गौ-माता

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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  मीनाक्षी सिंह (सहसंपादक) – सभी निर्माण का स्थान और साधन गौ  है। प्रथम निर्माण ब्रह्माण्ड का है। उसका निर्माण क्षेत्र उसका १० गुणा बड़ा गौ लोक है जिसके भीतर विराट् बालक रूप ब्रह्माण्ड पैदा होता है (ब्रह्म-वैवर्त्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अध्याय ३)। वेद में इसे कूर्म कहा गया है, क्यों कि यह काम करता है, इस आकार का पशु भी कूर्म है। सूर्य का तेज भी गौ  है जिससे जीवन चलता है। पृथ्वी पर भी गौ  दुग्ध से ही हमारा पालन होता है, उससे कृषि होती है। अतः निर्धनता दूर करने के लिये तथा लक्ष्मी के लिये गौ  की ही पूजा होती है- गावो लोकास्तारयन्ति क्षरन्त्यो गावश्चान्नं संजयन्ति लोके। यस्तं जानन् न गवां हार्द्दमेति स वै गन्ता निरयं पापचेताः॥ (महाभारत, अनुशासन पर्व, ७१/५२ नाचिकेत-यमराज-सम्वाद) विश्व को क्षय से गौ बचाती है तथा अन्न का उत्पादन करती है। यह जानकर भी जो गाय की श्रद्धा नहीं करता, वह महापापी है। जब च्यवन ऋषि मछुये के जाल में फंस गये थे तो उनकी मुक्ति के लिये उनके मूल्य के रूप में पूरा राज्य कम था, गौ ही उनका पूर्ण मूल्य थी- च्यवन उवाच-अर्धं राज्यं समग्रं च मूल्यं नार्हामि पार्थिव। सदृशं दीयतां मूल्यमृषिभिः सह चिन्त्यताम्॥१३॥ ब्राह्मणानां गवां चैव कुलमेकं द्विधा कृतम्। एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति॥ अनर्घेया महाराज द्विजा वर्णेषु चोत्तमाः। गावश्च पुरुषव्याघ्र गौर्मूल्यं परिकल्प्यताम्॥२२॥ (महाभारत, अनुशासन पर्व, ५१) महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय ८३ में इन्द्र को ब्रह्मा ने उपदेश दिया है कि अपना राज्य वापस पाने के लिये गौ की पूजा करें। वेद में गौ को रुद्र की माता, वसु की पुत्री, आदित्य की बहन, अमृत की नाभि कहा है। गौ की कोई भी प्रशंसा अधिक नहीं हो सकती तथा गौ हत्या बिल्कुल नहीं हो- माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः। प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनामदितं वधिष्ट॥ (ऋग्वेद ८/१०१/१५) आकाश में-अमृत गौ लोक का केन्द्र, गौ  रूपी किरण से सूर्य का रौद्र तेज होता है (रुद्र-माता), सौर तेज की बहन, वसु रूपी सूर्य की पुत्री है। पृथ्वी पर-अमृत दुग्ध-अन्न का केन्द्र, रुद्र रूपी इन्द्रिय या तेज की माता, आदित्य रूपी समाज की बहन, वसु रूपी घास आदि की पुत्री है जिससे गौ का जीवन चलता है। गौ  सूक्त-आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन् सीदन्तु गौ ष्ठे रणयन्त्स्वमे। प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युः, इन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः।।१॥ गावो भगौ  गाव इन्द्रो मे अच्छात्, गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः। इमा या गावः स जनास इन्द्रः, इच्छामीद् वृद्धा मनसा चिदिन्द्रम्॥२॥ यूयं गावो मेदयथा कॄशं चित्, अश्लीलं चित् कृणुथा सुप्रतीकम्। भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचः, बृहद्वो वय उच्यते सभासु॥३॥ प्रजावतीः स्नवयसं रुशन्तीः, शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः। मा वः स्तेन ईशत माऽघशंसः, परि वो हेती रुद्रस्य वृञ्ज्यान्॥४॥ (तैत्तिरीय ब्राह्मण २/८/८) = (१) गौ हमारे पास आकर उन्नति करे। गौ शाला में रह कर हमारा घर सुखद बनायें। बछड़े उत्पन्न करें, दूध आदि दें जो इन्द्र को अर्पण हो सके। (२) गौ ही सम्पत्ति हैं तथा इन्द्र जैसा पालन करती हैं। वह सोम युक्त हैं अतः उनकी रक्षा के लिये इन्द्र की प्रार्थना करते हैं। (३) गौ हमारे बच्चों को पुष्ट तथा सुन्दर करें। हमारे घर, वाणी के लिये शुभ हैं तथा विद्वान् इसकी चर्चा करते हैं। (४) गौ और उनकी सन्तान अच्छा अन्न खायें तथा स्वच्छ जल पियें। उनके आशीर्वाद से हम पाप मुक्त हों तथा उनकी रक्षा कर सकें।



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