ओंकार केवल कुंभक प्राणायाम, प्रक्रिया और फल

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  • आयुष
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  • 31 October 2024
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  श्री सुशील जालान   mystic power - पंच देव‌ हैं, गणपति, सूर्य, विष्णु ( श्रीराम, श्रीकृष्ण) देवी (काली, लक्ष्मी, सरस्वती) और शिव। किसी को भी अपना इष्टदेव मान कर उनकी पूजा करें नित्य प्रतिदिन।   पूजा से पूर्व में योगाभ्यास और प्राणायाम करें, प्रातः काल और सांयकाल। प्राणायाम में ओंकार का मानसिक उच्चारण करें श्वास प्रश्वास और कुंभक में, लयबद्ध गिनती करें। एक सेकेंड को एक मात्रा मानें, एक ओंकार उच्चारण के लिए। https://pixincreativemedia.com/ आंतरिक केवल कुंभक प्राणायाम   4 मात्रा पूरक, 16 मात्रा कुंभक, 8 मात्रा रेचक, लगातार, बाईं से दाहिनी और दाहिनी से बाईं नासिका से, जितनी देर तक हो सके।   जब इसका अभ्यास हो जाए अच्छी तरह कुछ सप्ताह में, तब संख्या बढ़ाएं, 8 पूरक, 32 कुंभक, 16 रेचक।   कुछ महीनों के बाद फिर और बढ़ाएं, 16 पूरक, 64 कुंभक, 32 रेचक।   यह भी भलीभांति होने ‌लगे, तब कुंभक को 80 मात्रा ‌तक ले जाएं। यह‌ भी होने लगे सुचारू रूप से, तब कुंभक मात्रा 80 से अधिक जितनी हो सके, करें।   श्वास को पूरक के पश्चात् अंदर ही देर तक रखना आंतरिक केवल कुंभक प्राणायाम है, गणपति योग साधना है।   बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम -   इसमें प्रकिया आंतरिक केवल कुंभक प्राणायाम जैसी ही है, केवल अंतर है कि पूरक 4 मात्रा बाईं नासिका से, रेचक 8 मात्रा दाहिनी नासिका से, और कुंभक 16 मात्रा का रेचक के बाद, फिर 4 मात्रा पूरक दाहिनी नासिका से, 8 मात्रा रेचक बाईं नासिका से और 16 मात्रा कुंभक, लगातार, बाईं से दाहिनी और दाहिनी से बाईं, जितनी देर तक हो सके।   कालांतर में इसे दुगुना करें, 8 : 16 : 32 और दुगुना का दुगुना, 16 : 32 : 64। कुंभक को बढ़ाएं 80 मात्रा ‌तक और फिर कुंभक जितनी देर हो सके।   श्वास को रेचक कर बाहर ही रोक कर रखना बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम है, शिव योग साधना है।   विशेष सावधानियां -   प्रारंभ में दस मिनट योगाभ्यास/व्यायाम, दस मिनट प्राणायाम और दस‌ मिनट ध्यान यथेष्ठ है। जब आंतरिक केवल कुंभक प्राणायाम सिद्ध हो जाए, तब बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए।   खाली पेट ओंकार केवल कुंभक प्राणायाम का‌ अभ्यास किया जाता है। केवल अंजुलि भर जल से आचमन करते हैं अभ्यास से पूर्व में।   प्रक्रिया -   जहां तक संभव हो, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साधना में अन्तराल भी लिया जा सकता है कई दिनों का, जब कोई अनपेक्षित कारण हो।   कुछ समय तक विभिन्न योगाभ्यास के बाद किसी स्वच्छ स्थान पर योगासन ( मुख्यतया सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन ) लगा कर बैठना चाहिए प्राणायाम के अभ्यास के‌ लिए।   प्राणायाम के अभ्यास के बाद फिर ध्यान में बैठें, इष्टदेव के प्रति समर्पण भाव से।   प्राण सर्वाधिक शक्तिशाली है, इसलिए इसकी साधना कुंभक प्राणायाम के अंतर्गत बहुत संभल कर धीरे धीरे की जाती है। लगभग 12 वर्षों का समय लगता है प्राण को साधने में। ऐसी 12 वर्षों की कई आवृत्तियां भी होती हैं, प्राण के विभिन्न आयामों के समझाने में।   योग से ही योग बढ़ता है। जैसे जैसे अभ्यास बढ़ेगा, योग की अन्य विशेषताएं, बंध - मुद्राएं आदि प्रकट होने लगती हैं।   योग संबंधित उपनिषद् और अन्य शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक है आध्यात्मिक साधना में सफलता के लिए। अपने कर्तव्य कर्मों को भलीभांति करना चाहिए  कर्मफल में आश्रित हुए बिना।    ओंकार केवल कुंभक प्राणायाम फल -   ओंकार के साथ केवल कुंभक प्राणायाम करने से आत्मबोध होता है, कर्मबंधनों से मुक्ति मिलती है, मोक्ष उपलब्ध होता है, जीवन्मुक्त होता है साधक।   ओंकार में सभी देवी देवताओं का वास है,‌सभी अलौकिक सिद्धियों का वास है। सिद्धियां विघ्न मानी जाती हैं साधना काल में जब तक मोक्ष उपलब्ध नहीं हो जाता है। अष्टमहासिद्धियां मोक्ष उपलब्ध होने पर ही प्रकट होती हैं, ध्यान में।   इष्टदेव की पूजा आवश्यक है जिससे विघ्न दूर होते हैं और सफलता ‌सुनिश्चित होती है। किसी सक्षम आध्यात्मिक योगी गुरु से दीक्षा भी उपलब्ध होती है जब योगी साधक एक आध्यात्मिक स्तर पर पहुंचता है।   अंततः निर्गुण ब्रह्म का बोध भी ओंकर साधना से  होना संभव है। यह जन्मजन्मांतर की साधना है।  



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