मस्तिष्क में गणेश रूप

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)- Mystic Power- गणेश के सिर तथा सूंड जैसा किसी मनुष्य का सिर नहीं होता है। किन्तु मनुष्य मस्तिष्क का केन्द्र भाग गणेश के सिर जैसा है। उसकी सूंड का विस्तार मेरुदण्ड की केन्द्रीय सुषुम्ना नाड़ी में नीचे तक है। सबसे नीचे मल-मूत्र द्वारों के बीच मूलाधार चक्र है। इसका आधार भूरे रंग का हाथी है, जिसके ७ सूंड है। चक्र ध्यान में इसकी कल्पना की जाती है। गणेश सिर का स्थान आज्ञा चक्र के निकट है जिसके दोनों तरफ फैले हुए कान मस्तिष्क के वाम-दक्षिण भाग हैं। यह आज्ञा चक्र के २ दलों का स्थूल रूप है। इनके बीच जितना अधिक सम्पर्क होगा, मस्तिष्क उतना ही सक्रिय होगा। यह आधुनिक सिद्धान्त है। भारत में इसे मानस के २ हंसों का या शिव-पार्वती का वार्त्तालाप कहा है, जिससे सभी १८ प्रकार की विद्या पूरी होती है। समुन्मीलत् संवित् कमल मकरन्दैक रसिकम्, भजे हंस-द्वन्द्वं किमपि महतां मानसचरम्। यदालापादष्टादश-गुणित विद्या परिणतिः, यदादत्ते दोषाद् गुणमखिलमद्भ्यः पय इव॥ (शङ्कराचार्य, सौन्दर्य लहरी, ३८) यह वेद वर्णित २ सुपर्ण का आध्यात्मिक अर्थ है। द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते। तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥ (ऋक्, १/१६४/२०, मुण्डक उपनिषद्, ३/१/१, श्वेताश्वतर उपनिषद्, ४/६) आज्ञाचक्र के नीचे मेरुदण्ड का सबसे उपरी चक्र विशुद्धि है, जो कण्ठमूल में है। इसका आधार भी ७ सूंड का हाथी है, किन्तु यह श्वेत है। ७ सूंड के कई प्रकार के प्रतीक हैं- मेरुदण्ड के ५ तथा उसके ऊपर आज्ञा, सहस्रार चक्र। योग की सप्त भूमि- तस्य सप्तधा प्रान्तभूमिः प्रज्ञा॥(योग सूत्र, २/२७)। विस्तार से महानारायण उपनिषद् में। शरीर के ७ कोष सप्तास्यासन् परिधयः त्रिः-सप्त समिधः कृताः (पुरुष सूक्त) तत्त्व रूप में ये पञ्च महाभूत, शिव-शक्ति रूप, परमेश्वर जिससे सहस्र प्रकार या बल्शा (शाखा) की सृष्टि हुई। सबसे स्थूल नीचे के भूमि तत्त्व से आदि शक्ति रूप कुण्डलिनी का उत्थान ७ चक्रों तक होता है। महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं, स्थितं स्वाधिष्ठाने, हृदि मरुतमाकाशमुपरि। मनोऽपि भ्रूमध्ये, सकलमपि भित्वा कुलपथम्, सहस्रारे पद्मे सह रहसि, पत्या विहरसि॥ (शङ्कराचार्य, सौन्दर्य लहरी, ९) यहां कुल का अर्थ परिवार परम्परा तथा बांस भी है। वंश के भी ये २ अर्थ हैं। इस प्रकार की उन्नति का वर्णन भागवत माहात्म्य में है। धुन्धकारी के प्रेत को ७ गांठ के बांस पर आश्रय दिया गया। क्रमशः एक-एक गांठ का भेदन हुआ।



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