मनुष्यों के पाँच आवश्यक कर्त्तव्य कर्म

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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डा. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक _- (१.) ब्रह्मयज्ञ   ब्रह्म यज्ञ संध्या या उपासना या ध्यान को कहते है। प्रात: सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा होती है, तब एकांत स्थान में बैठ कर ईश्वर का ध्यान करना ही ब्रह्मयज्ञ कहलाता है। इस यज्ञ मे व्यक्ति को परमात्मा में खो जाना चाहिए । संध्या दो ही समय होती है सूर्य और चन्द्रमा की मिलन वेला में ।   (२.) देवयज्ञ अग्निहोत्र अर्थात हवन को देवयज्ञ कहते है। यह प्रतिदिन इसलिए करना चाहिए क्योंकि हम दिनभर अपने शरीर के द्वारा पृथ्वी ,जल ,वायु, आदि को प्रदूषित करते रहते है। इसके अतिरिक्त आजकल हमारे भौतिक साधनों से भी प्रदूषण फैल रहा है, जिसके कारण अनेक बीमारियाँ फैल रही है। उस प्रदूषण को रोकना तथा वायु, जल और पृथ्वी को पवित्र करना हमारा परम कर्तव्य है। सब प्रकार के प्रदूषण को रोकने का एक ही मुख्य साधन है और वो है हवन। अनुसंधानों के आधार पर एक बार हवन करने से 8 किलोमीटर तक की वायु शुद्ध होती है । इसके करने से घर अन्दर मौजूद मक्खी मच्छर , भूत प्रेत सब भाग जाते हैं । बरसात के बाद तो घर में अवश्य हवन करना चाहिए ।   (३.) पितृयज्ञ जीवित माता- पिता तथा गुरुजनों और अन्य बड़ों की सेवा एवं आज्ञापालन करना ही पितृयज्ञ है। उनकी देखभाल करना, उनके पदचिह्नों पर चलना, उनके अनुसार कर्म करना पितृयज्ञ है ।   (४.) अतिथियज्ञ घर पर आए हुए विद्वान, धर्मात्मा, संन्यासी का भोजन आदि से सत्कार करके उनसे ज्ञानप्राप्ति करना ही अतिथियज्ञ कहलाता है। इसे नृयज्ञ भी कहते हैं ।   (५.) बलिवैश्वदेवयज्ञ पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए ही बनाए हैं। इन पर दया करना और इन्हें खाना खिलाना बलिवैश्वदेवयज्ञ कहलाता है। क्योकि ये हम पर आश्रित है। अब कोई चिङिया आदि कोई व्यापार, नौकरी आदि तो करेगी नहीं उनके लिए प्रतिदिन दाना आदि डालना बलिविश्वदेव यज्ञ कहलाता है।   यह प्रतिदिन करना चाहिए।



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