पूज्यपाद गुरुदेव ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज
mystic power - बेटा ! मैं तुम्हें यह वाक्य उच्चारण करने के लिए आया हूँ कि मैं अग्नियों की पूजा करने आया हूँ। वह काल था यज्ञशाला में यज्ञमान याग कर रहा है। अग्नि प्रदीप्त हो रही है। विद्यालय में आचार्य, ब्रह्मचारी याग कर रहे है, गृह स्थल में पति-पत्नी याग कर रहे है। यह जो सर्व ब्रह्माण्ड है यहाँ एक प्रकार का याग हो रहा है उस याग को जानने की आवश्यकता है।
मुझे वह काल स्मरण है जब भृंगी ऋषि महाराज याग करते थे। जब वह स्वाहा उच्चारण करते थे तो वाणी में इतना प्रकाश था कि वह स्वाहा अंतरिक्ष में ओत-प्रोत हो जाता था और अंतरिक्ष में से पुनः वह ऋषि के चित्रों को ले करके अंतरिक्ष में गमन कर जाता था। ऋषि यह विचरने लगे मेरे जो शब्दों के साथ में,स्वाहा के साथ में,जो चित्र चला गया है मानो उन्हीं से एक यंत्र का निर्माण किया और उस मंत्र में जो वह स्वाहा होता था, याग में जो अग्नि अभिन्न प्रकाश दे रही थी उस प्रकाश में जो चित्र जा रहे थे वह उनके यहाँ जो यज्ञशाला में जो चित्र जा रहे थे, शब्दो के जो चित्र जा रहे थे और ऋषि दृष्टिपात कर रहे थे। विभाण्डक ऋषि महाराज से कहा कि ब्रह्मचारी यह कैसा चित्र है। ब्रह्मचारी ने कहा कि प्रभु यह जो हमारा जीवन है, यह तो मानवता का कर्तव्य है कि ज्ञान और विज्ञान में जाना स्वभाविक माना गया है। हमारे जो ऋषि-मुनि थे पुरातन काल में वे मानो प्रत्येक याज्ञिक बने हुए थे और मानव याग करता हुआ अपनी प्रवृतियों को अपने विज्ञान को ऊर्ध्व में ले जाना चाहता है।
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ऋषि से यह प्रश्न किया गया कि महाराज यह जो याग है इस याग से भी द्वितीय वस्तु भी संसार में कोई उत्तम है अथवा उत्तम कार्य करने के लिए नही है? उस समय धुंधुरत ऋषि महाराज बोले कि हे ब्रह्मचारियों ! यज्ञ से ऊर्ध्वगति में जाने वाला अन्य कोई कर्म नही है।क्योंकि यह एक ऐसा कर्म है जो मानव को ऊर्ध्व गति में ले जाता हैं। यह याग है। याग के भिन्न-भिन्न प्रकार के रूप माने गये है।
मेरे प्यारे महानन्द जी भी याग कर्म करते रहें है ये कहा करते थे जब वेद मंत्र का अध्ययन करते । उनका अनुभव भी इस सम्बंध में रहा जब ये याग करते तो एक-एक वेद मंत्र को विचारते और यह विचारते थे कि हमारा संसार में कोई शत्रु नही रहना चाहिए। जो मानव याग करता है उस मानव का कोई भी संसार में शत्रु नही होता। यह एक बहुत आश्चर्य शब्द उच्चारण कर रहा हूँ ।
हम बाल्यकाल में अपने पूज्यपाद गुरुदेव से यह प्रश्न किया करते जब सामगान गाते थे, यजूषि गान गाते थे। जठापाठ, धनपाठ में स्वरों सहित जब गान गाते थे तो उनके शब्दो को श्रवण करने के लिए पक्षीगण हिंसकप्राणी आते और उनके चरणों को छुआ करते थे।
है प्रभु क्या वेद का वाक्य यह हमें सिद्ध होता दृष्टिपात होता है कि मानव का कोई शत्रु ही नही। शत्रु किनका है? जो याग नही करते और जो याग करते है और उसको आडम्बर बना देते है अथवा उसको आडम्बर में ले जाते है और अपने जीवन को यागमय नही बनाते, उनको संसार में कष्ट और शत्रु उत्पन्न हो जाते है। इसीलिए मैं कहता हुँ तुम आज याग करो अपने जीवन को ऊंचा बनाने का प्रयास करो। याज्ञिक जो पुरुष है उसका संसार में कोई शत्रु नही होता और वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। ॐ
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