डॉ.दिलीप कुमार नाथाणी (विद्यावाचस्पति)-
‘आत्मा पुराणं वेदानाम्‘।।
‘पुराणं परमर्षिणा‘।।
‘पुरा भवं पुराणं‘।।
‘इतिहास पुराणानि भिद्यन्ते लोकगौरवात्‘।
एवं सपादाःपंचैते लक्षा मर्त्ये प्रकीर्तिताः।
पुरातनस्य कल्पस्य पुराणानि विदुर्बुधाः।।
पुराणं मानवो धर्मः साङ्गोवेदश्चिकत्सतम्।
आज्ञासिद्धानि चत्वारि न हन्तव्यानि हेतुभिः।।
अर्थात् पुराण, मन्वादि, स्मृति षड्वेदाङ्ग और चिकित्सा शास्त्र चारों ईष्वर की आज्ञा हैं। कुतर्क का आश्रय लेकर इनका खण्डन नहीं करना चाहिए। नारद पुराण के अनुसार-पुराणो मे ही सभी वेद प्रतिष्ठित रहे हैं-वेदाः प्रतिष्ठता सर्वें पुराणेष्वेव सर्वदा। सब वेदो के अर्थों का सार पुराण को कहा गया है-सर्व वेदार्थ साराणि पुराणानीति भूयते। पुराण के अनुसार ‘वह अनेक रूपों में अवतरित होता है। उसका एक रूपपुराण भी है, ब्रह्म पुराण भगवान का सिर है, पद्म पुराण हृदय है, विष्णु भगवान की दाहिनी बाँह है, शिव पुराण बाँयी बाँह है, श्रीमदभागवत् पुराण भगवान् की दोनोंजंघा हैं, नारद पुराण दोनों जंघाएँ तथा मार्कण्डेय दाहिना चरण है, अग्नि पुराणभगवान् का बाँया पैर है, भविष्य पुराण दक्षिण जानु है, ब्रह्मवैवर्त बाँया जानु है, लिंगपुराण भगवान् का दाहिना गुल्फ है, वराह पुराण भगवान् का बाँया टखना है,स्कन्द पुराण के रोम हैं, वामन पुराण भगवान् की त्वचा है, कूर्म पुराण पीठ है, मत्स्यपुराण मज्जा, ब्रह्मण्ड पुराण भगवान् की अस्थि है, इस प्रकार भगवान् विष्णु पुराणविग्रह के रूप में प्रकट हुए हैं।
ब्रह्माण्ड पुराण के प्रक्रियावाद में ‘पुराण‘ शब्द की निरुक्ति इस प्रकार की गयी है। अङ्ग और उपनिषद् के सहित चारों वेदों का अध्ययन करके भी, यदि पुराण को नहीं जाना गया तो ब्राह्मण विचक्षण नहीं हो सकता, क्योंकि इतिहास पुराणके द्वारा ही वेद की पुष्टि करनी चाहिए।यहीं नहीं पुराण ज्ञान से रहित अल्पज्ञ से वेद डरते रहते हैं, क्योंकि ऐसेे व्यक्ति के द्वारा ही वेद का अपमान हुआा करता है, अत्यन्त प्राचीन व वेद को स्पष्ट करनेवाला होने से नाम पुराण हुआ है, पुराण की इस परिभाषा को जो जानता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार पुराणों की अनादिता प्रामाणिकता तथा मङ्गलमयता का स्थल-स्थल पर उल्लेख है, और सर्वथा सिद्ध एवं यथार्थ है। वस्तुतः पुराण अनादि और नित्य हैं।इस प्रकार संत महात्माओ ं द्वारा भी कुछ पुराण विषयक परिभाषाएँ दी गयी हैं –
रामकृष्ण परमहंस के अनुसार ‘पुराणों के बहिरंग पर हमें कभी ध्यान नहीं देनाचाहिए,उनका अंतरंग अर्थात अन्त वर्णित तथ्य वेदानुकूल होने से प्रमाण कोटि में निष्चित रूप से आता है, तब हमें उनके बहिरंग की सत्यता के विषय में संषयालुनहीं होना चाहिए‘।
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