योग-तंत्र कूर्मनाड़ी का रहस्य

img25
  • NA
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

श्री सुशील जालान (ध्यान  योगी )- Mystic Power- *  श्रीविष्णु के दशावतारों में कूर्म/कच्छप द्वितीय अवतार माना गया है। यह योग-तंत्र की विधा है जिसके अनुशीलन से आत्मबोध, श्रीविष्णु के परंपद, चैतन्य तत्त्व, का बोध संभव होता है सक्षम योगारूढ़ योगयुक्तात्मा साधक पुरुष को।   *  कूर्म/कच्छप कछुए को कहते हैं जो भूमि पर रहता है और जल में भी। इसे प्राणवायु के सेवन के लिए पृथ्वी पर आना पड़ता है। कछुआ दीर्घजीवी प्राणी है, 1000 वर्षों तक जीवित रह सकता है।  मनुष्य का जीवन सामान्यतः 100 वर्षों का माना गया है, [ अथर्ववेद 19.67.02/ जीवेम शरद: शतम् ]।   -  मनुष्य प्रतिदिन लगभग 21,600 श्वास लेता है 24 घंटों, ब्रह्मविद्या उपनिषद् का कथन है,         "सहस्त्रमेकं द्वययुतं षट्शतं चैव सर्वदा।                उच्चरन्पठितो हंसः सोऽहमित्यभिधीयते॥"   *  कूर्म के लिए श्वास 2,160 होगा प्रतिदिन। अर्थात्, श्वास की संख्या दश प्रतिशत रह जाए, तो आयु दश गुणा बढ़ सकती है। बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम से सक्षम योगी अपनी श्वास संख्या नियंत्रित करता है।   ✓  कूर्म विधा के दो आयाम हैं, वैदिक तथा तांत्रिक।   वैदिक कूर्म -  मूलाधार चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र के योग को कूर्म पीठ कहते हैं। ध्यान के योग आसनों से इन चक्रों का योग किया जाता है। यह आसन हैं, पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, सुखासन, आदि। दीर्घ काल तक इन आसनों पर प्राणायाम के अभ्यास से प्राणवायु सूक्ष्म होती है और वीर्य - शुक्राणु ऊर्ध्व होकर सूक्ष्म नाड़ियों में प्रवेश करने लगते हैं कूर्म पीठ से। -  कूर्म पीठ पर मेरुदंड में स्थित मंदराचल सुमेरु पर्वत को अरणि बना कर, वासुकि नाग [ कुंडलिनी शक्ति ] से अमृत तत्त्व के लिए भवसागर [ स्वाधिष्ठान चक्र ] मंथन किया जाता है। अर्थात्, इड़ा और पिंगला नाड़ियों में सूक्ष्म प्राण का प्रवाह किया जाता है, अनुलोम विलोम प्राणायाम से। कुंडलिनी शक्ति ऊर्ध्व होकर सुषुम्ना नाड़ी जाग्रत करती है नाभिस्थ मणिपुर चक्र से।   -  मणिपुर चक्र से सुषुम्ना नाड़ी योगी की चेतना को हृदयस्थ अनाहतचक्र, महर्लोक में, सुषुप्तावस्था में, ले जाती है, जहां जीवभाव त्याग कर सक्षम ध्यान-योगी आत्मतत्त्व बोध करता है। यहीं महेश्वर के बाण लिंग का प्राकट्य होता है जिसमें से ऊर्ध्व शुक्राणु प्रकट होते हैं।   -  महेश्वर मोक्ष बोध है, अमृत तत्त्व है, आत्मतत्त्व इसे धारण करता है तथा इसमें निहित आध्यात्मिक सिद्धियों का उपभोग करता है यह विशिष्ट ध्यान-योगी। यह है सिद्धि संपन्न, श्रीविष्णु अथवा "शिवोऽहं" चैतन्य स्वरूप ध्यान-योगी का।   तांत्रिक कूर्म -  कूर्म नाड़ी जाग्रत होती है कूर्म पीठ से। तांत्रिक वामाचार के अंतर्गत शुक्राणुओं को उद्वेलित किया जाता है समागम मिथुन प्रसंग से, वज्रोली मुद्रा के अभ्यास से। मुख्य आसन हैं सर्पासन, मकरासन, चक्रासन, जिनके अभ्यास से उद्वेलित हुए शुक्राणु कूर्म नाड़ी में ऊर्ध्वगमन करने लगते हैं।   -  नीले शुभ्र उज्जवल प्रकाश का प्राकट्य होता है कूर्मनाड़ी में ऊर्ध्वरेता योगी-तांत्रिक के ध्यान में, त्रिशूल/त्रिगुण बोधगम्य होते है, इच्छा, ज्ञान व क्रिया के अर्थ में। इच्छा रजोगुणी लाल वर्ण है, ज्ञान तमोगुणी नील उज्जवल वर्ण है तथा क्रिया पीत वर्ण है।   -  यह हृदयस्थ मनश्चक्र है, निर्मल चिदाकाश है। शरद पूर्णिमा के  रात्रि के नील वर्ण के साथ उदय हुए चमकीले पीत वर्ण के चन्द्र की आभा से युक्त प्रकाश भी प्रकट होता है। कूर्मनाड़ी का यह सर्वोच्च चैतन्य शिखर है जहां अष्टमहासिद्धियां प्रकट होती हैं।   -  लीला पुरुषोत्तम योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीविद्या का अनुशीलन कर, रजोगुणी महात्रिपुरसुन्दरी ललिता के सान्निध्य में, वृन्दावन में, महिमा महासिद्धि का उपयोग कर, महारास का आयोजन किया था, स्वयं के आनंद के लिए, स्वयं के ऊर्ध्व शुक्राणुओं से स्वयं के तथा गोपियों के अनेक रूपों का सृजन किया था।   *  कूर्म नाड़ी में संयम से स्थिरता होती है (योग सूत्र, विभूति पाद, सूत्र 31)। श्व को सिद्ध किया जाता है कूर्म नाड़ी जाग्रत करने के लिए। सिद्ध हो जाए तो रुद्र, भैरव, शिव बोध होता है। यह भैरव के वाहन श्वान् का आध्यात्मिक अर्थ भी है। श्व है श्वास का वास स्थान। श्वास पर विजय प्राप्त करना, बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम सिद्ध करना है।   श्वास का पदच्छेद है, श् + व (व् +आ) + से (स् + अ),   -  श्  है  तालव्य श्, श् है मूलाधार चक्र में स्थित, अर्थात् चेतना को मूलाधार चक्र से ऊर्ध्व कर मुंड में प्रवेश करा जिह्वा को तालु से लगाना। यह खेचरी मुद्रा का एक प्रकार है। -  वा (व् + आ), व्  है स्वाधिष्ठान चक्र का कूट बीज वर्ण, भवसागर, सभी भावनाओं का समुद्र। आ  है ब्रह्मा ग्रंथि, मणिपुर चक्र, अग्नि तत्त्व, दीर्घ काल के संदर्भ में। -  स (स् + अ), स्  है मूलाधार चक्र में स्थित ऊष्ण स्त्रीलिंग वर्ण धारण करने के संदर्भ में, अ है स्थायित्व प्रदान करने के लिए।   अर्थ हुआ, मुण्ड में जिह्वा से तालु का स्पर्श कर, भावना/चेतना को मणिपुर के अग्नि तत्त्व से ओतप्रोत कर धारण करे दीर्घ काल तक। यह श्वास पर विजय के लिए बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम के साथ अभ्यास है।   *  श्वास को सिद्ध करने से ही वैदिक_कूर्म तथा तांत्रिक_कूर्म, दोनों सिद्ध होते हैं। श्वास को सिद्ध करने का अर्थ है बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम सिद्ध करना। यह प्राणजय सिद्धि है, अष्टमहासिद्धियों तथा अन्यान्य सिद्धियों की आधार सिद्धि।   *  बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम सिद्ध किए योगी को योगारूढ़, योगयुक्तात्मा कहा गया है। योगतत्त्व उपनिषद् (140-141) कहता है, "लभते योगयुक्तात्मा पुरुषस्तत्परं पदम्। कूर्मः स्वपाणिपादादिशिरश्चात्मनि धारयेत् ॥ एवं द्वारेषु सर्वेषु वायुपूरितरेचितः। निषिद्धं तु नवद्वारे ऊर्ध्वं प्राङ्निःश्वसस्तथा ॥" अर्थात्, -  योगारूढ़ हुए पुरुष के लिए आवश्यक है कि कूर्म की तरह अपने हाथ, पैर एवं शिर आदि को सिकोड़ कर अपने अंतस् में आत्मबोध करे, अर्थात् अपनी शिर से पांव तक व्याप्त बाह्योन्मुखी वृत्तियों को अंतःस्थ में स्थित करे, परंपद, चैतन्य तत्त्व, बोध के लिए।   -  देह में वायु का पूरक रेचन निषिद्ध करे, अर्थात् श्वास बाहर निकाल कर रोके, नौ द्वारों को बन्द कर, यानि बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम का अनुशीलन कर, चेतना का ऊर्ध्वारोहण करे।   *  अयोध्या में नवनिर्मित श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के अंदर गर्भगृह में श्रीरामलला के दर्शन के ठीक पहले कूर्म मण्डप है। केवल कूर्म मण्डप तक ही सामान्य दर्शनार्थी जा सकते हैं।   -  आध्यात्मिक गर्भगृह हृदयस्थ अनाहत चक्र है, जहां आदित्य का प्राकट्य होता है चैतन्य तत्त्व से। श्रीराम सूर्यवंशी हैं, भगवत् पद पर आसीत् हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, द्वादश आदित्यों में एक श्रीविष्णु के पूर्ण अवतार हैं।   ✓  कूर्म विधा के सतत् अभ्यास से श्रीविष्णु के परम् धाम चैतन्य तत्त्व का बोध संभव है। नाभिस्थ मणिपुर चक्र है, जिसका कूट बीज वर्ण है "रं", अग्नि तत्त्व। "रं" से ही राम प्रकट होते हैं, श्रीरामलला, हृदयस्थ अनाहत चक्र में, विष्णु ग्रंथि के वेध से।   ✓  सक्षम ध्यान-योगी भक्त जीवन्मुक्त होते हैं, मोक्ष प्राप्त करते हैं, श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीनारायण, शिव, रुद्र, भैरव, आदि का ध्यान हृदय में, आत्मा में, चैतन्य तत्त्व में, करके। सभी देव सूक्ष्म प्राण के ही विभिन्न आयाम हैं।    



0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment