पंचमहाभूत

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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अनिल गोविंद बोकील । नाथसंप्रदाय मे पूर्णाभिषिक्त और  तंत्र मार्ग मे काली कुल मे पूर्णाभिषिक्त के बाद साम्राज्याभिषिक्त । पृथ्वी,आग,जल ,वायु,आकाश - ये पंचमहाभूत माने गये है । समस्त सृष्टी इन्ही के परिणाम है । कभी सोचते भी है हम लोग कि - इन पंचमहाभूतो मे भी जान होती है - अर्थात ये तत्व जिंदा रहते है ? नहीं - कभी ऐसे विचार तक नहीं आते हमारे मनमे कभी । यह वायु ; यह जल ; यह तेज - सभी को जान है । ये मिट्टी जीवित है । ये आकाश सजीव है । पर हम लोग कभी समझते ही नहीं ; कभी मानते ही नहीं कि ये वायु जीवित है - पर इसी वायु की वजह से ही तो हम लोग जिंदा है ना ? वायु समाप्त -तो इस शरीर का खेल खल्लास । जल का भी वैसा ही है । शरीरांतर्गत जलतत्व थँडा हुआ तो आदमी भी ( हमेशा के लिए ) permanently थंडा । ऐसी ही बात मिट्टी और तेजतत्व की भी जानिये ।   कभी देखा है इन सभी तत्वो का एकसाथ तांडव ? जी दोस्तो ; मैने देखा है ; अनुभव किया है । समुद्र के इलाको मे जब चक्रवात (Cyclone) होता है - तब मै खास यही देखने गया था । एक वजनदार पथथर को पकडकर बैठे बैठे सब देख रहा था । आकाश मे विद्युल्लता की चमचम ( तेजतत्व ) ; बारिश की वजह से धरती तृप्त होकर मृदगन्ध फैलना ( पृथ्वीतत्व + तंमात्रा ) ; सब आकाश से होता है ( आकाश तत्व ) ; वायु का प्रचंड उत्पात ( वायु तत्व ) - भय तो लग रहा था ; पर निडरता से अनुभव लिया । उसी क्षण मन मे आया ( Strike हुआ ) कि ; ये सभी तत्व जीवित ही है - निर्जीव द्वारा कभी कोई निर्मिती होती है भला ?  जब ये सभी बाते गुरुदेव को बतायी; तब वे खुशी से हँसकर बोले - " यार अनिल ; तुम तो मेरी कल्पना के भी बाहर के निडर निकले । बहुत खूब ।। " और उसी दिन से उन्हो ने मुझे विद्या देना आरंभ किया तथा संपूर्ण विद्या प्रदान की । उस समय यह कुछ भी लिखकर नहीं रखा था । आज आप दोस्तो के कारण यह विद्या कागज पर उतर रही है । अब मूल विषयपर आते है । इस सृष्टी मे ; अपने ही आजू-बाजू मे जो भी होता रहता है ; वह तो सृष्टी-चक्र का ही अंश होता है । अभी का ही उदाहरण देखे । ये जो सृष्टी-चक्र की शक्ति है ; वही शक्ति ; इस विश्वांतर्गत हरेक चीज को कही ना कही घुमाती रहती है । ये बारिश ही देखे । यह जल होता है समुद्र का । समुद्र को मिलता है नदियों द्वारा । फिर समुद्र मे से मेघो के रूप मे आकाश मे जाता है - मतलब जमीन पर से सीधा आकाश मे । आकाश मे भी यही जल कहां कहां फिरता रहता है ; और फिर से इस पृथ्वी पर बरसता है ना ? फिर जमीन पर से ; निर्झर और नदियों द्वारा फिर समुद्र मे । यह तो एक जीवन-चक्र पूरा हुआ । जो बात पंचमहाभूतो की वही हमारी भी । आखिर तो हमे भी उसी ईश्वर मे लय होना ( जाना ) है । बस्स ।। इतना सब बताने का कारण यही है कि ; हम लोग जिसे Astral Travel कहते है ; वह सिर्फ " स्थानांतरण " ही होता है । जैसे कि हम एक कमरे से दूसरे कमरे मे जाते है ; ठीक वैसी ही यह प्रक्रिया होती है । सूक्ष्म देह से सिद्धाश्रम ; वैकुंठ ; कैलास आदि स्थानोपर जाना -- यह सबकुछ हम मे ही है । कभी भी बाहर नहीं है । तत त्वम असि ।।। यह सब नीव है ; Base/Fundamentals/ बुनियादी बाते है - जो पहले आत्मसात करना आवश्यक है । इसी लिए तो यह प्रस्तुति लिखी गयी है ।  



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