श्री सुशील जालान
mysticpower-जिस पथ पर ध्यान-योगी अंततः ध्यान में प्रवेश करते हैं, वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म है, अगम्य है, दुर्गम है, परम् पुरुष का पद है। उसमें केवल निष्काम योगी ही देवी अनुग्रह से प्रवेश कर सकते हैं। इस राम वीथि पर भगवान् श्रीराम के, भगवान् श्रीकृष्ण के और ब्रह्म ऋषियों के चरण चिन्ह हैं।
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योग सामर्थ्य देता है रामवीथि के उद्घाटन की। सिद्धासन या पद्मासन लगाकर मूलाधार चक्र को ऊर्ध्व कर स्वाधिष्ठान चक्र पर लाया जाता है, जिससे वीर्य का ऊर्ध्वगमन सम्भव होता है।
प्राणायाम और अश्विनी मुद्रा के अभ्यास से चेतना मणिपुर चक्र में प्रवेश करती है, जहाँ से सूक्ष्म-अति-सूक्ष्म लाल सुषुम्ना नाड़ी का उद्भव होता है।
सुषुम्ना में अग्नि तत्त्व व्याप्त है और इसका दर्शन मुण्ड में होता है, जब चेतना अनाहत चक्र में प्रवेश करती है। अनाहत हृदय चक्र है, लेकिन दर्शन मुण्ड में होता है।
अनाहत चक्र में जीवात्मा जीव-भाव त्याग कर अपने चैतन्य स्वरूप में स्थित होता है। यहाँ से सुषुम्ना में तीन नाड़ियाँ निकलती हैं। इनके नाम हैं, ब्रह्म नाड़ी, चित्रिणी नाड़ी और वज्रिणी नाड़ी, जो क्रमशः इच्छा, ज्ञान और क्रिया का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इनमें से एक नाड़ी आज्ञा चक्र - सहस्त्रार तक जाती है, जिसे ब्रह्मनाड़ी कहते हैं। यह नाड़ी सर्वोत्तम है और यही राम-वीथि है, जिसमें निष्काम सक्षम ध्यान-योगी गमन करते हैं, अपने आत्म तत्त्व से।
"रमन्ते योगिनो यस्मिन् चिदानंद चिदात्मनि।
इति राम पदेनैतत् परं ब्रह्माभिधीयते ॥"
- पद्म पुराण
राम नाम ब्रह्म सूचक है और पराशक्ति युक्त है। रामवीथि में गमन करने वाला योगी परम् ब्रह्म/परम् शिव लोक में प्रवेश करता है।
यही परम् है और इससे परे और कुछ भी नहीं है, अनादि अनंत है यह।
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