वेद मंत्र रहस्य

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

डॉ. विजय शंकर पांडेय Mystic Power- हमारे प्राचीन महर्षियों ने भारतीय समाज को सुसंगठित एवं सुपवस्थित रखने के लिये भारतीय संस्कृति के स्तम्भ रूप वेदों के अध्ययन को नियमित रूप से करने का विधान किया है। इसके लिये वेदाध्ययन को धार्मिक कृत्य कहा गया है, तथा इसके द्वारा अदृष्ट फल की कल्पना का उद्घोष भी किया गया है । उस प्राचीन युग में वेदाध्ययन की मौखिक परम्परा विद्यमान होने के कारण तत्कालीन वैदिक विद्वानों को यह भय सदैव बना रहता था कि कालक्रमानुसार वेदमंत्रों में विकार भी आ सकता है । इसीलिए तत्कालीन विद्वानों ने वेदों के बाह्य- स्वरूप में आने वाले विकारों के निराकरण के लिए वेद मंत्रों के प्रत्येक पदों के ध्वनि, मात्रा, स्वर आदि तत्त्वों का सूक्ष्म निरीक्षण किया तथा उनको अविकृत रखने के लिये प्रत्येक सम्भव प्रयास किया। इसी उद्देश्य को लेकर शिक्षाांधों एवं प्रातिशाख्यों की रचना हुई। इन ग्रंथों में वैदिक मंत्रों के उच्चारण को शुद्ध रूप में करने के लिये सभी आवश्यक नियमों का विधान किया गया। साथ ही साथ वेदाध्ययन करने का समय, स्थान, वेदाध्यायी के लिए खाद्य पदार्थ आदि सभी विषयों का वर्णन किया गया। या० शि० में विधान किया गया है कि जिस प्रकार कछुवा अपने अंगों को समेट लेता है, उसी प्रकार स्वस्थ, प्रशान्त एवं निर्भीक होकर अपने मन, दृष्टि एवं चेष्टा को एकाग्र करके वेदमंत्रों के वर्णों का उच्चारण करना चाहिए ।" पाणिनि-शिक्षा में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो वेदमंत्र उदात्तादि स्वरों की दृष्टि से एवं वर्णोच्चारण की दृष्टि से हीन रूप में प्रयुक्त होता है वह मिथ्या रूप में प्रयुक्त होकर अपने वास्तविक अर्थ का कथन नहीं करता। वह वाणी रूपी राय बनकर यजमान का ही नाश कर डालता है। स्वर के अपराध से इन्द्र शत्रु (वृत्त) के विनाश की कथा तो सबको ज्ञात हो है। वास्तव में वेदमंत्रों के शुद्ध उच्चारण एवं पाठ से एक अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। जिसका विवरण अथर्ववेद संहिता के मंत्रों को देखने से स्पष्ट हो जाता है। अथर्ववेद में अनेक मंत्र जादू टोना, मारण, मोहन तथा उच्चाटन आदि विषयों से सम्बन्धित है। इन मंत्रों की शक्ति उसके उच्चारण की शक्ति से भिन्न नहीं है। आधुनिक युग में भी मंत्रों के माध्यम से अनेक ऐसे रोगों को दूर किया जाता है, जो बहुत सी औषधियों के प्रयोग से भी समाप्त नहीं किये जा सकते | व्यावहारिक दृष्टि से भी वाणी में बहुत अधिक शक्ति होती है । वैदिक ध्वनि-विज्ञान का मुख्य प्रयोजन 'वैदिक मंत्रों के शुद्ध शुद्ध पाठ की प्रक्रिया बतलाना है। इसके अध्ययन से हम वैदिक मंत्रों के शुद्ध-शुद्ध पाठ की विधियों को हृदयंगम करके उनसे होने वाले परिणामों को आत्मात्कर्ष का विषय बना सकते है। वेदों के महत्व को बतलाने वाले अति प्रसिद्ध श्लोक का भाव भी यही है कि जिन उपायों को हम प्रत्यक्ष अथवा अनुमान से नहीं जान सकते, उन्हें वेदों के माध्यम से जान सकते हैं, अर्थात् इस मंत्रशक्ति की समता करने वाला कोई दूसरा उपाय हमेँ प्रत्यक्ष अथवा अनुमान के आधार पर प्राप्त नहीं हो सकता है। इस प्रकार वेद मंत्रों का शुद्ध एवं उचित रूप में पाठ करने के लिए वैदिक ध्वनि- विज्ञान का अध्ययन नितान्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है।



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment