श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)-
(१) अम्बष्ठ का एक अर्थ है ब्राह्मण पिता और वैश्य माता का पुत्र-ब्राह्मणाद् वैश्य कन्यायामम्बष्ठो नाम जायते। (मनु स्मृति, १०/८) गरुड़ पुराण (१/९६/२) ब्रह्मवैवर्त्त पुराण (१/१०/१८) में भी। दोनों वर्णों के कार्य करने वाला भी हो सकता है, क्योंकि सदा इस प्रकार के वर्ण संकर नहीं होंगे। चिकित्सा कर्म में अध्ययन तथा निर्देश ब्राह्मण कर्म है, पैसे ले कर चिकित्सा शूद्र कर्म।
हाथी का महावत-अम्बष्ठाम्बष्ठ मार्गं नौ देह्यपक्रम मा चिरम् (भागवत पुराण, १०/४३/४)
चिकित्सक-अम्बष्ठ चिकित्सा कर्म करते थे-सूतानामश्वसारथ्यम् अम्बष्ठानां चिकित्सनम् (मनुस्मृति, १०/४७)
सिन्ध देश के उत्तर का एक प्रजातन्त्र जिसे नकुल ने जीता था (महाभारत, सभा पर्व, ३२/७)। यहां का राजा श्रुतायु अभिमन्यु द्वारा पराजित हुआ था (महाभारत, भीष्म पर्व, ९६/३९-४०)
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(२) करण-गांव के राजस्व अधिकारी को करण कहते थे (आन्ध्र, महाराष्ट्र, ओड़िशा)। इसे भी वैश्य-शूद्रा की सन्तान अर्थात् उभय कर्म का कहा गया है। सरकारी कार्यालय में लेखक को करण कहते थे-शासन के उपकरण अर्थ में-यमस्य करणः (अथर्व वेद, ६/४६/२)।
(३) कायस्थ, घोष-सामान्य अर्थ है कि काया या शरीर पालन मात्र ही जो ब्राह्मण आदि करते हैं, वे कायस्थ हैं। इसके पर्याय हैं-कूटकृत्, पञ्जिकार, करण (त्रिकाण्डशेष)। कूट लिपि के प्रयोग की लिपि को कायस्थी या कैथी कहते हैं। राजा या उनके अधिकारी प्रायः अत्याचार करते हैं या घूस लेते हैं, अतः उनकी निन्दा होती है। इन्द्र को अजेय अर्थ में अच्युत-च्युतः कहते थे, अर्थात् जो अब तक अपराजित है, उसे भी पराजित कर सके।
यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत स जनास इन्द्रः॥ (ऋग्वेद, २/१२/९)
अधिक शक्ति होने पर च्युतः (चुतिया) निन्दा का शब्द हो गया। हिब्रू में Chutzpah का भी प्रायः वही अर्थ है। राजा, पति, गुरु आदि को नाम से नहीं बुलाते थे अतः इन्द्र को ’स जना’ कहा है। इससे सजना का अर्थ पति भी प्रचलित है।
सरकारी कर्मचारी को करण (उपकरण) या कायस्थ कहते थे। अधिकारी भी जनता को लूटने के लिए अत्याचार करते हैं, अतः कायस्थ का रूढ़ि अर्थ हुआ-काक, यम, स्थपति-जैसा धूर्त, क्रूर, काट-छांट करने वाला (औशनसी स्मृति, ३५)।ओड़िशा में जनमेजय के वंशजों द्वारा उनके दिग्विजय (३०१४ ईपू) से विजय राज्य संवत्सर आरम्भ हुआ जो तक्षशिला के नाग राज्य को नष्ट कर भारत दिग्विजय के बाद आरम्भ हुआ। उनके कई दानपत्र ओड़िशा म्यूजियम से प्रकाशित हैं। इन सभी में लेखकों को कायस्थ, घोषणा करने वाले को घोष कहा गया है।
जनमेजय महाभवगुप्त राज्य के षष्ठ वर्ष में मूरसीमपत्तन (जहां के अधिकारी बाद में मौर्य राजा बने) से जारी ताम्रपत्र-श्री जनमेजयदेवस्य विजयराज्ये सम्वत्सरे षष्ठे फाल्गुनमास द्वितीयपक्षतिथौ प्रतिपदि यत्राङ्कतोऽपि सम्वत् ६ फाल्गुन सुदी १ लिखितमिदं शासनं महासान्धिविग्रह श्रीमल्लदत्त श्रीधारदत्त सुत प्रतिबद्ध कायस्थ कोई घोषेण् वल्लभघोष सुतेन। उत्कीर्ण्णं सुवर्ण्णकार वापुकेन शावदेवसुतेन।
(४) नायक, पटनायक-मध्यम वर्ग के सैनिक या असैनिक अधिकारी नायक थे। उच्च अधिकारी पट्टनायक थे। उनको सूती वस्त्र का सिरोपा ओड़िशा में देते थे। मन्त्री या विभाग प्रमुख को रेशमी वस्त्र का सिरोपा मिलता था। इसका अनुकरण गुरुद्वारा में हुआ। पटनायक सेना में असैनिक अधिकारी थे।
(५) परीछा, परीछा पटनायक-लेखा परीक्षक, महालेखा परीक्षक (जगन्नाथ स्थल वृत्तान्तम्, मूल तेलुगू से अंग्रेजी में अनूदित-जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी, १९८५)
(६) श्रीवास्तव-उज्जैन तथा उसके उत्तर के राज्यों को श्रीवत्स, वत्स कहते थे। वत्सराज उदयन के विषय में भास के कई संस्कृत नाटक हैं। उनके कार्यालय अधिकारी श्रीवास्तव थे।
(७) महान्ति, महन्त (ओड़िशा, असम)-कार्यालय प्रमुख।
(८) महापात्र-विभाग प्रमुख। कथा सरितसागर में हाथी विभाग के प्रमुख को हाथी महापात्र कहा गया है। भुवनेश्वर में हाथी महापात्र मार्ग है (लिंगराज मन्दिर के निकट)।
(९) दास-सभी सरकारी अधिकारी सरकार के दास हैं (Government Servant, Public Servant)। उनकी उपाधि दास है। भगवान् के भक्त या सेवक को भी सम्मान के लिए दास कहते हैं। यह दास प्रथा या अपमान नहीं है। शासन के सेवक या प्रधान सेवक अपने को भगवान् से भी ऊपर मानते हैं।
(१०) दास महापात्र-विभाग मुख्य के व्यक्तिगत सहायक। इसका संक्षेप केवल दास, या महापात्र हुआ है।
(११) सिनहा-राजा को सम्मान के लिए सिंह लिखते थे को पशुओं का राजा या मृगेन्द्र है। राजा के निकट अधिकारी भी अपने को सिंह लिखते थे। अंग्रेजी में यह सिन्हा हो गया है। या संस्कृत में सिन का अर्थ शरीर है (षिञ् या सिञ् बन्धने, धातु पाठ, ५/२, ९/५। बान्धना) कायस्थ का पर्याय सिनहा हुआ। सन्नाह का अर्थ कवच है। बान्धने वाला रेशा सन है। घटना को लिख कर सुरक्षित करना सनहा है (पुलिस थाना में डायरी में लेखन)। लेखन, कवच प्रयोग करने वाले सिनहा हैं।
(१२) नाग, अस्थाना-ये दोनों उपाधि नाग जाति से सम्बन्धित हैं। पूरे विश्व में नाग फैले हुए थे, मेक्सिको के आस्तीक (Aztec), नहुष (Nahua) महाभारत में वर्णित हैं। ये व्यापार, युद्ध के लिए पूरे विश्व में जाते थे। महाभारत में हर द्वीप के नागों का वर्णन है। भारत में इनके स्थान थे-अहिगृह (अघरिया व्यापारी), अहिच्छत्र (प्राचीन पाञ्चाल), अहिस्थान के अस्थाना। नागों के अन्य स्थान थे नागपुर, छोटा (चुतिया)-नागपुर, भागलपुर (भोगवती या भोगल मेक्सिको की नाग राजधानी थी)। भोगल के व्यापारी फोगला हैं।
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