- धर्म-पथ
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31 October 2024
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अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)–
बिनु सतसंग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
(
रामचरितमानस, बालकाण्ड, २/४)
यह विरोधाभास जैसा दीखता है। पर राम की भक्ति भी उन्हीं की कृपा से मिलती है।
रामदूत हनुमान् जी भी वैसी ही कृपा करते हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
१९५९ में एक विवाह अवसर पर हनुमान भक्त से भेंट हुई। बाकी नाच गान छोड़ कर उनकी कथा सुन रहा था। उनके पुत्र बीमार थे तथा डाक्टरों ने जबाब दे दिया था। वह गांव के हनुमान मन्दिर गये और हनुमान् जी को बहुत गाली दी कि उनकी भक्ति से कोई लाभ नहीं हुआ। हनुमान् जी ने भी गुरु रूप में उनको एक थप्पड़ दिया और कहा कि मेरे पास क्यों नहीं लाये? उनके पास बेटे को लाते ही वह आधे घण्टे में ठीक हो गया। मेरी रुचि देख कर उन्होंने अपनी हनुमान चालीसा की प्रति दी। मैंने पूछा कि वह किससे पाठ करेंगे। तो उन्हों ने १ लाख हनुमान चालीसा बांटने का संकल्प लिया।
१९६१ में विद्यालय गया (कक्षा ८) तो घर में हाथ से बनाया हनुमान जी का चित्र था। वह आगे पीछे पैर कर के पर्वत ले कर उड़ रहे थे। उसकी नकल कर २ मास तक उसी प्रकार उड़ने का अभ्यास करता रहा। असफल होने पर लगा कि मेरी पूंछ नहीं है, इसलिए नहीं उड़ पा रहा हूं। बहुत बाद में (१९७२) में पढ़ा कि हवाई जहाज में भी पूंछ होती है। वैसे इसका कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है।
१९६२ में एक नाटक में रोल करने के लिए ३ पृष्ठों पर मेरे डायलग लिख कर विद्यालय से मिले थे। एक दिन सबेरे पढ़ने बैठा तो अचानक हवा आयी और तीनों कागज भिन्न दिशाओं में उड़ गये। हनुमान् जी पर बहुत क्रोध हुआ तथा उनसे कहा कि ऐसा क्यों किया, वापस लाओ। थोड़ी देर बाद उलटी हवा बही और तीनों कागज वापस मेरे हाथ में आ गये। थोड़ी देर बाद आश्चर्य हुआ कि यह कैसे सम्भव है। उसके बाद लगा कि बहुत छोटे काम के लिए हनुमान् जी को कष्ट दिया।
१९६४ में बक्सर में खाकी बाबा से भेंट हुई। वह स्थानीय थाना में पहले सिपाही थे तथा सदा हनुमान् की एक छोटी पीतल मूर्ति अपने साथ रखते थे। एक बार गंगा किनारे थाना अधिकारी के साथ जांच में गये। नदी पार करने के लिए नाव नहीं मिल रही थी। थाना अधिकारी ने इनसे कहा कि अपने हनुमान् जी से क्यों नहीं काम कराते हो? उनको क्रोध आया और पाकेट की मूर्ति को छू कर पैदल गंगा पार कर गये। पार जाने पर देखा कि कपड़ा भींगा हुआ है। मूर्ति निकाल कर देखा तो उससे पसीना निकल रहा था। मूर्ति ने उनको डांटा कि १०० ग्राम की मूर्ति पर ६५ किलो भार क्यों डाल दिया? अब से कोई चमत्कार मत करना। उसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। खाकी वस्त्र पहनते रहे अतः उनको खाकी बाबा कहते थे। विश्वामित्र की यज्ञ भूमि के पास कालेज बनवाया और वहां से ताड़का की हड्डियों की खुदाई की। १९६४ तक वे कालेज के संग्रहालय में थी। खाकी बाबा ने कहा कि सहज भक्ति करते रहो। जैसी आवश्यकता होगी, हनुमान् जी निर्देश देंगे।
मैंने आज तक हनुमान चालीसा पाठ के अतिरिक्त कोई विधिवत पूजा नहीं की है। अभी भी पूजा भक्ति के बारे में बाल्यकाल जैसा ही अबोध हूं। पर हर संकट में विश्वास रहता है कि हनुमान् जी सब संभाल लेंगे। सरकारी षड्यन्त्रों के अतिरिक्त कई बार असम्भव स्वास्थ्य समस्यायें आयीं। उस समय कोई उपयुक्त गुरु नहीं मिला। केवल हनुमान् जी को स्मरण कर अपनी योजना और विवेक से काम किया। असम्भव पेट की बीमारी, उसके बाद दोनों पैरों के आपरेशन के बाद ८०० से १०,००० मीटर तक की दौड़ जीतना, एक्जीमा, कैंसर से मुक्ति आदि केवल उन्हीं की कृपा है। बिना दीक्षा केवल वही गुरु रूप में निर्देश देते रहे। बाद में दीक्षा भी ली