आचार्य अखिलेश द्विवेदी- हिंदू धर्म में दो मंत्रों महामृत्युंजय तथा गायत्री मंत्र की बड़ी भारी महिमा बताई गई है। कहा जाता है कि इन दोनों मंत्रों में किसी भी एक मंत्र का सवा लाख जाप १२५०० आइति १२५० तर्पण १२५ मार्जन १२ ब्राम्हण भोजन करके जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छा को पूरा किया जा सकता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय ऋषि-मुनियों ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है। शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञान से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः । इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित मृतसंजीवनी विद्या के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद एवं मंत्र सार में मृत्यर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को ‘मृत्युंजय’ कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं-वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले हैं। मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के है १. पहला मंत्र तीन व्यह्यति भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ २. दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण ‘मृतसंजीवनी’ तथा उपर्युक्त प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामतात ॥ ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हीं ॐ ३. महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र (शुक्राचार्य द्वारा आराधित) ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यंबकेयजामहे ॐ तत्सर्वितर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिपुष्टिवर्धनम् ॐ भगदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारुकमिव बंधनान् ॐ थियो योनः प्रचोदयात् ॐ मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौ ॐ ।। महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 कोटि (प्रकार) के देवताओं के घोतक हैं। महामृत्युंजय मन्त्र से शिब की आराधना करने पर समस्त देवी देवताओं की आराधना स्वमेव हो जाती है। उन तैंतीस कोटि देवताओं में 8 बसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है, जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं। साथ ही वह नौरोग, ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है। महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है। भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तर बरसती रहती है। महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को मृत्यु को जीतने वाला’ माना जाता है। मंत्र… कामना विशेष में जप संख्या -राष्ट्र बिनाशोन्मुख की स्थिति में आ गया हो, देश, ग्राम में महामारी (बीमारी), आने पर, उसकी शान्ति के लिए एक करोड महामृत्युञ्जय जप कराना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा, ग्रहपीड़ा, षडाष्टक, मेलापक में नाड़ीदोष आदि आता हो तो सवा लाख महामृत्युञ्जय जप करावे। -किसी प्रकार की भी बीमारी या महामारी से मुक्ति पाने हेतु तथा अनिष्ट सूचक दुःख, स्वप्न देखने पर शुभफल की प्राप्ति हेतु सवा लाख महामृत्युञ्जय जप करावे। अपने अभीष्ट-सिद्धि, पुत्र-पौवादी की प्राप्ति, राज्य प्राप्ति, मनोनुकूल सम्मान प्राप्ति एवं धन प्राप्त करने के लिए सवा लाख महामृत्युञ्जय जप करावे । अपमृत्यु (अर्थात अग्नि में जलकर, पानी में डूबकर, सर्प आदि किसी विषधर जन्तु के काटने से मृत्यु होने पर) से मुक्ति पाने के लिए दस हजार महामृत्यय जप करावें “जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें। मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें। एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
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