असुर संतान क्यो पैदा होती है ?

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

श्री नारायणदास  Mystic Power-भागवत पुराण में एक कथा आती है । कथा पढ़िए, सब बात अपने आप समझ आ जायेगी । एक समय की बात है, की दक्ष प्रजापति की बेटी दिति संध्याकाल के समय कामवेग में आतुर हो, अपने पति कश्यप से संतान प्राप्ति की याचना करने लगी । कश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी से कहा .. साध्वि! इस सन्ध्याकाल में भूतभावन भूतपति भगवान् शंकर अपने गण भूत-प्रेतादि को साथ लिये बैल पर चढ़कर विचरा करते हैं । जिनका जटाजूट श्मशानभूमि से उठे हुए बवंडर की धूलि से धूसरित होकर देदीप्यमान हो रहा है तथा जिनके सुवर्ण-कान्तिमय गौर शरीर में भस्म लगी हुई है, महादेवजी अपने सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीन नेत्रों से सभी को देखते रहते हैं । संसार में उनका कोई अपना या पराया नहीं है। न कोई अधिक आदरणीय और न निन्दनीय ही है। हमलोग तो अनेक प्रकारके व्रतों का पालन करके उनकी माया को ही ग्रहण करना चाहते हैं, जिसे उन्होंने भोगकर लात मार दी है । विवेकी पुरुष अविद्या के आवरण को हटाने की इच्छा से उनके निर्मल चरित्र का गान किया करते हैं; उनसे बढ़कर तो क्या, उनके समान भी कोई नहीं है और उनतक केवल सत्पुरुषों की ही पहुँच है। यह सब होने पर भी वे स्वयं पिशाचों का-सा आचरण करते हैं ।। यह नर शरीर कुत्तों का भोजन है; जो अविवेकी पुरुष आत्मा मानकर वस्त्र, आभूषण, माला और चन्दनादि से इसी को सजाते-सँवारते रहते हैं वे अभागे ही आत्माराम भगवान् शंकर के आचरण पर हँसते हैं । हमलोग तो क्या, ब्रह्मादि लोकपाल भी उन्हीं की बाँधी हुई धर्म-मर्यादा का पालन करते हैं; वे ही इस विश्व के अधिष्ठान हैं तथा यह माया भी उन्हीं की आज्ञा का अनुसरण करने वाली है। ऐसे होकर भी वे प्रेतों का-सा आचरण करते हैं। राम !! उन जगद्व्यापक प्रभु की यह अद्भुत लीला कुछ समझ में नहीं आती । कश्यप जी अपनी पत्नी को कहना चाह रहे थे , संध्याकाल के समय समागम आदि बहुत अनुचित है । क्यो की इस समय भगवान शङ्कर हमे देखते है । पति के इस प्रकार समझाने पर भी कामातुरा दिति ने वेश्या के समान निर्लज्ज होकर ब्रह्मर्षि कश्यपजी का वस्त्र पकड़ लिया । तब कश्यपजी ने उस निन्दित कर्म में अपनी भार्या का बहुत आग्रह देख दैव को नमस्कार किया और एकान्त में उसके साथ समागम किया । फिर जल में स्नानकर प्राण और वाणी का संयम करके विशुद्ध ज्योतिर्मय सनातन ब्रह्म का ध्यान करते हुए उसी का जप करने लगे । बाद में दिति को भी उस निन्दित कर्म के कारण बड़ी लज्जा आयी और वह ब्रह्मर्षि के पास जा, सिर नीचा करके इस प्रकार कहने लगी " ब्रह्मन् ! भगवान् रुद्र भूतों के स्वामी हैं, मैंने उनका अपराध किया है; किन्तु वे भूतश्रेष्ठ मेरे इस गर्भ को नष्ट न करें ।। मैं भक्तवाञ्छाकल्पतरु, उग्र एवं रुद्ररूप महादेव को नमष्कार करती हूँ। वे सत्पुरुषों के लिये कल्याणकारी एवं दण्ड देने के भाव से रहित हैं, किन्तु दुष्टों के लिये क्रोधमूर्ति दण्डपाणि हैं , हम स्त्रियों पर तो व्याध भी दया करते हैं, फिर वे सतीपति तो मेरे बहनोई और परम कृपालु हैं; अतः वे मुझ पर प्रसन्न हों ।। प्रजापति कश्यप ने सायंकालीन सन्ध्या-वन्दनादि कर्म से निवृत्त होनेपर देखा कि दिति थर-थर काँपती हुई अपनी सन्तान की लौकिक और पारलौकिक उन्नति के लिये प्रार्थना कर रही है। तब उन्होंने उससे कहा ।। कश्यपजी ने कहा- तुम्हारा चित्त कामवासना से मलिन था, वह समय भी ठीक नहीं था और तुमने मेरी बात भी नहीं मानी तथा देवताओं की भी अवहेलना की ।। अमंगलमयी चण्डी! तुम्हारी कोख से दो बड़े ही अमंगलमय और अधम पुत्र उत्पन्न होंगे। वे बार-बार सम्पूर्ण लोक और लोकपालों को अपने अत्याचारों से रुलायेंगे ।। जब उनके हाथ से बहुत-से निरपराध और दीन प्राणी मारे जाने लगेंगे, स्त्रियों पर अत्याचार होने लगेंगे और महात्माओं को क्षुब्ध किया जाने लगेगा, उस समय सम्पूर्ण लोकों की रक्षा करने वाले श्रीजगदीश्वर कुपित होकर अवतार लेंगे और इन्द्र जैसे पर्वतों का दमन करता है, उसी प्रकार उनका वध करेंगे ।। दिति ने कहा- प्रभो! यही मैं भी चाहती हूँ कि यदि मेरे पुत्रों का वध हो तो वह साक्षात् भगवान् चक्रपाणि के हाथसे ही हो, कुपित ब्राह्मणों के शापादि से न हो ।। जो जीव ब्राह्मणों के शाप से दग्ध अथवा प्राणियों को भय देनेवाला होता है, वह किसी भी योनि में जाय उसपर नारकी जीव भी दया नहीं करते ।। कश्यपजी ने कहा- देवि ! तुमने अपने किये पर शोक और पश्चात्ताप प्रकट किया है, तुम्हें शीघ्र ही उचित-अनुचित का विचार भी हो गया तथा भगवान् विष्णु, शिव और मेरे प्रति भी तुम्हारा बहुत आदर जान पड़ता है; इसलिये तुम्हारे एक पुत्र के चार पुत्रों में से एक ऐसा होगा, जिसका सत्पुरुष भी मान करेंगे और जिसके पवित्र यश को भक्तजन भगवान के गुणों के साथ गायेंगे ।। जिस प्रकार खोटे सोने को बार-बार तपाकर शुद्ध किया जाता है, उसी प्रकार साधुजन उसके स्वभाव का अनुकरण करनेके लिये निर्वैरता आदि उपायों से अपने अन्तःकरणको शुद्ध करेंगे ।। जिनकी कृपा से उन्हीं का स्वरूपभूत यह जगत् आनन्दित होता है, वे स्वयंप्रकाश भगवान् भी उसकी अनन्यभक्ति से सन्तुष्ट हो जायँगे । दिति ! वह बालक बड़ा ही भगवद्भक्त, उदारहृदय, प्रभावशाली और महान् पुरुषोंका भी पूज्य होगा तथा प्रौढ़ भक्तिभाव से विशुद्ध और भावान्वित हुए अन्तःकरणमें श्रीभगवान को स्थापित करके देहाभिमान को त्याग देगा । वह विषयों में अनासक्त, शीलवान्, गुणों का भंडार तथा दूसरों की समृद्धि में सुख और दुःख में दुःख मानने वाला होगा। उसका कोई शत्रु न होगा तथा चन्द्रमा जैसे ग्रीष्म ऋतु के ताप को हर लेता है, वैसे ही वह संसार के शोक को शान्त करने वाला होगा । जो इस संसार के बाहर भीतर सब ओर विराजमान हैं, अपने भक्तों के इच्छानुसार समय-समय पर मंगलविग्रह प्रकट करते हैं और लक्ष्मीरूप लावण्यमूर्ति ललना की भी शोभा बढ़ाने वाले हैं तथा जिनका मुखमण्डल झिलमिलाते हुए कुण्डलों से सुशोभित है- उन परम पवित्र कमलनयन श्रीहरि का तुम्हारे पौत्र को प्रत्यक्ष दर्शन होगा । दिति ने जब सुना कि मेरा पौत्र भगवान्का भक्त होगा, तब उसे बड़ा आनन्द हुआ तथा यह जानकर कि मेरे पुत्र साक्षात् श्रीहरि के हाथसे मारे जायँगे, उसे और भी अधिक उत्साह हुआ ।। दिति के यह 2 बेटे हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु थे । प्रह्लाद और बलि भगवान के भक्त हुए । स्त्रियों के ऋतुधर्म की सोलह रात्रियाँ होती हैं, उनमें पहले की तीन रातें निन्दित हैं। शेष रातों में जो युग्म अर्थात् चौथी, छठी, आठवीं और दसवीं आदि रात्रियाँ हैं, उनमें ही पुत्र की इच्छा रखने वाला पुरुष स्त्री-समागम करे। यह 'गर्भाधान-संस्कार' कहलाता है। संतान प्राप्ति के लिए बिना वासना के , भगवान का चिंतन करते हुए समागम होना चाहिए, जिससे एक योग्य और धर्मज्ञ संतान पैदा हो । दूसरी सन्तान का विचार करने से पहले लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, अच्छे भोजन आदि लेते हुए, सन्तान प्राप्ति की इच्छा रखनी चाहिए ।।



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment