लिंग महात्म्य

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)   लिङ्ग-लीनं + गमयति = लिंग। ३ प्रकार के लिंग हैं- मूल स्वरूप लिङ्गत्वान्मूलमन्त्र इति स्मृतः । सूक्ष्मत्वात्कारणत्वाच्च लयनाद् गमनादपि । लक्षणात्परमेशस्य लिङ्गमित्यभिधीयते ॥ (योगशिखोपनिषद्, २/९, १०) (क) स्वयम्भू लिङ्ग-लीनं गमयति यस्मिन् मूल स्वरूपे। जिस मूल स्वरूप में वस्तु लीन होती है तथा उसी से पुनः उत्पन्न होती है, वह स्वयम्भू लिंग है। यह एक ही है। (ख) बाण लिंग-लीनं गमयति यस्मिन् दिशायाम्-जिस दिशा में गति है वह बाण लिंग है। बाण चिह्न द्वारा गति की दिशा भी दिखाते हैं। ३ आयाम का आकाश है, अतः बाण लिंग ३ हैं। (ग) इतर लिंग-लीनं गमयति यस्मिन् बाह्य स्वरूपे-जिस बाहरी रूप या आवरण में वस्तु है वह इतर (other) लिंग है। यह अनन्त प्रकार का है, पर १२ मास में सूर्य की १२ प्रकार की ज्योति के अनुसार इसे १२ ज्योतिर्लिंगों में विभक्त किया गया है। आधिदैविक- आकाश में विश्व का मूल स्रोत अव्यक्त लिंग है, ब्रह्माण्डों के समूह के रूप में व्यक्त स्वयम्भू लिंग है। ब्रह्माण्ड या आकाशगंगा से गति का आरम्भ होता है, अतः यह बाण-लिंग है। सौर मण्डल में ही विविध सृष्टि होती है अतः यह इतर लिंग है।    आधिभौतिक-भारत में अव्यक्त स्वयम्भू लिंग भुवनेश्वर का लिंगराज है, जो जगन्नाथ धाम की सीमा है। वेद में उषा सूक्त (ऋक्, १/१२३/८) में पृथ्वी परिधि का १/२ अंश = ५५.५ कि.मी. धाम है, जगन्नाथ मन्दिर से उतनी दूरी पर एकाम्र क्षेत्र तथा लिंगराज है। व्यक्त स्वयम्भू लिंग ब्रह्मा के पुष्कर क्षेत्र की सीमा पर मेवाड़ का एकलिंग है। त्रिलिंग क्षेत्र तेलंगना है, जो अब नया राज्य बना है। जनमेजय काल में यह त्रिकलिंग का भाग था। १२ ज्योतिर्लिंग भारत के १२ स्थानों में हैं।    आध्यात्मिक-शरीर में मूलाधार में स्वयम्भू लिंग है क्योंकि यहां के अंगों से प्रजनन होता है। शरीर के भीतर श्वास और रक्त सञ्चार हृदय के अनाहत चक्र से होते हैं अतः यह बाण लिंग है। विविध वस्तुओं का स्वरूप आंख से दीखता है तथा मस्तिष्क द्वारा बोध होता है, अतः इसके आज्ञा चक्र में इतर लिंग है। योनिस्थं तत्परं तेजः स्वयम्भू लिङ्ग संस्थितम् । परिस्फुरद् वादि सान्तं चतुर्वर्णं चतुर्दलम् । कुलाभिधं सुवर्णाभं स्वयम्भू लिङ्ग संगतम् । हृदयस्थे अनाहतं नाम चतुर्थं पद्मजं भवेत् । पद्मस्थं तत्परं तेजो बाण लिङ्गं प्रकीर्त्तितम् । आज्ञापद्मं भ्रुवो र्मध्ये हक्षोपेतं द्विपत्रकम् । तुरीयं तृतीय लिङ्गं तदाहं मुक्तिदायकः । (शिवसंहिता, पटल ५) शब्द लिंग-अव्यक्त शब्दों को व्यक्त अक्षरों द्वारा प्रकट करना भी लिंग (Lingua = language) है। लिंग पुराण में अलग अलग उद्देश्यों के लिये अलग अलग लिपियों का उल्लेख है- शुद्ध स्फटिक संकाशं शुभाष्टस्त्रिंशदाक्षरम् । मेधाकरमभूद् भूयः सर्वधर्मार्थ साधकम् ॥८३॥ गायत्री प्रभवं मन्त्रं हरितं वश्यकारकम् । चतुर्विंशति वर्णाढ्यं चतुष्कलमनुत्तमम् ॥८४॥ अथर्वमसितं मन्त्रं कलाष्टक समायुतम् । अभिचारिकमत्यर्थं त्रयस्त्रिंशच्छुभाक्षरम्॥८५॥ यजुर्वेद समायुक्तम् पञ्चत्रिंशच्छुभाक्षरम् । कलाष्टक समायुक्तम् सुश्वेतं शान्तिकं तथा॥८६॥ त्रयोदश कलायुक्तम् बालाद्यैः सह लोहितम् । सामोद्भवं जगत्याद्यं बृद्धिसंहार कारकम् ॥८७॥ वर्णाः षडधिकाः षष्टिरस्य मन्त्रवरस्य तु । पञ्च मन्त्रास्तथा लब्ध्वा जजाप भगवान् हरिः ॥८८॥ (लिङ्ग पुराण १/१७) गायत्री के २४ अक्षर-४ प्रकार के पुरुषार्थ के लिये। कृष्ण अथर्व के ३३ अक्षर-अभिचार के लिये। ३८ अक्षर-धर्म और अर्थ के लिये (मय लिपि के ३७ अक्षर=अवकहडा चक्र + ॐ) यजुर्वेद के ३५ अक्षर-शुभ और शान्ति के लिये-३५ अक्षरों की गुरुमुखी लिपि।



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