श्री बटुक भैरव महात्म्य

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  • महापुरुष
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  • 31 October 2024
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महामहोपाध्याय पंडित राजेंद्र शास्त्री- बटुक भैरव प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं अकाल मौत से बचाते हैं। ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन- यापन करता है।   

जो साधक बटुक भैरव की निरंतर साधना करता है तो भैरव बींब रूप में उसे दर्शन देकर उसे कुछ सिद्धियां प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से साधक लोगों का भला करता है।   

भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं।  जो व्यक्ति भैरव जयंती को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। 

श्री बटुक भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।   

स्कंद पुराण के अवंति खंड के अंतर्गत उज्जैन में अष्ट महाभैरव का उल्लेख मिलता है।   

भैरव तंत्र का कथन है कि जो भय से मुक्ति दिलाए वह भैरव है।  

 भय स्वयं तामस-भाव है। तम और अज्ञान का प्रतीक है यह भाव। जो विवेकपूर्ण है वह जानता है कि समस्त पदार्थ और शरीर पूरी तरह नाशवान है। आत्मा के अमरत्व को समझ कर वह प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय बना रहता है।   

जहाँ विवेक तथा धैर्य का प्रकाश है वहाँ भय का प्रवेश हो ही नहीं सकता। वैसे भय केवल तामस-भाव ही नहीं, वह अपवित्र भी होता है।   

भय के देवता महाभैरव को यज्ञ में कोई भाग नहीं दिया जाता। कुत्ता उनका वाहन है। क्षेत्रपाल के रूप में उन्हें जब उनका भाग देना होता है तो यज्ञीय स्थान से दूर जाकर वह भाग उनको अर्पित किया जाता है, और उस भाग को देने के बाद यजमान स्नान करने के उपरांत ही पुन: यज्ञस्थल में प्रवेश कर सकता है।   

बटुक भैरव जन्म की संक्षिप्त कथा.....   आपद नाम का एक राक्षस था वैसे अभी भी आपद तो अभी भी परोक्ष रूप से ज़िंदा है। जो बिन बुलाये इन दिनों कभी भी आ जाती है। उस जमाने में आपद का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तीनो लोकों के देवता देवी और मनुष्य अत्याचार से परेशान थे आपद को वरदान था कि उसे कोई देवी देवता नहीं मार सकता कोई वध नही कर सकता है। सिर्फ कोई पांच साल का बच्चा ही मार सकता है। 

तब - देवी देवताओं की प्रार्थना शिव जी ने सुनी देवी देवताओं की शक्ती से पांच साल के बालक की उत्त्पत्ति हुई जिसका नाम बटुक भैरव रखा गया उसने ही आपद नाक राक्षस का वध किया। 

इसलिए आपके उपर कोई आफत आये तो कलियुग में बटुक भैरव की पूजा करनी चाहिए।   

बटुक भैरव का ध्यान मंत्र .....   

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्। 

दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥ 

दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्। 

हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥   अर्थात्  भगवान् श्री बटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं।   

वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं।   

भगवान श्री बटुक-भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।   

जप मंत्र .....   ll  ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा। ll   

उक्त मंत्र की रात्रि कम से कम 21 माला करे इसके बाद प्रतिदिन 11 माला जब तक सवालाख जप पूर्ण ना हो जाये करें। अपनी सामर्थ्य अनुसार अधिक जप भी कर सकते है।   

सवालाख जप पूर्ण होने के बाद इसका दशांश यानी 12500 मंत्रो से हवन में आहुति देना चाहिए।

भैरव की पूजा में जप के आरम्भ व अंत मे श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए। 

मंत्र जाप के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें।   

अंत मे श्री बटुक भैरव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ करें।



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