राजा द्वारा कृषि की रक्षा

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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श्री अरुण कुमार उपाध्याय ( धर्मज्ञ )- Mystic Power

देश में शान्ति तथा व्यवस्था होने पर ही कृषि हो सकती है। अतः कृषि, चारागाह, जलाशय आदि को युद्ध के समय भी नष्ट नहीं किया जाता था। कौटिल्य अर्थशास्त्र, धर्मस्थीय अधिकरण, अध्याय १०- 

कर्मोदक मार्गं उचितं रुन्धतः कुर्वतो अनुचितं वा पूर्वः साहस दण्डः॥१॥ साधारण कार्य और जल के उचित मार्ग को रोकने वाले और अनुचित मार्ग बनाने वाले को प्रथम साहस का दण्ड दिया जाता है।

  

महा पशुपथं चतुर्विंशति पणः॥७॥ हस्तिक्षेत्रं चतुष्पञ्चासत् पणः॥८॥ सेतुवनपथं षट्छतः॥९॥ श्मशान ग्रामपथं द्विशतः॥१०॥ द्रोणमुखपथं पञ्चशतः॥११॥ स्थानीयराष्ट्र विवीत पथं साहस्रः॥२॥ 

बड़े पशुओं के मार्ग को रोकने पर २४ पण, 

(७) हाथी और खेतों के रास्ते रोकने पर ५४ पण 

(८) सेतु और वन के रास्तों को रोकने पर ६०० पण 

(९) श्मशान और गांव का रास्ता रोकने पर २०० पण 

(१०) द्रोणमुख (नहर) का मार्ग रोकने पर ५०० पण 

(११) स्थानीय राष्ट्र तथा चारागाह के मार्ग रोकने पर १००० पण दण्ड देना चाहिए 

(१२)। सांग्रामिक अधिकरण, अध्याय-४ पांसु-कर्दमोदक-नल-शराधानवती श्वदंष्ट्र हीना महावृक्ष श्खाघात व्युक्तेति हस्तिनां अतिशयः॥१०॥ तोयाशयाश्रयवती निरुत् खातिनी केदारहीना व्यावर्तन समर्थेति रथानामतिशयः॥११॥ धूल, कीचड़, जल, नड़सल, मूंज, गोखुरों से रहित, बड़े वृक्षों की शाखाओं से रहित भूमि हाथी सेनाके लिए उपयोगी है। 

(१०) स्नाना आदि के योग्य जलाशय, विश्राम करने के स्थानों से युक्त, उखड़े हुए स्थानों से रहित, क्यारियों से रहित, लौटने योग्य स्थानों से युक्त भूमि रथों के लिए उपयोगी है। (११) 

इसके बाद घोड़ों के चलने में भी वन तथा कृषि की सुरक्षा के विषय में लिखा है। राजस्थान के राजा अपनी सेना द्वारा भी कृषि नष्ट होने पर दण्ड देते थे-अपने तथा अन्य राज्यों में भी। किन्तु म्लेच्छ शासकों द्वारा प्रजा की रक्षा के बदले युद्ध में खेतों, घरों को जलाना, आश्रय स्थान मन्दिरों को नष्ट करना, तथा स्त्री पुरुषों को गुलाम बना कर बेचना आदि काम होते थे। शुक्र नीति में इन लोगों को म्लेच्छ तथा आततायी कहा है- 

त्यक्त स्वधर्माचरणा निर्घृणाः परपीडकाः। चण्डाश्च हिंसका नित्यं म्लेच्छास्ते ह्यविवेकिनः॥ (१/४४) 

धर्म आचरण छोड़ने वाले, निर्दयी, परपीडक, चण्ड, नित्य हिंसक और अविवेकी को म्लेच्छ कहते हैं। इनको आततायी भी कहा है- 

अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रोन्मत्तो धनापहः। क्षेत्र-दार हरश्चैतान् षड् विद्याद् आततायिनः॥ (३/४०) 

आग लगाने वाला, विष देने वाला, शस्त्र से उन्मत्त, धन चुराने वाला, खेत हरने वाला, स्त्री का अपहरण करने वाला-ये ६ आततायी हैं। मार्क्स ने भी कहा था कि कृषक अपनी जमीन के प्रति भक्ति करता है इसलिए वह क्रान्ति नहीं कर सकता है। अतः पंजाब के अतिरिक्त अन्य कहीं के किसान आन्दोलन नहीं कर रहे हैं। मार्क्स या कौटिल्य को यह पता नहीं था, कि स्वयं किसान अराजकता कर सकते हैं तथा अपनी भूमि के बदले खालिस्तान तथा कनाडा की भक्ति कर सकते हैं। मार्क्स के भारतीय शिष्य अपने गुरु के सिद्धान्तों में संशोधन करें।



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