डॉ. मदन मोहन पाठक ( धर्मज्ञ )-
Mystic Power- भगवान् सूर्य की दस सन्तानें हैं। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा (अश्विनी) नामक पत्नी से वैवस्वत मनु, यम, यमी (यमुना), अश्विनीकुमारद्वय और रेवन्त तथा छाया से नि, तपती, विष्टि (भद्रा) और सावर्णि मनु हुए।
भगवान् सूर्य के परिवार की यह कथा पुराणों आदि में अनेक प्रकार से सूक्ष्म एवं विस्तार से आयी है, उसका सारांश यहाँ प्रस्तुत है-
विश्वकर्मा (त्वष्टा)-की पुत्री संज्ञा (त्वाष्ट्री )-से जब सूर्य का विवाह हुआ तब अपनी प्रथम तीन सन्तानों वैवस्वत मनु, यम तथा यमी (यमुना) की उत्पत्ति के बाद उनके तेज को न सह सकने के कारण संज्ञा अपने ही रूप आकृति तथा वर्णवाली अपनी छाया को वहाँ स्थापित कर अपने पिता के घर होती हुई 'उत्तरकुरु' में जाकर छिपकर वडवा (अश्वा) का रूप धारणकर अपनी शक्ति वृद्धि के लिये कठोर तप करने लगी। इधर सूर्य ने छाया को ही पत्नी समझा तथा उससे उन्हें सावर्णि मनु, शनि, तपती तथा विष्टि (भद्रा) – ये चार सन्तानें हुई। जिन्हें वह अधिक प्यार करती, किंतु संज्ञा की सन्तानों वैवस्वत मनु तथा यम एवं यमी का निरन्तर तिरस्कार करती रहती।
माता छाया के तिरस्कार से दुःखी होकर एक दिन यम ने पिता सूर्य से कहा - तात ! यह छाया हम लोगों की माता नहीं हो सकती; क्योंकि यह हमारी सदा उपेक्षा, ताड़न करती है और सावर्णि मनु आदि को अधिक प्यार करती है। यहाँ तक कि उसने मुझे शाप भी दे डाला है। सन्तान माता का कितना ही अनिष्ट करे, किंतु वह अपनी सन्तान को कभी शाप नहीं दे सकती। यम की बातें सुनकर कुपित हुए सूर्य ने छाया से ऐसे व्यवहार का कारण पूछा और कहा-सच-सच बताओ तुम कौन हो ? यह सुनकर छाया भयभीत हो गयी और उसने सारा रहस्य प्रकट कर दिया कि मैं संज्ञा नहीं, बल्कि उसकी छाया हूँ।
सूर्य तत्काल संज्ञा को खोजते हुए विश्वकर्मा के घर पहुँचे। उन्होंने बताया कि भगवन्! आपका तेज सहन न कर सकने के कारण संज्ञा अश्वा (घोड़ी) का रूप धारण कर उत्तरकुरु में तपस्या कर रही है। तब विश्वकर्मा ने सूर्य की इच्छा पर उनके तेज को खरादकर कम कर दिया। अब सौम्य शक्ति से सम्पन्न भगवान् सूर्य अश्वरूप से वडवा (संज्ञा-अश्विनी) के पास उससे मिले।
परपुरुष के स्पर्श की आशंका से सूर्य का तेज अपने नासाछिद्रों से बाहर फेंक दिया। उसी से दोनों अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई, जो देवताओं के वैद्य हुए। तेज के अन्तिम अंश से रेवन्त नामक पुत्र हुआ, जो गुह्य कों और अश्वों का अधिपति हुआ। इस प्रकार भगवान् सूर्य का विशाल परिवार यथास्थान प्रतिष्ठित हो गया। यथा- वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यम यमराज एवं धर्मराज के रूप में जीवों के शुभाशुभ कर्मों के फलों को देने वाले हैं। यमी यमुना नदी के रूप में जीवों के उद्धार में लगी हैं। अश्विनीकुमार (नासत्य-दस्त्र) देवताओं के वैद्य हैं। रेवन्त निरन्तर भगवान् सूर्य की सेवा में रहते हैं। सूर्यपुत्र शनि ग्रहों में प्रतिष्ठित हैं। सूर्यकन्या तपती का विवाह सोमवंशी अत्यन्त धर्मात्मा राजा संवरण के साथ हुआ, जिनसे कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु का जन्म हुआ। इन्हीं से कौरवों की उत्पत्ति हुई। विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्रलोक में प्रविष्ट हुई। सावर्णि मनु आठ वें मन्वन्तर के अधिपति होंगे। इस प्रकार भगवान् सूर्य का विस्तार अनेक रूपों में हुआ है। वे आरोग्य के अधिदेवता है-
"आरोग्यं भास्करादिच्छेत्' (मत्स्यपु० ६८ ।४१) ।
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