पृथ्वी तथा आकाश में गंगा की ७ धारायें

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)- ब्रह्माण्ड की सर्पाकार भुजा के ७ खण्ड हैं जिनको आकाश में गंगा की ७ धारा कहा गया है। इसके अनुरूप जम्बू द्वीप में ७ गंगा, भारत में गंगा की ७ धारा तथा अन्य द्वीपों की ७ मुख्य नदियों को गंगा कहा गया है। सप्त प्रवत आदिवम् (ऋक्, ९/५४/२) अस्मा आपो मातरः सप्त तस्थुः (ऋक्, ८/९६/१) वर्तमान काल में इन धाराओं के नाम हैं ३०००० परसेक तथा पर्सीयस, नोर्मा तथा बाहरी भुजा, स्कुटम-सेण्टारस भुजा, करीना-दहु भुजा, ओरियन-साइग्नस जिसमें सूर्य है। पृथ्वी के स्वर्ग हिमालय से गंगा की ७ धारायें हैं, जो एशिया महादेश में सभी दिशाओं में फैली हैं। ततो विसृज्यमानायाः स्रोतस्तत् सप्तधा गतम्। तिस्रः प्राचीमभिमुखं प्रतीचीं तिस्र एव तु॥३९॥ नद्याः स्रोतस्तु गंगायाः प्रत्यपद्यत सप्तधा। नलिनी ह्लादिनी चैव पावनी चैव प्राच्यगाः॥४०॥ सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः। सप्तमी त्वन्वगात्तासां दक्षिणेन भगीरथम्॥४१॥ (ब्रह्माण्ड पुराण, १/२/१८) विष्णु पादाद् विनिष्क्रान्ता प्लावयित्वेन्दु मण्डलम्। समन्ताद् ब्रह्मणः पुर्या गंगा पतति वै ततः॥२८॥ सा तत्र पतिता दिक्षु चतुर्द्धा ह्यभवद् द्विजाः। सीता चालकनन्दा च सुचक्षुर्भद्र नामिका॥२९॥ पूर्वेण शैलाच्छैलं तु सीता यात्यन्तरिक्षगा। ततश्च पूर्व वर्षेण भद्राश्वाद्याति चार्णवम्॥३०॥ तथैवालकनन्दा च दक्षिणादेत्य भारतम्। प्रयाति सागरं भित्त्वा सप्त भेदा द्विजोत्तमाः॥३१॥ सुचक्षुः पश्चिम गिरीनतीत्य सकलांस्तथा। पश्चिमं केतुमालाख्यं वर्षं गत्वेति चार्णवम्॥३२॥ भद्रा तथोत्तर गिरीनुत्तरांश्च तथा कुरून्। अतीत्य चोत्तराम्भोधिं समभ्येति महर्षयः॥३३॥ आनील-निषधायामौ माल्यवद् गन्धमादनै। तयोर्मध्यं गतो मेरुः कर्णिकाकार संस्थिता ॥३४॥ (कूर्म पुराण, अध्याय ४६) इन वर्णनों के आधार पर पं. मधुसूदन ओझा के जगद्गुरु वैभवम् (७/३५-३८) में इनके आधुनिक नाम दिये हैं। प्राङ्मेरु (पूर्व दिशा का मेरु) पर ब्रह्मा की मनोवती पुरी थी, जिस पर ८ लोकपालों की सभा थी (वराह पुराण, अध्याय ७५)। इसे पुष्कर (आज का बुखारा) कहा गया है जो उज्जैन से १२ अंश पश्चिम था। वेदाङ्ग ज्योतिष में यहीं के सन्दर्भ से कहा गया है कि दिन का अधिकतम मान १६ घण्टा है अर्थात् ३५ अंश उत्तर अक्षांश पर है। इसके ४ दिशाओं से ४ बड़ी नदियां निकलीं जो ७ धाराओं में विभक्त हो गयी। उत्तर दिशा में भद्रा निकली (वायु पुराण, ४२/६४ के अनुसार भद्रसोमा) जो उत्तर कुरु (ओम्स्क) के पास नील, निषध, माल्यवान्, गन्धमादन पर्वतों को घेरती हुयी उत्तर समुद्र में मिलती है। आज कल इनको ओबी, येनेसी, लीना कहते हैं। पूर्व दिशा में सीता निकलती है जिसकी ३ धारायें हैं-नलिनी, ह्लादिनी, प्लाविनी। ये ३ स्थानों पर भद्राश्व के समुद्र में मिलती हैं। अभी इनके नाम हैं-यांगसे, ह्वांगहो (महागंगा-चीन महः लोक है), माखोंग (मा गंगा, मेकांग)। पश्चिम में सिन्धु, चक्षु, सीता है। इनको ऋक् (७/१८/६) में यक्षु कहा है। शकद्वीप (स्तम्भ जैसे शक वृक्षों या ३०० प्रकार युकलिप्टस का द्वीप आस्ट्रेलिया) की ७ गङ्गा- शाको नाम महावृक्षः प्रजास्तस्य महानुगाः॥२७॥ तेषु नद्यश्च सप्तैव प्रतिवर्षं समुद्रगाः। द्विनाम्ना चैव ताः सर्वा गङ्गाः सप्तविधः स्मृताः॥२९॥ (मत्स्य पुराण, १२२/२७-२९) क्रौञ्च द्वीप (उड़ते पक्षी जैसा उत्तर अमेरिका) की सप्त गंगा- घृतोदकः समुद्रो वै क्रौञ्चद्वीपेन संवृतः। चक्रनेमि प्रमाणेन वृतो वृत्तेन सर्वशः॥७९॥ गोविन्दात् परतश्चापि क्रौञ्चस्तु प्रथमो गिरिः॥८१॥ श्रुतास्तत्रैव नद्यस्तु प्रतिवर्ष गताः शुभाः॥८७॥ गौरी कुमुद्वती चैव सन्ध्या रात्रिर्मनोजवा। ख्यातिश्च पुण्डरीका च गङ्गा सप्तविधा स्मृता॥८८॥ (मत्स्य पुराण, १२२/७९-८८)



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