भोज राज्य तथा परमार भोज के ग्रन्थ

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  • 31 October 2024
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श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ )- Mystic Power- (१) वेद में राज्य के ४ स्तर कहे गये हैं, सभी में छोटे-बड़े २-२ प्रकार के राजा थे- १. राजा-भोज, महाभोज, २. सम्राट्-चक्रवर्त्ती, सार्वभौम, ३. स्वराट्-इन्द्र, महेन्द्र, ४. विराट्-ब्रह्मा, विष्णु। ऐतरेय ब्राह्मण (३७/२)-तानहमनुराज्याय साम्राज्याय भौज्याय स्वाराज्याय पारमेष्ठ्याय राज्याय महाराज्याया ऽऽधिपत्याय स्वावश्याया ऽऽतिष्ठायाऽऽरोहामि। किसी क्षेत्र में अन्न आदि के उत्पादन का प्रबन्ध करने वाला भोज है। कुछ भोजों का समन्वय करनेवाला महाभोज है। पूरे भारत पर शासन करने वाला सम्राट् है-देश के भीतर व्यापार तथा यातायात की सुविधा करने वाला चक्रवर्त्ती तथा देश के बाहर भी ऐसा सम्बन्ध रखने वाला सार्वभौम है। कई देशों पर प्रभुत्व रखने वाला इन्द्र तथा महाद्वीप पर प्रभुत्व रखने वाला महेन्द्र है। विश्व पर ज्ञान का प्रभाव ब्रह्मा का था, बल का प्रभाव विष्णु का है। (२) प्रथम भोज राज्य काशी- ऋग्वेद में प्रथम भोज राज्य काशी को कहा गया है, जहां के राजा दिवोदास (धन्वन्तरि के अवतार) या उनके पुत्र सुदास थे। आज भी प्राचीन काशी क्षेत्र की भाषा को ही भोजपुरी कहते हैं। इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः। विश्वामित्राय ददतो मघानि सहस्रसावे प्रतिरन्त आयुः॥ (ऋक्, ३ /५३/७) = ये भोज कई प्रकार का उत्पादन (विरूपा आंगिरस) करते हैं, ये देवपुत्र (दिवोदास) असुरों को जीतने वाले हैं। इन्होंने विश्वामित्र के हजारों यज्ञों के लिये प्रचुर सम्पत्ति दी। महाँ ऋषिर्देवजा देवजूतोऽस्तभ्नात्सिन्धुमर्णवं नृचक्षाः। विश्वामित्रो यदवहत्सुदासमपियायत कुशिकेभिरिन्द्रः॥९॥ = महान् देवजूत (देव काम में जुता हुआ, दिवोदास) तथा उनके सहायक विश्वामित्र ने सिन्धु तथा अर्णव तक लोगों को गठित किया तथा काशिराज सुदास के यज्ञ में गये। कौशिकों के कार्य से इन्द्र प्रसन्न हुए। नभो जामम्रुर्नन्यर्थमीयुर्नरिष्यन्ति न व्यथन्ते ह भोजाः। इदं यद्विश्वं भुवनं स्वश्चैतत्सर्वं दक्षिणैभ्योददाति॥ (ऋक् १०/१०७/८) = भोज न मरते हैं, न दरिद्र होते हैं। न रुसते हैं, न दुखी होते हैं। वे पूरे विश्व को दक्षिणा तथा सुख देते हैं। भोजाजिग्युः सुरभिं योनिमग्रे भोजा जिग्युर्वध्वंया सुवासाः। भोजाजिग्युरन्तः पेयं सुराया भोजाजिग्युर्ये अहूताः प्रयन्ति॥९॥ = भोज ही पहले दूध घी देने वाली सुरभि पाते हैं, सुन्दर वस्त्रों वाली वधू पाते हैं। वे सुरा तथा पेय पाते हैं। जो बिना कारण आक्रमण करते हैं, उनको जीत लेते हैं। भोजायाश्वं संमृजन्त्याशुं भोजायास्तेकन्या शुम्भमाना। भोजस्येदं पुष्करिणीव वेश्म परिष्कृतं देवमानेव चित्रम्॥१०॥ = भोज तेज गति वाले घोड़े उत्पन्न करते हैं, उनकी कन्यायें सुशोभित रहती हैं। भोजों का निवास पुष्करिणी के समान निर्मल तथा देव-मान जैसा सज्जित होता है। भोजमश्वाः सुष्ठु-वाहो वहन्ति सुवृद्रथो वर्तते दक्षिणायाः। भोजं देवासो ऽवता भरेषु भोजः शत्रून्त्समनीकेषु जेता॥