श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ )- मनुष्य बुद्ध-बुद्धत्व चेतना की सर्वोच्च स्थिति है जिसे गीता (२/७२) में ब्राह्मी स्थिति कहा गया है।
मनुष्य रूप में २८ बुद्धों का स्तूप (थूप) वंश में वर्णन है। प्रथम कश्यप बुद्ध थे, जिनको स्वायम्भुव मनु के बाद द्वितीय व्यास या ब्रह्मा कहा गया है। उस समय (१७५०० ईपू) में अदिति के पुनर्वसु नक्षत्र से वर्ष का अन्त तथा आरम्भ होता था जो वैदिक शान्ति पाठ में पढ़ा जाता है-अदितिर्जातम्, अदितिर्जनित्वम् (ऋग्वेद १/८९/१०, अथर्व ७/६/१, वाजसनेयि सं. २५/२३, मैत्रायणी सं. ४/२४/४)-वर्ष अन्त में पुनर्वसु आता है, उससे नया वर्ष आरम्भ होता है। कश्यप बुद्ध को चीन में फान या मञ्जुश्री कहा गया है, जिनसे भाषा की उत्पत्ति हुई। (एक बौद्ध ग्रन्थ है मञ्जुश्रीमूल कल्प)
परशुराम काल में सुमेधा बुद्ध थे। रामायण काल में चीन में अमिताभ बुद्ध हुए थे जिनको भारत में काकभुशुण्डि कहा गया है। यह मेरु (प्राङ्-मेरु = पामीर) के उत्तर पूर्व में थे (योग वासिष्ठ रामायण, निर्वाण काण्ड, भाग १ के अध्याय १४-१७)।
दीपङ्कर बुद्ध के शिष्य ओड़िशा के राजा इन्द्रभूति थे (बौद्ध धर्म और दर्शन-आचार्य नरेन्द्रदेव)। इन्द्रभूति की पुत्री लक्ष्मीङ्करा द्वारा बाउल गीत आरम्भ हुए जो बंगाल में प्रचलित हैं। इन्द्रभूति के शिष्यों द्वारा साधकों की लामा परम्परा आरम्भ हुई। इनके अनुकरण में इस्लाम में ज्ञानी को अल्-लामा कहते हैं।
महाभारत काल में जब नेपाल में किरात राजाओं का शासन था तो वहां शाक्यसिंह बुद्ध गये थे। वहां पशुपतिनाथ में लोक संहार का अस्त्र अर्जुन को मिला था जिसे पाशुपत (पशुपति का) कहते थे। इसका प्रयोग साइबेरिया (शिबिर) के निवातकवचों के विरुद्ध अर्जुन ने महाभारत के ६ वर्ष पूर्व ३१४५ ईपू में किया था (महाभारत, वन पर्व, ४०/१५-२०, अनुशासन पर्व, १४/२५८-२७५)।
सिद्धार्थ बुद्ध सबसे प्रसिद्ध हैं। इक्ष्वाकु वंश के भगवान् राम की ३५ वीं पीढ़ी में बृहद्बल थे जो महाभारत युद्ध में अर्जुन द्वारा मारे गये। बृहद्बल की २४ पीढ़ी बाद शुद्धोदन हुए जिनके पुत्र सिद्धार्थ का जन्म जन्म ३१-३-१८८६ ईसा पूर्व, शुक्रवार को कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी (= मृग वन) में हुआ जिस दिन वैशाख शुक्ल १५ (पूर्णिमा), ५९-२४ घटी तक थी। कपिलवस्तु के लिये प्रस्थान २९-५-१८५९ ईसा पूर्व, रविवार, आषाढ़ शुक्ल १५। बुद्धत्व प्राप्ति ३-४-१८५१ ईसा पूर्व, वैशाख पूर्णिमा सूर्योदय से ११ घटी पूर्व तक। शुद्धोदन का देहान्त २५-६-१८४८ ईसा पूर्व, शनिवार, श्रावण पूर्णिमा। बुद्ध निर्वाण २७-३-१८०७ ईसा पूर्व, मंगलवार, वैशाख पूर्णिमा, सूर्योदय से कुछ पूर्व। इनकी जन्म कुण्डली-लग्न ३-१-२’, सूर्य ०-४-५४’, चन्द्र ६-२८-६’, मंगल ११-२८-२४’, बुध ११-१०-३०’, गुरु ५-८-१२’, शुक्र ०-२३-२४’, शनि १-१६-४८’, राहु २-१५-३८’, केतु ८-१५-३८’। ये सभी तिथि-नक्षत्र-वार बुद्ध की जीवनी से हैं।
गौतम बुद्ध-सामान्यतः ४८३ ईसा पूर्व में जिस बुद्ध का निर्वाण कहा जाता है, वह यही बुद्ध हैं जिनका काल कलि की २७ वीं शताब्दी (५०० ईसा पूर्व से आरम्भ) है। इन्होंने गौतम के न्याय दर्शन के तर्क द्वारा अन्य मतों का खण्डन किया तथा वैदिक मार्ग के उन्मूलन के लिये तीर्थों में यन्त्र स्थापित किये। गौतम मार्ग के कारण इनको गौतम बुद्ध कहा गया, जो इनका मूल नाम भी हो सकता है। स्वयं सिद्धार्थ बुद्ध ने कहा था कि उनका मार्ग १००० वर्षों तक चलेगा पर मठों में स्त्रियों के प्रवेश के बाद कहा कि यह ५०० वर्षों तक ही चलेगा। आज की धार्मिक संस्थाओं में भ्रष्टाचार उनकी नजर में था। गौतम बुद्ध के काल में मुख्य धारा से द्वेष के कारण तथा सिद्धार्थ द्वारा दृष्ट दुराचारों के कारण इसका प्रचार शंकराचार्य (५०९-४७६ ईसा पूर्व) में कम हो गया। चीन में भी इसी काल में कन्फ्युशस तथा लाओत्से ने सुधार किये।
भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व ४, अध्याय २१-
सप्तविंशच्छते भूमौ कलौ सम्वत्सरे गते॥२९॥ शाक्यसिंह गुरुर्गेयो बहु माया प्रवर्तकः॥३०॥
स नाम्ना गौतमाचार्यो दैत्य पक्षविवर्धकः। सर्वतीर्थेषु तेनैव यन्त्राणि स्थापितानि वै॥ ३१॥
अन्य बुद्ध- स्वयं सिद्धार्थ बुद्ध ने कहा है कि उनके पूर्व ७ बुद्ध हुये थे जिनमें केवल ३ की शिक्षा उपलब्ध थी क्योंकि वह लिखित रूप में थी-कनकमुनि क्रकुच्छन्द, कश्यप। अन्य ४ के उपदेश लिखित रूप में नहीं रहने के कारण लुप्त हो गये-विपश्यी, शिखि, विश्वभू, तिष्य (पुष्य, कलियुग)। (अश्वघोष का बुद्ध चरित) इसके अतिरिक्त नारद को भी एक बुद्ध माना गया है। सारनाथ के निकट निगलिहवा में मौर्य अषोक के शिलालेख में कहा है कि अशोक ने ४ बुद्धों के जन्मस्थान का भ्रमण करने के बाद राज्य के २०वें वर्ष में सारनाथ के स्तूप का आकार २ गुणा किया था।
फाहियान ने ४ बुद्धों के समय और जन्मस्थान का वर्णन किया है। क्रकुच्छन्द (श्रावस्ती से १०० कि.मी. दक्षिण पश्चिम), कनकमुनि या कोणगमन (श्रावस्ती से ८ कि.मी. उत्तर), कश्यप बुद्ध (श्रावस्ती से १५ कि.मी. पश्चिम) हुये थे। सिद्धार्थ बुद्ध के निर्वाण के ३०० वर्ष बाद अर्थात् १५०७ ईसा पूर्व में धान्यकटक में मैत्रेय बुद्ध का जन्म लिखा है। एक धान्यकटक आन्ध्र के सातवाहन राजाओं की राजधानी थी। ओड़िशा की पूर्व राजधानी कटक भी धान्यकटक था जिसके निकट धान वाले कई स्थान हैं-धानमण्डल, शालिपुर (सालेपुर), चाउलियागंज। इसके निकट बुद्ध के कई स्थान हैं।
विष्णु अवतार बुद्ध इनसे भिन्न थे। प्रायः ८०० ईपू. में मगध में अजिन ब्राह्मण के पुत्र रूप में इनका जन्म हुआ। उस समय असीरिया की रानी सेमिरामी (मूल नाम का ग्रीक रूप) ने मध्य एशिया तथा उत्तर अफ्रीका के सभी राजाओं की सहायता से ३५ लाख की सेना भारत पर आक्रमण के लिए एकत्र की। भारत के हाथियों का डर था क्योंकि ८२४ ईपू. में नबोनासर की आक्रमणकारी सेनाको चेदिवंशी खारावेल की गज सेना ने मथुरा में पराजित किया था। अतः २ लाख ऊंटों को नकली सूंड लगा कर हाथी जैसा बनाया था। उनको रोकने के लिए विष्णु अवतार बुद्ध ने आबू पर्वत पर ४ राजाओं का संघ बनाया, जिसके अध्यक्ष मालवा राजा इन्द्राणीगुप्त थे जिनको ४ राज्यों का अध्यक्ष होने के कारण सम्मान के लिए शूद्रक कहा गया। ४ राजा थे-चाहमान, परमार, शुक्ल (चालुक्य. सोलंकी), प्रतिहार। देश रक्षा में अग्रणी होने के कारण इनको अग्निवंशी कहा गया।
उस समय ७५६ ईपू. में शूद्रक शक आरम्भ हुआ। यह ३०० वर्ष तक चला जब ४५६ ईपू में श्रीहर्ष ने इसे समाप्त कर अपना राज्य किया। सिकन्दर के सभी समकालीन लेखकों ने इसे ३०० वर्ष का गणतन्त्र काल कहा है। इसका विस्तृत इतिहास भारत तथा पश्चिम एशिया में है, जिसे नष्ट करने के लिए विलियम जोन्स तथा पार्जिटर ने रायल एसियाटिक सोसाइटी में बहुत प्रयत्न किया। नष्ट करने की योजना भी विस्तार से उपलब्ध है। विष्णु अवतार बुद्ध के प्रयत्न से ३५ लाख की सेना में कोई व्यक्ति लौट नहीं सका। उसके बाद ६१२ ईपू में दिल्ली के चाहमान राजा ने निनेवे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जिसके बाद चाप शक आरम्भ हुआ जिसका उल्लेख वराहमिहिर की बृहत्संहिता (१३/३) में है। कालिदास तथा ब्रह्मगुप्त ने इसी शक का प्रयोग किया है। अपनी मृत्यु के १०० वर्ष बाद आरम्भ हुए शालिवाहन शक का प्रयोग उनके द्वारा सम्भव नहीं था। नेपाल राजा अवन्ति वर्मन के १२ शिलालेख इस संवत् में हैं, तथा बाद के २ लेख विक्रम संवत् में।
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