श्री विशिष्ठानंद (कौलाचारी)-
Mystic Power- तंत्र में वास्तव में क्या है? जब कोई ऊर्जा परिपथ बनेगा तो वह क्रिया भी करेगा। क्योंकि वह ऊर्जा परिपथ ऊर्जा धाराओं से बनता है और ऊर्जा तरंगे हमेशा सक्रिय रहती हैं और पिंड में यह मान लीजिए इकाई जिसमें परमाणु ग्रह सूर्य जीव ब्रह्मांड आदि सभी हैं परंतु यह ब्रह्मांड में एक ही पद्धति से काम करता है।
तंत्र विद्या को जानने के लिए इस परिपथ के क्रियाकलाप का जानना आवश्यक है मेरुदंड में एक से आठ बिन्दू है जिन्हे योग में गंगा जमुना और सरस्वती के संगम के रूप में बताया गया है , यह तीनों ऊर्जा धाराएं हैं जिनसे मेरुदंड बनता है इनके मिलने से मेरू में आठ ऊर्जा बिंदु बनते हैं यह शिवलिंग जैसी आकृति होती है जो निरंतर रति में रहती है।
यानी शिवलिंग का लिंग और योनि त्रिभुज परिपथ की रचना भी उसी आकृति में है धन एवं ऋण त्रिभुज आगे पीछे होते रहते हैं इनकी गति पिस्टन की तरह होती है इससे ऊर्जा तरंगों की बौछार होती रहती है प्रत्येक शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा तरंग एक दूसरे से भिन्न होती है।
इनके रंग इनकी सूक्ष्मता गति आकृति एवं इनके गुणों में भी अंतर होता है भारतीय ऋषियों ने इन्हीं तरंगों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा है इनकी पूजा के लिए जो मूर्तियां हैं उन मूर्तियों जैसा कोई प्राणी ब्रह्मांड में कहीं नहीं रहता है बल्कि उन मूर्तियों को देखने से जो भाव उत्पन्न होता है इसलिए इनका प्रयोग तांत्रिक अनुष्ठानों में किया जाता है।
इस परिपथ की कार्यप्रणाली जानने के बाद आप इसे अच्छी तरह समझ जाएंगे इसका अध्ययन आप विकसित जीव में सरलता से कर सकते हैं क्योंकि ग्रह आदि मैं परिपथ के बिंदु सुपर होते हैं क्रिया वही होती है पर हमारी अनुभूति क्षमता उसे अनुभूत नहीं कर पाती।
इस परिपथ की कार्यप्रणाली सुपर कंप्यूटर की भांति कार्य करता है इसमें तीन नंबर के बिंदु से निकलने वाली ऊर्जा तरंगे जिनमें वाममार्गी रूद्र अघोरी हाकिनी वैदिक ऋषि विश्वदेवा एवं योगी आज्ञा तरंग कहते है। मुख्य संचालक यही है यही तीसरा शिवलिंग है जिसका रंग राख जैसा है। संपूर्ण शरीर के परिपथ का ड्राइवर है इससे निकलने वाली रजत रंग की तरंगे ज्ञान की तरंगे अत्यंत शक्तिशाली होती हैं। और स्टीयरिंग व्हील की तरह काम करती है इसको नियंत्रित करती है रुद्र की तरंगे जीव की आंखें उसके कान नाक आदि नित रंगों से उत्पन्न होते हैं अब होता यह है कि आप जब जब आंखों से किसी वस्तु को देखते हैं या कानों से कोई शब्द सुनते हैं तो आपके मन में एक भाव उत्पन्न होता है यह भाव तुरंत नाभिक पर होता है जो पांच नंबर का बिंदु है।
और तीन नंबर का बिंदु यानी रुद्र का चक्र उस भाव के अनुरूप अपनी गणेश तरंगों को उस भाव से संबंधित चक्र को प्रेषित करता है जैसे ही वह तरंगे उस चक्र में टकराती हैं वहां की गति तेज हो जाती है और उस भाव की तरंगे उत्पन्न होने लगती हैं उन तरंगों से शरीर अवशोषित हो जाता है।
आपने एक फूल देखा फूल को देखने से रुद्र की तरंगे गणेश तरंगों को कोमल भाव वाले चौथे चक्र पर फेंकती है यहां क्रिया होने लगती है और सरस्वती तरंगे उत्पन्न होती हैं इससे मन में कोमल भाव की अनुभूति होती है और वह उस भाव की तरंगों को एक नंबर यानी मस्तिष्क चक्र पर भेजता है मस्तिष्क अपने पूर्व संचित ज्ञान से उस भाव का विश्लेषण करता है। और अपनी तरंगों को रुद्रचक्र पर भेजता है इसी रुद्र चक्र को उस फूल की पहचान हो जाती है वह पुनः अपनी तरंगे नाभिक यानी जीवात्मा को भेजता है और जीवात्मा जैसा चाहती है वैसा बताती है। रुद्रचक्र जीवात्मा की उस कामना के अनुरूप शरीर की क्रिया के लिए विभिन्न चक्रों पर गणेश तरंगों को भेजती है और शरीर फूल को प्राप्त करने के लिए क्रिया करने लगता है।
यह सारी क्रियाएं अक्षरों में हो जाती हैं जैसे गिटार पर उंगलियां चलती है उसी प्रकार आज्ञा चक्र की तरंगे गणेश तरंगों को एक सेकेंड के सौवे हिस्से में दर्जनों ऊर्जा बिंदुओं को स्पर्श करके क्रिया के लिए ऊर्जा उत्पन्न करती है इस प्रकार चाहे वह कोई भी हो अपनी संपूर्ण क्रिया करता है जब हम सोते हैं तो यह आज्ञा चक्र ही अपनी गति रोक लेता है इसी आज्ञा चक्र के बिगड़ जाने से मनुष्य पागल हो जाता है वैसे पागलपन की एक किसम पहले चक्र के बिगड़ने से भी उत्पन्न होती है
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