब्धियों का त्याग करके ही साधना की जाती है जब देवी प्रकट हो जाएं तो उससे उनकी शक्तियों का वरदान मांगे और उनसे कहें कि हे माता आप अपना पुत्र समझकर हमारी रक्षा करें दूर्व्यसनों से दूर रखें और हमें शक्ति दें ताकि हम दूसरी सिद्धियां प्राप्त कर सकें।
डाकिनी को जगाना पड़ता है परंतु काली एक जागृत देवी है यह सदा सक्रिय रहती है इन्हीं के कारण हमारे शरीर का बाहरी आवरण बनता है और हमें प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है इन्हीं के कारण सभी आप एक बार की ओर प्रतिगमन करते हैं और इन्हीं के कारण रक्त का निर्माण होता है इस देवी के कारण ही संतान उत्पत्ति से संबंधित डिंम्ब और शुक्राणु का निर्माण होता है।
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