११॥ = भोजों के अश्व सवारी के लिये उत्तम हैं। उनका रथ युद्ध के लिये उत्तम है। भोज भरण से तथा युद्ध जीत कर देवों की रक्षा करते हैं। यही काशी क्षेत्र भोज की पुष्करिणी थी तथा यहां वर्तते का प्रयोग था। यहां खाने-पीने तथा सभी वस्तुओं की सुविधा थी। यह ज्ञान तथा शक्ति का केन्द्र था तथा देवों की रक्षा करता था। महादेव के वृषभ से यज्ञ होता है। उस के अन्न से जो क्षेत्र पूर्ण हो, उसे भोजपुरी कहते हैं- देवानां माने (निर्माणे) प्रथमा अतिष्ठन् कृन्तत्रा (अन्तरिक्ष, विकर्तन = मेघ) देषामुत्तराउदायन्। त्रयस्तपन्ति (त्रिशूल) पृथिवी मनूपा (जल से भरा क्षेत्र) द्वा (वायु + आदित्य) वृवूकं वहतः पुरीषम् (बुरबक या मूर्ख बहाते हैं पुरीष या मल)। (ऋग्वेद, १०/२७/३०) = यह वाराणसी (त्रिशूल पर स्थित) देवों की प्रथम पुरी है, जहां वर्षा, जल, अन्न भरा है। पुरी का अर्थ है जल, अन्न से भरा (निरुक्त, २/२२) (३) विदर्भ भोज-रामायण काल में विदर्भ को भोज राज्य कहा गया है। रघुवंश के सर्ग (५, ७) में विदर्भ राजकुमारी इन्दुमती को हमेशा भोजवंशी ही कहा गया है- भोजेन दूतो रघवे विसृष्टः (५/३९) विदर्भाधिपराजधानीम् (५/४०), सौराज्य रम्यानपरो विदर्भान् (५/६०), स्वयंवरं साधुममंस्त भोज्या (७/१३), तत्रार्चितो भोजपतेः पुरोधा (७/२०), तमुद्वहन्तं पथि भोजकन्यां (७/३५)। विदर्भ क्षेत्र के यदुवंशी भी भोज कहे जाते थे, यहां की राजकुमारी रुक्मिणी से भगवान् कृष्ण का विवाह होने पर उसके भाई रुक्मी ने युद्ध किया और पराजित होने पर भोजकट नगर बसा कर उसमें रहने लगा। अन्धक (आन्ध्र), भोज (विदर्भ), सात्वत (गुजरात, राजस्थान) कुक्कुर (पश्चिमोत्तर सीमा, खोखर), वृष्णि (उत्तर प्रदेश) के ५ गणों का राजा होने के कारण मथुरा के राजा कंस को भी भोजराज कहा गया है। भागवत पुराण, स्कन्ध १०, अध्याय १- श्लाघ्नीय गुणः शूरैर्भवान्भोजयशस्करः॥३७॥ उग्रसेनं च पितरं यदु-भोजान्धकाधिपम्॥६९॥ स्कन्ध ११, अध्याय ३०-दाशार्ह-वृष्ण्य-न्धक-भोज-सात्वता मध्वर्बुदा-माथु-रशूरसेनाः॥ विसर्जनाः कुकुराः कुन्तयश्च मिथस्ततस्तेऽश्चविसृज्यसौ हृदम्॥१८॥ भागवत पुराण, स्कन्ध १०-वैदर्भीं भीष्मकसुतां श्रियो मात्रां स्वयंवरे (५२/१६) राजासीद्भीष्मको नाम विदर्भाधिपतिर्महान्। तस्य पन्चाभवन्पुत्राः कन्यैका च वरानना॥ (५२/२१) रुक्म्यग्रजो रुक्मरथो रुक्मबाहुरनन्तरः। रुक्मकेशो रुक्ममाली रुक्मिण्येषा स्वसा सती॥ (५२/२२) स्मरन्विरूपकरणं वितथात्ममनोरथः। चक्रे भोजकटं नाम निवासाय महत्पुरम्॥५४/५१) (४) मालवा भोज-नक्शा बनाने के लिये भारत का केन्द्र उज्जैन था जहा का देशान्तर पूरे विश्व के लिये शून्य अंश मानते थे। अतः यहां के परमार राजाओं संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्य से मिहिरभोज तक (८२ ई.पू. से ११९२ ई.) सभी को भोज ही कहते थे। विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन (७८-१३८ ईसवी) ने शकों को परजित कर ७८ ईसवी में शक चलाया। उसके १०वीं पीढ़ी के भोजराज के काल में तृतीय कालिदास पैगम्बर मुहम्मद के समकालीन थे। तृतीय कालिदास आशुकवि और तान्त्रिक थे-इनकी चिद्गगन चन्द्रिका है तथा कालिदास और भोज के नाम से विख्यात काव्य इनके हैं।भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व ३, अध्याय ३- शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्। ॥१॥ भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः॥दृष्ट्वा प्रक्षीण मर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ॥२॥ सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः। तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ॥३॥ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्। ॥४॥ एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्य्येण समन्वितः। महामद इति ख्यातः शिष्य शाखा समन्वितः॥५॥ महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः॥१२॥ इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ॥१४॥ तच्छ्रुत्वा कालिदासस्तु रुपा प्राह महामदम्। पैशाच देहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत्॥२३॥ ईशाज्ञया करिष्यामि पैशाचं धर्मदारुणम्॥२४॥ लिंगच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम॥२५॥ मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति॥२६॥ तस्मान् मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः॥२७॥ (५) पश्चिमोत्तर भारत-उत्पादन स्रोत रूप में पृथ्वी को गौ कहा गया है, जिसके ४ समुद्र गौ के ४ स्तन की तरह हैं--(१) जल मण्डल, (२) वायु मण्डल, (३) भूमण्डल (ठोस स्थल भाग), (४) जीव मण्डल। इनको अंग्रेजी में स्फियर (Sphere) कहते हैं-हाइड्रोस्फियर (Hydrosphere), एटमोस्फियर (Atmosphere), लिथोस्फियर (Lithiosphere), बायोस्फियर (Biosphere)। जब भी पृथ्वी पर अत्याचार होता था, गोरूपधारी पृथ्वी ब्रह्मा के साथ विष्णु भगवान् के पास जाती थी। ग्रीक में भी पृथ्वी को गैया (Gaia) कहते थे जिससे जिओ (Geo) शब्द बना है-Geography, Geology। पयोधरी भूतचतुः समुद्रां जुगोप गोरूप धरामिवोर्वीम्। (रघुवंश, २/३) धेनुरिव वाऽइयं (पृथिवी) मनुष्येभ्यः सर्वान् कामान् दुहे माता धेनु-र्मातेव वा ऽइयं (पृथिवी) मनुष्यान् बिभर्त्ति। (शतपथ ब्राह्मण, २/२/१/२१) भूमिर्दृप्त नृपव्याज दैत्यानीक शतायुतैः। आक्रान्ता भूरिभारेण ब्रह्माणं शरणं ययौ॥१७॥ गौर्भूत्वा-श्रुमुखी खिन्ना क्रन्दन्ती करुणं विभोः। उपस्थितान्तिके तस्मै व्यसनं स्वमवोचत॥१८॥ ब्रह्मा तदुपधार्याथ सह देवैस्तया सह। जगाम सत्रिनयनस्तीरं क्षीर पयोनिधेः॥१९॥ (भागवत पुराण, १०/१) राजा पृथु ने भी पृथ्वी से खनिजों, फल मूल, आहार आदि का दोहन करने के लिए उसे गौ कहा है। तत उत्सारयामास शिला-जालानि सर्वशः। धनुष्कोट्या ततो वैन्यस्तेन शैला विवर्द्धिताः॥१६७॥ मन्वन्तरेष्वतीतेषु विषमासीद् वसुन्धरा। स्वभावेना-भवं-स्तस्याः समानि विषमाणि च॥१६८॥ आहारः फलमूलं तु प्रजानाम-भवत् किल। वैन्यात् प्रभृति लोके ऽस्मिन् सर्वस्यैतस्य सम्भवः॥१७२॥ शैलैश्च स्तूयते दुग्धा पुनर्देवी वसुन्धरा। तत्रौषधी र्मूर्त्तिमती रत्नानि विविधानि च॥१८६॥ इसमें कामधेनु रूप भारत है जो पूरे विश्व का भरण करता था। कामधेनु अर्थ में वेद में भारत को हिंकृण्वती (हिंकार करने वाली) वसुपत्नी (धन देने वाली-मुखिया पत्नी अर्थ में कन्नड़ में हेग्गड़ती), इस रूप में दुही गयी कहा है। हिङ्कृण्वती वसुपत्नी वसूनाम् वत्समिच्छन्ति मनसाभ्यागात्। दुहामश्विभ्यां पयो अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय॥ (ऋक्, १/१६४/२७, अथर्व, ७/७३/८, ९/१०/५, ऐतरेय ब्राह्मण, १/२२/२) मन्त्र के दोनो पंक्तियों के प्रथम अक्षरों को मिलाने से हिन्दू शब्द बनता है, जिसका अर्थ हुआ भारतमाता का पुत्र। इसके बाद के २ ऋक् मन्त्र भी भारत का गोमाता रूप में वर्णन करते हैं। परशुराम-सहस्रार्जुन तथा वसिष्ठ विश्वामित्र विवाद में कामधेनु से उत्पन्न जातियों का वर्णन है-ब्रह्मवैवर्त पुराण (३/२४/५९-६४), वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, (५४/१८-२३, ५५/२-३), ब्रह्माण्ड पुराण (२/३/२९/१८-२१), स्कन्द पुराण (६/६६/५२-५३)। विश्वामित्र गाधि के पुत्र थे तथा परशुराम उनकी पुत्री के पुत्र (ब्रह्म पुराण, १/१०/२८-४०)। कामधेनु से उत्पन्न जातियां-(१) पह्लव-पारस, काञ्ची के पल्लव। पल्लव का अर्थ पत्ता है। व्यायाम करने से पत्ते के रेशों की तरह मांसपेशी दीखती है। अतः पह्लव का अर्थ मल्ल (पहलवान) है। (२) कम्बुज हुंकार से उत्पन्न हुए। कम्बुज के २ अर्थ हैं। कम्बु = शंख से कम्बुज या कम्बोडिया। कामभोज = स्वेच्छाचारी से पारस के पश्चिमोत्तर भाग के निवासी। खण्ड राज्य को भोज कहते थे, जैसे काशिराज दिवोदास को भोज राज कहा है (ऐतरेय ब्राह्मण, ३७/२, ऋक्, ३/५३/७, १०/१०७/८ आदि)। अतः कामभोज का अनुवाद स्मर-खण्ड (स्मर = काम) या समरकन्द हो सकता है। (३) शक-मध्य एशिया तथा पूर्व यूरोप की बिखरी जातियां, कामधेनु के सकृद् भाग से (सकृद् = १ बार उत्पन्न), (४) यवन-योनि भाग से -कुर्द के दक्षिण अरब के। (५) शक-यवन के मिश्रण, (६) बर्बर-असभ्य, ब्रह्माण्ड पुराण (१/२//१६/४९) इसे भारत ने पश्चिमोत्तर में कहता है-कामभोज, दरद (डार्डेनल, चण्डीपाठ ८/६ का दौर्हृद), के निकट। मत्स्य पुराण (१२१/४५) भी इसे उधर की चक्षु (आमू दरिया-Oxus) किनारे कहता है। (७) लोम से म्लेच्छ, हारीत, किरात (असम के पूर्व, दक्षिण चीन), (८) खुर से खुरद या खुर्द, कुर्द्द-तुर्की का दक्षिण भाग। (९) पुलिन्द (पश्चिम भारत-मार्कण्डेय पुराण, ५४/४७), मेद, दारुण-सभी मुख से। मेद नाम का कोई देश नहीं लिखा है। बल असुर के मेद से स्फटिक, मरकत की उत्पत्ति का उल्लेख है (पद्म पुराण, ६/६/२६, २९)। ब्रह्माण्ड पुराण (२/३/७/९४) में पौरुषेय राक्षस के ५ पुत्रों में एक का नाम मेदाश है। एक मेडेस ईरान का पश्चिमोत्तर भाग था। सिन्धु के पूर्व भारत को भी बाइबिल में मेडेस कहा है (हिमालय-विन्ध्य के बीच मध्य देश, नेपाल में मधेस)। ब्रह्माण्ड पुराण (२/३/७/११) में एक गन्धर्व का नाम दारुण है। यह गान्धार निकट हो सकता है। परमार भोज की रचनाओं का वर्णन यहां है। यह कई भोजों का हो सकता है जिसके कारण उनके काल निर्धारण तथा वंशावली में भ्रम होता है। https://www.esamskriti.com/e/History/Great-Indian-Leaders/RAJA-BHOJ-Parmar~Great-Scholar-King-1.aspx



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