डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक )- इस प्रकार श्राद्ध सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है, परलोक को भी सुधारता है और अन्त में मुक्ति भी प्रदान करता है- आयुः प्रजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्षं सुखानि च । प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्धतर्पिताः॥ (मार्कण्डेयपुराण) अर्थात् श्राद्ध से सन्तुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घ आयु, संतति, धन, विद्या, राज्य, सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। अत्रिसंहिता का कहना है-जो पुत्र, भ्राता, पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृकार्य (श्राद्धानुष्ठान)-में संलग्न रहते हैं, वे निश्चय ही परमगति को प्राप्त होते हैं- पुत्रो वा भ्रातरो वापि दौहित्रः पौत्रकस्तथा । पितृकार्ये प्रसक्ता ये ते यान्ति परमां गतिम् ।। यहाँ तक लिखा है कि जो श्राद्ध करता है, जो उसके विधि-विधान को जानता है, जो श्राद्ध करने की सलाह देता है और जो श्राद्ध का अनुमोदन करता है-इन सबको श्राद्ध का पुण्यफल मिल जाता है- उपदेष्टानुमन्ता च लोके तुल्यफलौ स्मृतौ ॥ (बृहस्पति)
Comments are not available.