श्री अनिल गोविन्द बोकील
(नाथसंप्रदाय मे पूर्णाभिषिक्त और तंत्र मार्ग मे काली कुल मे पूर्णाभिषिक्त के बाद साम्राज्याभिषिक्त।)-
mystic power -आज हम लोग कुछ यौगिक क्रियाओ के विषय मे जानकारी लेंगे । स्वास्थ्यलाभ अवश्य होगा । योगशिक्षक इन क्रियाओ के विषय मे जानते ही है । और ये है -
( १ ) कपालभाती और ( २ ) भस्रिका
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बहुत से लोग ये दोनो क्रियाए एक ही समझते है । पर वैसा नहीं है । दोनो भिन्न है । कैसे ? वही अब देखते है ।
( १ ) कपालभाती : - अपने अंदरतक पूर्ण श्वास - सीधा नाभीतक ले । और तुरंत आधा ही छोडे - फिर आधा ले और आधा ही छोडे - ऐसाही करते रहे । कमसे कम ११ बार यही क्रिया करे । इस क्रिया मे
सिर्फ पेट ही हिलता रहता है - याने आगेपीछे होता रहता है । संक्षेप मे - पहले श्वास पूर्ण लेकर आधा आधा छोडना और लेना --- इसे ही कहते है कपालभाती।
( २ ) भस्रिका : -- इस क्रिया मे पहले श्वास पूर्ण ले । फिर तुरंत जोर से पूर्ण छोड दे । श्वास लेते समय पेट हिलता है । बाहर आता है । और श्वास जोर से छोडते समय पेट अंदर जाकर छाती को सौम्य धक्का ( stroke ) बैठता है । इस वजह से जुकाम ; खांसी - यहां तक कि कोरोना भी ठीक होता है । भस्रिका करते समय एकाध नैपकीन या रुमाल साथ मे रखे । श्वास छोडते समय नाक के पास धरे । क्योंकि जुकाम ; खांसी आदि तकलीफे बाहर फेंकी जाती है ।
भस्रिका करते समय मेंदू ( Brain ) पर भी सौम्य आघात होकर वह भी कार्यक्षम होने मे सहायता मिलती है ।
आप अगर हिमालय मे गये ; तो ऐसी भस्रिकाए १२१ करे । या थंडी के दिनो मे भी १२१ बार करे । थंडी नहीं लगेगी ।
किसी पहाड पर / चढाव पर चढते वक्त भी पहले भस्रिका करके चढना आरंभ करे । थकवट महसूस नहीं होगी या कम महसूस होगी ।
( इन दो क्रियाओ की महत्ता क्रियायोग मे काफी वर्णित है । )
नित्य साधना करनेवालो ने कपालभाती व भस्रिका क्रमश: बढाना है । याने ११-१५-२० आदि।
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