शृंगी ऋषि कृष्णदत्त जी महाराज- आधुनिक काल में सम्पाति को एक गिद्ध के रूप में प्रकट करते हैं, जो गिद्ध नाम का पक्षी है। गरूड़ ने रावण से सङ्ग्राम किया था, जब रावण सीता को ले जा रहा था। आधुनिक काल का जो मानव-समाज है, उस गरूड़ को भी एक गिद्ध के रूप में स्वीकार कर रहा है। मैं यह नहीं जान पा रहा हूँ कि हे भोले सहित्य वालो तुम्हारे चक्षु क्यों नहीं प्रकाश में आ रहे हैं। तुम इस साहित्य को जानने का प्रयास करो। एक राजा को तुम गिद्ध बना रहे हो, एक वैज्ञानिक को, जो सूर्य की किरणों के साथ वायु-मण्डल में गति करने वाला हो, उसे गिद्ध के रूप में परिणित किया जा रहा है। हे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव! मैं किसी काल में इस आधुनिक जगत् के साहित्य के ऊपर दुःखित हो जाता हूँ और यह कहा करता हूँ कि महापुरुषों का, जिन्होंने ऋषि-मुनियों के चरणों में विद्यमान हो करके विद्याओं का अध्ययन किया हो, जो ऋषि-मुनियों के ज्ञान और विज्ञान को निगल करके ऊर्ध्वगति को प्राप्त होते रहे हों यह उनका अपमान है। मैं यह नहीं जान पा रहा हूँ कि इस साहित्य के ऊपर मानव क्यों नहीं विचार-विनियम कर रहा है? आधुनिक काल में मानव अपने को यह कहता है कि मैं सनातन से चला आ रहा हूँ। अरे, जब तुम्हारे पूर्वजों को गिद्ध की श्रेणी में परिणित किया गया है, तो तुम सनातन किस प्रकार के हो? कौन सी सनातनता तुम्हारे हृदयों में है? महाराजा सम्पाति और गरुड़ दोनों विधाता अनुसंधान करते थे। समुद्र के तट पर उनका सूक्ष्म सा राज्य था राजा रावण ने उनके राष्ट्र को विजय कर लिया था। गरूड़ तो महर्षि लोमश मुनि के आश्रम में प्रवेश कर गये थे और सम्पाति समुद्र के तट पर सम्भुक ऋषि महाराज के आश्रम में चले गये थे। उनका राष्ट्र समाप्त हो गया था, परन्तु वे वैज्ञानिक थे, अपने में अनुसंधान करते रहे थे, विचार-विनियम करते रहते थे। सम्पाती को हमारे यहाँ आकृतियों की संज्ञा प्रदान की जाती है, गरूड़ जिन्होंने रावण इत्यादि से सङ्ग्राम किया, उनको भी पक्षी की संज्ञा प्रदान की जाती है। यह क्यों की जाती है? क्योंकि वह पक्षी की भाँति अपने यन्त्रों में विद्यमान हो करके अन्तरिक्ष में गति करते रहते थे, वह वैज्ञानिक थे। सम्पाति तो समुद्र के किनारे संयत रहता था। जब सम्पाती को राजा रावण ने विजय कर लिया था तो उसका राष्ट्र जो समुद्र के तट पर था, उस राष्ट्र की सुरसा अधिराज बन करके रही।
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