भंते विमल तिस्स- वर्तमान काल मे विज्ञानवाद का बड़ा बेढ़ब जलजला है। आविष्कारक सृजन कम विध्वंस के नये-नये साधनों का आविष्कार करते जा रहे हैं। व्यावसायिक जगत इन विध्वंसक साधनो का दुरउपयोग करके मनुष्यता को महाविनाश की अंधी खाँई मे ढकेल रहे हैं। प्राचीन काल मे समाधिस्थ महापुरुष चेतना के शोधशाला में सर्व कल्याक साधनो का भौतिक आविष्कार करते थे। विध्वंसक आविष्कारों को बहुत आवश्यक होने पर बहुत ही कठोर प्रतिबंधों मे सिद्ध सुपात्र को ही देते थे। वर्तमान काल के वैश्विक साँस्कृतिक संघात के युग मे वैश्विक कुटिलता के कुचक्र मे, भ्रांत जनता धधकते विकास की बारूद के ढेर पर आरूढ स्वनाश को अभिसप्त है। भगवान बुद्ध ने भौतिक-अभौतिक, परा-अपरा व अन्य विद्माओं मे समर्थ परम वैज्ञानिक थे, लेकिन अपरिमित ज्ञान और वैज्ञानिक सामर्थ्य मे से जगत को उतना ही बताया, जिसमे जगत का सर्वश्रेष्ठ कल्याण.. सुख..शांति व परम सृजन सन्नहित था । आइए बुद्ध के वचनों मे वैज्ञानिक सामर्थ्य की थाह लिया जाय~ सब्बे पधूपितो लोको…पज्वलितो… अर्थात~दृश्य, श्रव्य, अनुभव आदि सब कुछ सुलग रहा है..जल रहा है वर्तमान का वैज्ञानिक अब जान पाया कि सब कुछ आग की तरंगें हैं.. अनिच्चा वत संखारा उप्पादवय धम्मिनो, उप्पज्जित्वा निरुज्झन्ति…. अर्थात~सब कुछ उत्पाद-व्यय धर्मा है.. यह गुत्थी आज का वैज्ञानिक आज तक नहीं समझ पाया है.. आज 21वी शताब्दी में और विशेषकर पिछले दशक में वैज्ञानिकों के अनुसंधानों द्वारा परमाणु क्षेत्र में जो भी खोज पायी गई है, उसको 2500 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध ने अन्तर्मुखी होकर अपने ज्ञान चक्षु द्वारा साक्षात्कार कर जान लिया था। भगवान बुद्ध ने अपनी समाधि द्वारा परमाणुओं का भी विभाजन होते देखा, यहां तक कि उन्हों ने सूक्ष्मातिसूक्ष्म अन्तिम लघुकण भी पाया जिसका और विभाजन होना असम्भव था। इस अंतिम लघुकण का नाम भगवान बुद्ध ने ‘कलाप’ नाम दिया। यह कलाप भी उन्होंने तरंग-समुह मात्र ही पाया और तरंग-समुह पृथ्वीधातु, अग्निधातु, वायुधातु, जलधातु और इसके प्रत्येक के गुणधर्म इनका समुच्चय ही देखा। इसको भगवान बुद्ध ने ‘अष्ट-कलाप ‘ कहा। पृथ्वीधातु याने भारीपन या हल्केपन और जो जगह घेरता है। अग्निधातु याने तापमान, ठंडा या गरम। वायुधातु याने कम्पना,हलनचलन। जलधातु याने बांधने का गुणधर्म। ये चारों महाभूत एवं उनके गुणधर्म अष्ट-कलाप है। भौतिक जगत इन अष्ट-कलापों का ही समूहमात्र है जो जालरूप में बन्धे हुए है, जो अलग-अलग हो ही नही सकते। बुद्ध ने इसको स्वयं साक्षात्कार से अनुभव किया। इस प्रकार, भगवान बुद्ध ने देखा कि मन में जो विचार, विकार उठते है, वे सभी तरंगे ही तरंगे है,इन तरंगों में पृथ्वी, अग्नि, वायु,जल इन चार तत्वों का ही कम अधिक प्रभाव पाया जाता है। { मन ( mind )की तरंगे रूप ( matter ) की तरंगों में बदलती रहती है तथा रूप की तरंगे से मन की तरंगों में बदलती रहती हैआ। रूप की तरंगों से मन की तरंगें एक क्षण में 17 गुना अधिक गति से उदय- अस्त होती रहती है}, यह भी तथागत ने पाया। तथागत ने यह भी बताया कि विपश्यना का ठीक अभ्यास करनेवाला प्रत्येक मनुष्य स्वयं इसकी अनुभूति कर सकता है। अपने भीतर हो रहे अविरत परिवर्तनों की, तरंगों की, अविरत होनेवाले प्रकंपित प्रवाह की, इनके निरन्तर हो रहे उदय-अस्त की स्वानुभूति वह प्रत्यक्ष कर सकता है और यही अनित्यता का साक्षात्कार है। सब का मँगल हो
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