पंचदेव गणपति 

img25
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

श्री सुशील जालान- mysticpower-गणपति प्रथम देव के रूप में पूजित हुए भगवान् शिव व देवी पार्वती के वरदान से। यह वरदान उन्हें शिव और पार्वती (शक्ति) की सात परिक्रमाएं करने पर प्राप्त हुई। शक्ति (कुंडलिनी) मूलाधार चक्र पर स्थित है और शिव सहस्रार में। इनकी परिक्रमा सात बार करने से सहस्रार जाग्रत होता है, शिव-शक्ति का मिलन होता है, योग होता है, यही रहस्य है।   गणपति मूलाधार चक्र के स्वामी हैं जिनका प्रतिनिधित्व  मंगल ग्रह, पृथ्वी तत्त्व, द्वारा किया जाता है।  यह आध्यात्मिक योग साधना का प्रारंभिक बिंदु है।  इनकी सूंड बाईं ओर इड़ा नाड़ी और दाईं ओर पिंगला नाड़ी की प्रतीक है।   जब एक ध्यान-योगी अपने ध्यान की आन्तरिक यात्रा शुरू करता है, तो प्रथम उद्देश्य सुषुम्ना नाड़ी के अग्नि तत्त्व को प्रज्वलित करना होता है जो इड़ा और पिंगला नाड़ियों के मध्य में स्थित है। सुषुम्ना नाड़ी तभी जाग्रत होती है जब योगी की चेतना आज्ञा चक्र में "सम" बिंदु तक पहुंचे। इसके लिए इन दोनों नाड़ियों, इड़ा और पिंगला, में प्राणवायु को सूक्ष्म करना होता है,  प्राणायाम के सतत् अभ्यास से।   शिव-पार्वती के चारों ओर गणपति की यह प्रथम "परिक्रमा" है जब योगी की चेतना मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक यात्रा  करती है और मूलाधार चक्र पर वापस आकर मूलाधार चक्र को जीवंत करती है।   मूलाधार को स्वाधिष्ठान चक्र तक उठा कर स्थिर किया जाता है। दूसरी "परिक्रमा" स्वाधिष्ठान चक्र से आज्ञा चक्र और वापस स्वाधिष्ठान तक करने के लिए की जाती है। स्वाधिष्ठान चक्र जल तत्त्व, भवसागर, भावनाओं के सागर का प्रतिनिधित्व करता है।   तीसरी "परिक्रमा" तब शुरू होती है जब योगी की चेतना स्वाधिष्ठान चक्र से मणिपुर चक्र तक उठती है और वहां से ऊपर की ओर आज्ञा चक्र तक जाती है और तत्पश्चात् मणिपुर में अग्नि तत्त्व को प्रज्वलित करने के लिए वापस मणिपुर में आती है।  सुषुम्ना नाड़ी जीवंत हो उठती है।   इसके बाद मणिपुर चक्र से अनाहत चक्र तक और वहां से आज्ञा चक्र और वापस अनाहत चक्र तक सुषुम्ना नाड़ी में चौथी "परिक्रमा" है। इसको पार करने में एक बड़ा अवरोध है।  यह चक्र अनाहत वायु तत्व का कारक है।  केवल किसी आध्यात्मिक गुरु के "अनुग्रह" से ही ध्यान-योगी इस अवरोध को पार करता है।   अनाहत चक्र ध्यान-योगी को "प्राण जय" सिद्धि प्राप्त कराता है, जन्म और मृत्यु के अनवरत चक्र को तोड़ कर आत्मा को स्वतंत्रता प्रदान करता है। यहां चैतन्य आत्मा जीवभाव के बंधनों से मुक्त हो जाता है।   पांचवीं "परिक्रमा" अनाहत से अगले चक्र विशुद्धि और आज्ञा चक्र तक और वापस विशुद्धि तक है।  यहां, योगी को आकाश तत्त्व से इस विश्व में "कुछ भी" करने की सामर्थ्य उपलब्ध होती है, अर्थात्, किसी भी जीव और वस्तु को बनाने, बनाए रखने और लोप करने के लिए आध्यात्मिक सिद्धियां उपलब्ध होती हैं।   छठी "परिक्रमा" विशुद्धि चक्र से आज्ञा चक्र तक की होती है और चेतना केवल आज्ञा चक्र में ही रह जाती है।  यह तभी संभव है जब योगी अपने अहंकार का त्याग कर शिवलोक, आज्ञा चक्र - सहस्रार, में प्रवेश करे।   आज्ञा चक्र में ध्यान-योगी तपस्या रत होता है निष्काम भाव  स्थिति को प्राप्त करने के लिए।  समय का यहां शमन होता है, लेकिन सिद्धियों का प्रलोभन इस योगी को अस्थिर करने की चेष्टा करता है और लगभग सभी योगी पराभाव से पुनः निम्न चक्रों में गिर जाते हैं।   यह "सांप और सीढ़ी" के खेल की तरह है, जहां अंतिम गंतव्य तक पहुंचने से पूर्व, गंतव्य प्रवेश बिंदु से ठीक पहले एक सांप खिलाड़ी की गोटी (चेतना) को डंसता है और गोटी अनेक कदम नीचे गिर जाती है।   हालांकि, सक्रिय आध्यात्मिक ब्रह्मगुरु के समर्थन से  ध्यान-योगी सातवीं "परिक्रमा" करता है, आज्ञा चक्र से सहस्रार तक, अपने शिर के शीर्ष की।  इसे सुमेरु-शीर्ष, दिव्य शिखर-शीर्ष कहा जाता है, जहां चैतन्य आत्मा, ब्रह्म चेतना शिवत्व प्राप्त करता है या ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाता है।   इस सहस्रार का प्रतिनिधित्व त्याग व वैराग्य के ग्रह केतु द्वारा किया जाता है।  एक बार जब योगी की चेतना इस दुर्लभतम बिंदु का बोध करती है, तो उसे परमा शक्ति, पूर्णा शक्ति, ब्रह्म शक्ति, प्राप्त होती है।   यह ध्यान-योगी ब्रह्म शक्ति के साथ कह उठता है,   "अहं ब्रह्मास्मि",   कि मैं ब्रह्म हूं। यह है बृहदारण्यक उपनिषद (1.4.10) में दिया गया प्रथम महा-वाक्य जो इसी परम् स्थिति का द्योतक है।  सभी ब्रह्मऋषियों ने इस सर्वोच्च बिंदु का बोध किया है। साथ ही ब्रह्म के पूर्ण अवतार भगवान् श्रीराम और भगवान् श्रीकृष्ण ने भी इसी का बोध किया और पुरुषोत्तम कहलाए।   यह आध्यात्मिक सात परिक्रमाएं‌ शिव-पार्वती के चारों ओर  गणपति ने की, जिससे वह सभी देवों में प्रथम पूज्य देव बने और उन्हें ऋद्धि और सिद्धि भी उपलब्ध हुई। यह है सक्षम ध्यान-योगी का गणपति योग, जिसके अनुशीलन से वह स्वयं गणपति पद पर आसीत् होता है।   भगवान् गणपति सभी ध्यान-योगी भक्तों को आशीर्वाद दें !!



Related Posts

img
  • तंत्र शास्त्र
  • |
  • 08 July 2025
बीजमन्त्र-विज्ञान

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment