वैदिक स्वर्ग, नरक और पितृलोक

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ)- Mystic Power- वेद इन तीनों को आकाश में ही मानते हैं। ऋग्वेद के यम पितरों और देवों के साथ रहते हैं तथा पितृपति कहे जाते हैं। वेदों में यमलोक, यमदूत, यमराज और उनके कुत्तों का वर्णन है। कुत्ते दो हैं, चार आँखों वाले हैं, चितकबरे हैं और भीषण हैं। यमदेव सूर्य के पुत्र और यमी के भाई हैं। वेद में अग्नि से प्रार्थना की जाती है कि आप मृतक के शरीर को पूरा समाप्त न कर दें ताकि वह पुनः जन्म ले इसे पितरों के पास भेज दें। शव को चिता पर रखने के बाद भूमि से प्रार्थना की जाती है। कि इसने बहुत दक्षिणा दी है अतः कष्ट न पावे लिखा है कि जो शूर युद्ध में मरते हैं अथवा जो सहस्रदक्षिणा देते हैं वे देवों के पास जाते हैं। दक्षिणा देने वाले स्वर्ग में देवों से मिलते हैं, अद्भुत सुख, अमृत और तेज पाते हैं तथा उन पर आकाश से मधुवृष्टि होती है। वहाँ वैवस्वत यम का वास है और गीतों का नाद है।     १."अतिद्रव सारमेयौ श्वानौ चतुरक्षौ शबलौ साधुना पथा । अथा पितृन्त्सुविदत्रानुपेहि यमेन सधमादं मदन्ति।।"(ऋ० १०।१४।१०)   २."यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी नृचक्षुसौ । ताभ्यामेनं परिदेहि राजन् स्वस्ति चास्मा अनमीवं च धेहि ।।"(ऋ०१०।१४।११)   ३."उरूणसावसुतृपा उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनाँ अनु । तावस्मभ्यं दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम्।।"(ऋ०१०।१४।१२)   ४."मैनमग्ने विदहो माभि शोचो मास्यं त्वचं चिक्षिपो मा शरीरम् । यदा शृतं कृणवो जातवेदोथमैनं प्रहिणुतात् पितृभ्यः।।"(ऋ० १०।१६।१)   ५."सूर्यं चक्षुर्गच्छतु वातमात्मा द्यां च गच्छ पृथिवीं च धर्मणा । अपो वा गच्छ यदि तत्र ते हितमोषधीषु प्रतितिष्ठा शरीरैः।।"(ऋ० १०।१६ । ३)   ६."यास्ते शिवास्तन्वो जातवेदस्ताभिर्वहैनं सुकृतामु लोकम्।।"(ऋ० १०।१६ । ४)   ७."अवसृज पुनरग्ने पितृभ्यो... आयुर्वसान संगच्छतां तन्वा।।"(ऋ० १० । १६ । ५)   ८."उपसर्प मातरं भूमिं ... दक्षिणावत एषा त्वा पातु ।।"(ऋ०१०।१८। १०)   ९."तपसा ये अनाधृष्यास्तपसा ये स्वर्ययुः ।।"(ऋ०१ । १५४ ।२)   १०."ये युध्यन्ते प्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः। ये वा सहस्रदक्षिणास्तरिचदेवापि गच्छतात्।।"(ऋ० १।१४४।३ )   यहाँ प्रथम मन्त्र में सारमेय, श्वान, चतुरक्ष और शबल शब्द आये हैं। सारमेय और श्वान का एक ही अर्थ है पर यहाँ वे दोनों विशेष्य-विशेषण हैं। महर्षि दयानन्द ने यहाँ दिन और रात को ही दो स्थान माना है। यमराज को सूर्य का पुत्र (वैवस्वत) कहा जाता है। दिन-रात भी सूर्यपुत्र हैं। उन्होंने सारमेय का अर्थ सरमा (उषा) की पुत्री किया है। ये चार आँखों वाले चतुरक्ष है अर्थात् चारों ओर देखते हैं। उनकी गति तीव्र है इसलिए वे श्वान हैं। वे काले-गोरे होने से शक्ल है और मनुष्य की आयु को कम करते हैं।   ऋग्वेद में दक्षिणा का बहुत महत्त्व है। स्वर्गसुख का वह मुख्य साधन है। अश्व, गज, सुवर्ण, रत्न, दासी, अन्न, शग्मा आदि का दान देने वाले स्वर्ग में उच्च पद पाते हैं, यमलोक में सूर्य के साथ रहते हैं, अमर हो जाते हैं और दीर्घायु होते हैं (देखिए आगे दक्षिणाप्रकरण) ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमदूत कहा है (देखिए शकुन प्रकरण)   १."अनस्थाः पूताः पवेनन शुद्धाः शुचयः शुचिमपि यन्ति लोकम्। नैषां शिश्नं प्रदहति जातवेदाः स्वर्गे लोके बहुस्वैणमेषाम्।।"(ऋ० ४। ३४।२) २."विष्टारिणमोदनं ये पचन्ति नैनानवर्तिः सचते कदाचन। आस्ते यम उपयाति देवान् स गन्धर्वमंदते सोम्येभिः ।।"(ऋ०४।३४।३) ३."विष्टारिणमोदनं ये पचन्ति नैनान् यमः परिमुष्णाति रेतः । रथी ह भूत्वा रथयान ईयते पक्षी ह भूत्वातिदिवः समेति ।।"(ऋ०४।३४।४) ४." एतास्त्वाधारा उपयन्तु सर्वाः स्वर्गे लोके मधुमत्पित्न्यमानाः ।।"(ऋ०४।३४।५) ५." घृतह्रदा मधुकूलाः सुरोदकाः क्षीरेण पूर्णा उदकेन दाना ।।"(ऋ०४।३४।५) ६. "इममोदनं निदधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजित स्वर्गम्। क्षेष्ट स्वधया पिन्वमानो विश्वरूपाधेनुः कामदुधा में अस्तु ।।"(ऋ०४।३४।८)   अर्थ- जो यजमान उपर्युक्त विधि से पका कर ब्राह्मण को ओदन (भात) देते हैं वे शुद्ध और शुचि होकर शुद्ध शुचि लोक में जाते हैं। स्वर्गलोक में बहुत सी स्वियों है। वहीं शिश्नदाह नहीं होता। इस ओदन को पकाने वाले दरिद्र नहीं होते। वे यम के पास जाते हैं और गन्धर्थों तथा देवों के साथ प्रसन्न रहते हैं। यम उनके रेतस को नहीं चुराते। वे रथ पर चलते हैं और पक्षी होकर स्वर्ग में पहुँच जाते हैं। स्वर्ग में मधु की धाराएँ मिलती है। तुम्हें स्वर्ग में वे मृत के सरोवर तथा मधु, सुरा, क्षौर, जलदधि आदि की धाराएँ प्राप्त हो। मैं यह ओदन ब्राह्मणों में रखता हूँ। यह धेनु मेरे लिए कामदुधा हो।   ऋग्वेद में नरक की यातनाओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं है पर यम यमदूत और पृथ्वी के नीचे गर्त एवं अन्धकार का • उल्लेख है। वाजसनेयिसंहिता ३०/५ में नारकाय वोरहण' वाक्य आया है। और ४०/२ में लिखा है कि हत्या करने वाले पापी लोग मरने के बाद अन्धकार से आवृत असुर लोकों में जाते है अतः किसी का धन मत लूटो।   "असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसा वृत्ताः। तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महतो जनाः।।"   तैत्तिरीय आरण्यक में विसप, अविसप, विषादी और अविषादी नामक चार नरकों का वर्णन है पर यातनाओं का पैराणिकवर्णन नहीं है। अथर्ववेद में कुछ है।



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